Akhilesh News: बृजभूषण शरण सिंह का नाम लेने से क्‍यों बच रहे हैं अखिलेश, क्‍या है असल वजह?

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Akhilesh News: बृजभूषण शरण सिंह का नाम लेने से क्‍यों बच रहे हैं अखिलेश, क्‍या है असल वजह?

Akhilesh News: बृजभूषण शरण सिंह का नाम लेने से क्‍यों बच रहे हैं अखिलेश, क्‍या है असल वजह?

अयोध्‍या: महिला पहलवानों की बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह (Brij Bhushan Sharan Singh) के खिलाफ कार्रवाई की मांग जारी है। मंगलवार को उन्‍होंने हरिद्वार में हर की पैड़ी पर गंगा में अपने मेडल के विसर्जन की बात कही। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं। पहलवान अंतत: किसान नेता नरेश टिकैत को अपने मेडल सौंपकर लौट गए। पहलवानों को मुद्दा बनाकर गैर भाजपाई दल बृजभूषण शरण सिंह और भाजपा की जमकर आलोचना कर रहे हैं। लेकिन दिलचस्‍प तौर पर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav news) पूरे प्रकरण में बृजभूषण शरण सिंह का नाम लेने से बच रहे हैं। दूसरी तरफ, इतने दबाव के बाद भी बीजेपी ने भी बृजभूषण सिंह के खिलाफ कोई खास एक्‍शन नहीं लिया।

अखिलेश ने 28 मई को उस समय दो ट्वीट किए जब पहलवानों को जबरन धरना स्‍थल से हटाया जा रहा था। अखिलेश ने एक ट्वीट में लिखा, आज की घटना ने स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा के महिला सम्मान एवं सुरक्षा के सभी नारे खोखले हैं तथा वो केवल महिलाओं के वोट हड़पने के लिए थे।’ इसी तरह दूसरे ट्वीट में लिखा, ‘सच्चे खिलाड़ियों का अपमान भाजपा की नकारात्मक राजनीति का खेल है। देश नारी का ये अपमान नहीं भूलेगा।’

क्‍या है अखिलेश की मंशा

बृजभूषण बीजेपी के सांसद हैं इसलिए बीजेपी का धर्मसंकट समझ आता है। लेकिन सवाल उठता है कि अब तक अखिलेश यादव ने बृजभूषण शरण सिंह का अब तक नाम क्यों नहीं लिया? एक तरफ तो वह बीजेपी को महिला विरोधी बताते हुए पहलवानों से नाइंसाफी की बात करते हैं। दूसरी ओर इस पूरे मामले के आरोपी बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह का नाम तक नहीं लेते हैं।

सपा से है पुराना नाता

बृजभूषण सिंह का अतीत देखें तो वह जब पहली बार भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए, उस समय समाजवादी पार्टी से सांसद हुआ करते थे। 2012 में उन्होंने भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष का चुनाव लड़ा। उस चुनाव में दीपेंद्र हुड्डा भी लड़ रहे थे। कहते हैं कि इसी बीच मुलायम सिंह यादव ने सोनिया गांधी के उस वक्त के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल से बात की। इसके बाद कांग्रेस ने दीपेंद्र हुड्डा को चुनाव में न उतरने का निर्देश दिया। नतीजा बृजभूषण सिंह अध्यक्ष बन गए।

बृजभूषण पहले भी बीजेपी से कर चुके हैं बगावत

अब इससे पहले के घटनाक्रम में चलते हैं। साल 2008 में न्यूक्लियर डील पर वोटिंग से पहले कई सांसदों ने पाला बदलते हुए मनमोहन सरकार के समर्थन में वोट दिया था। बृजभूषण शरण सिंह उस समय बीजेपी से सांसद थे लेकिन उन्होंने पार्टी से बगावत कर दी थी। प्रेस कॉन्फ्रेंस में वह अमर सिंह के साथ नजर आए तो तमाम सियासी पंडित हैरान रह गए। इसके बाद सपा और बृजभूषण का साथ 2013 तक बना रहा।

2009 के आम चुनाव में सपा ने उन्हें कैसरगंज सीट से टिकट दिया। सपा से वह सांसद निर्वाचित हुए। इसके बाद जब सितंबर 2013 में मुजफ्फरनगर के दंगे हुए तो अखिलेश यादव सरकार से विरोध जताते हुए बृजभूषण सिंह ने पार्टी छोड़ दी।

इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव से चंद महीने पहले वह एक बार फिर बीजेपी में आ गए। मोदी लहर में बृजभूषण एक बार फिर बीजेपी के टिकट से कैसरगंज से सांसद निर्वाचित हुए। यह सिलसिला 2019 में जारी रहा और वह छठी बार सांसद बनने में कामयाब रहे।

इन सीटों पर है मजबूत पकड़

इसके अलावा बृजभूषण सिंह गोंडा, बलरामपुर, बहराइच और श्रावस्ती जिलों में तकरीबन 50 स्कूल-कॉलेजों को चलाते हैं। इन जिलों में उनके पास कॉलेज कर्मचारियों के रूप में बड़ी मैनपावर मौजूद है। उनकी यह निजी मशीनरी चुनाव के दौरान भी सक्रिय हो जाती है। चाहे विधानसभा चुनाव हो, पंचायत या फिर लोकसभा हर बार यह मानव संसाधन उनके लिए एक मजबूती प्रदान करने का काम करता है।

सपा के हिस्से में 2019 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ श्रावस्ती सीट ही आई थी। गोंडा, कैसरगंज और बहराइच में बीजेपी को जीत मिली थी। श्रावस्ती में सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी राम शिरोमणि वर्मा की जीत का अंतर बहुत कम (5320 वोट) था। बीजेपी के दद्दन मिश्रा दूसरे नंबर पर रहे थे। इन्हीं दद्दन मिश्रा को बाद में श्रावस्ती से बृजभूषण सिंह ने निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष बनवा दिया। कैसरगंज से वह खुद जीते थे। गोंडा उनका चार दशकों से प्रभाव क्षेत्र रहा है। यहां से बीजेपी की कीर्तिवर्धन सिंह जीते थे।

वहीं बहराइच सीट पर भी बीजेपी के अक्षयवर लाल गौड़ ने सपा के शब्बीर बाल्मीकि के खिलाफ जीत दर्ज की थी। 2021 में जब जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव हुए तो जिला पंचायत सदस्य कम होने के बावजूद बीजेपी ने श्रावस्ती, गोंडा और बलरामपुर में निर्विरोध जीत हासिल की। इसके पीछे बृजभूषण की रणनीति मानी जाती है। कहा जाता है कि उन्होंने पार्टी से चारों जिलों में पंचायत अध्यक्ष जिताने का दावा किया था। बहराइच से मंजू सिंह, गोंडा से घनश्याम मिश्र, श्रावस्ती से दद्दन मिश्रा और बलरामपुर से आरती तिवारी ने निर्विरोध जीत दर्ज की। इसके पीछे भी बृजभूषण ने ही चक्रव्यूह रचा था। जाहिर है समाजवादी पार्टी भविष्य की संभावनाओं को भी देखते हुए फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। इतना ही नहीं चूंकि अयोध्‍या में बृजभूषण काफी सक्रिय रहे हैं। वह राम मंदिर आंदोलन से भी जुडे़ रहे हैं। ऐसे में अयोध्‍या सीट पर भी उनका पर्याप्‍त असर है।

क्‍या बृजभूषण के लिए गुंजाइश छोड़ रहे हैं अख‍िलेश

अब जबकि खाप पंचायतें भी खुलकर पहलवानों के समर्थन में आ गईं हैं, बहुत मुमकिन है कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ एक्‍शन ले। ऐसे में अखिलेश यादव इतनी गुंजाइश छोड़ते लग रहे हैं कि अगर बृजभूषण का मन बीजेपी से उचटे तो समाजवादी पार्टी को उन्‍हें अपनाने में कोई दुविधा न हो। इसलिए अखिलेश इस पूरे मुद्दे पर पहलवानों का तो साथ दे रहे हैं लेकिन इसे बीजेपी सरकार की नीतियों का खोखलापन बता रहे हैं। वह बृजभूषण पर उंगली नहीं उठा रहे हैं।

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