Aja Ekadashi : आज है वो एकादशी है जिसने हरिशचंद्र को फिर से अयोध्या का राजा बना दिया | It is Aja Ekadashi that made Harish Chandra the king of Ayodhya again | Patrika News

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Aja Ekadashi : आज है वो एकादशी है जिसने हरिशचंद्र को फिर से अयोध्या का राजा बना दिया | It is Aja Ekadashi that made Harish Chandra the king of Ayodhya again | Patrika News

Aja Ekadashi : आज है वो एकादशी है जिसने हरिशचंद्र को फिर से अयोध्या का राजा बना दिया | It is Aja Ekadashi that made Harish Chandra the king of Ayodhya again | Patrika News

बात त्रेता युग की है। अयोध्या में हरिशचंद्र नाम के एक राजा हुआ करते थे। वह दानी भी थे और सत्यवादी भी थे। उनके दान, धर्म और सत्य से बढ़ती कीर्ति को देख देवताओं के राजा इंद्र को ईष्र्या होनी लगी। ऐसे में महर्षि विश्वामित्र को महाराज हरिशचंद्र की परीक्षा लेने की विनती की। महर्षि विश्वामित्र ने भी तपोबल से राजा को स्वप्न दिखाया कि वह पूरा राज्य महर्षि विश्वामित्र को दान दे दिया।

दूसरे ही दिन महर्षि विश्वामित्र अयोध्या पहुंचे और राज्य मांग लिया। राजा हरिश्चंद्र पूरी पृथ्वी के राजा थे इसलिए उन्होंने पूरी पृथ्वी को ही ऋषि विश्वामित्र को दान दे दिया। दान करने के बाद अब पृथ्वी पर कैसे रहेंगे,ऐसे में वह अपनी पत्नी और पुत्र को लेकर काशी जाने लगे। यहां फिर से महर्षि विश्वामित्र ने कहा कि दान के बाद दक्षिणा दिए बिना आप नहीं जा सकते हैं, आपका दान अधूरा रहेगा। आप कम से कम दक्षिणा में एक हजार सोने की मोहर दें।

अब राजा के पास कुछ था नहीं। उन्होंने महर्षि विश्वामित्र से एक माह का समय मांगा। काशी ने दक्षिणा देने के लिए अपनी पत्नी को एक ब्राह्मण को बेच दिया। वह वहां दासी का काम करने लगी और राजा खुद चांडाल के यहां काम करने लगे। अलग-अलग जगह से एक हजार मुद्राएं एकत्र कर उन्होंने महर्षि विश्वामित्र को दक्षिणा दी। राजा चांडाल के यहां काम कर रहे थे तो उन्हें यहां श्मशान घाट में कर वसूलने का काम सौंपा गया।

राजा इसी तरह से जीवन यापन कर रहे थे कि एक दिन श्मशान में ऋषि गौतम आए और राजा की दशाा देख उन्होंने भादों की कृष्ण एकादशी व्रत रखने का परामर्श दिया। इसके बाद राजा एकादशी का व्रत करने लगे।

वहीं दूसरी तरफ उनकी पत्नी ब्राह्मण के घर सेवा कर रही थी कि अचानक उनके पुत्र को सांप न काट लिया और उसकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के पश्चात वह शव लेकर उसी श्मशान पर पहुंची जहां उनके पति राजा हरिशचंद्र चैकीदारी कर रहे थे। राजा ने अपनी पत्नी से कहा कि अंतिम संस्कार से पहले कर दो और उसके बाद ही संस्कार करो। इस पर पत्नी ने कहा हे राजन यह आपका ही पुत्र है। मेरे पास देने के लिए कुछ भी नहीं है।

राजा ने कहा कि मैं यहां चांडाल का सेवक हूं और बिना कुछ दिए मैं आपको संस्कार नहीं करने दे सकता। ऐसे में रानी ने ने अपनी साड़ी फाड़कर देने लगी। जैसे है रानी ने अपना आंचल पकड़ा। वहां भगवान विष्णु, इंद्र और महर्षि विश्वामित्र वहां पर प्रकट हो गए। महर्षि विश्वामित्र ने कहा कि आपका बेटा मृत नहीं है यह योग माया है। उन्होंने बताया कि अब एकादशी के व्रत से तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो गए हैं और तुम मुक्त हो गए हो। इसके बाद राजा को पूरा राजपाट लौटा दिया।



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