Ahir Regiment News : अहीर रेजिमेंट फिर से बनाने की क्यों हो रही है मांग? 1962 में रेजांग ला की जंग को याद है न!

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Ahir Regiment News : अहीर रेजिमेंट फिर से बनाने की क्यों हो रही है मांग? 1962 में रेजांग ला की जंग को याद है न!

Ahir Regiment News : अहीर रेजिमेंट फिर से बनाने की क्यों हो रही है मांग? 1962 में रेजांग ला की जंग को याद है न!

नई दिल्ली: भारतीय सेना में अहीर रेजिमेंट (Ahir Regiment) फिर से बनाने की मांग हो रही है। पहले कुमाऊं रेजिमेंट में हरियाणा के अहीर सैनिक हुआ करते थे और इसलिए उसे अहीर रेजिमेंट भी कहा जाता था लेकिन अब समुदाय के लिए एक पूर्ण इन्फैंट्री रेजिमेंट की मांग हो रही है। दिल्ली-गुरुग्राम एक्सप्रेसवे पर खेड़की दौला टोल प्लाजा पर 4 फरवरी से प्रदर्शनकारी धरना दे रहे हैं। ‘यूनाइटेड अहीर रेजिमेंट मोर्चा’ के बैनर तले इस प्रदर्शन के चलते बुधवार को हाईवे पर 6 किमी तक यातायात प्रभावित हुआ। खास बात यह है कि अहीर समुदाय के लोगों को राजनीतिक समर्थन भी मिल रहा है। केंद्रीय मंत्री उन्हें अपना समर्थन दे चुके हैं और राज्यसभा में कांग्रेस सांसद ने सेना में अहीर रेजिमेंट की स्थापना का मुद्दा उठाया। ऐसे में यह समझना महत्वपूर्ण हो जाता है कि अहीर रेजिमेंट बनाने की मांग का आधार क्या है?

मैं सेना में अहीर रेजिमेंट के गठन की मांग का पूर्ण समर्थन करता हूं। मैंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को लिखा है और उनसे इस मांग को लेकर मुलाकात भी की है। मैं यह मामला भविष्य में उठाना जारी रखूंगा।

केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह

अहीरवाल क्षेत्र के बारे में जानते हैं
पहले यह समझिए कि अहीर रेजिमेंट में ‘अहीर’ शब्द कहां से आया। दरअसल, हरियाणा के दक्षिणी जिले रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ और गुरुग्राम के पूरे क्षेत्र को अहीरवाल (Ahirwal Region) कहा जाता है। इसका संबंध राजा राव तुलाराम से है जो 1857 की क्रांति के अहीर हीरो थे। वह रेवाड़ी स्थित रामपुरा रियासत के राजा थे। अहीरवाल की भूमि पर अंग्रेजों से मुकाबला करने वाले राजा राव को क्रांति का महानायक कहा जाता है। इस क्षेत्र में काफी समय से अहीर रेजिमेंट की मांग हो रही है। जिन-जिन राज्यों में अहीर आबादी ज्यादा है, वहां यह मांग उठती रहती है।

रेजांग ला की वो लड़ाई
1962 में रेजांग ला की जंग में हरियाणा के जांबाज अहीर सैनिकों की बहादुरी की खबर मिलने के बाद अहीर सैनिक पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए। आज भी उन 117 अहीरों के शौर्य और बलिदान को याद किया जाता है। उस समय कुमाऊं रेजिमेंट की 13वीं बटालियन की C कंपनी के ज्यादातर सैनिक चीनी सैनिकों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे लेकिन दुश्मन को आगे नहीं बढ़ने दिया। वे तमाम कोशिशों के बाद भी रेजांगला चौकी पर कब्जा नहीं कर पाए और चुशूल में आगे बढ़ने का उनका सपना चकनाचूर हो गया।

समुदाय के लोग काफी समय से मांग कर रहे हैं कि कुमाऊं रेजिमेंट की दो बटालियन और अन्य रेजिमेंटों में एक निश्चित प्रतिशत ही नहीं, अहीर के नाम पर एक पूरी रेजिमेंट होनी चाहिए। साल 2012 में 1962 की लड़ाई के 50 साल पूरे होने पर यह मांग जोर पकड़ी, जब अहीर जवानों की गौरवगाथा बार-बार दोहराई गई। अब 60 साल पूरे होने पर यह मांग संसद तक पहुंच चुकी है। हाल के वर्षों में लगभग सभी राजनीतिक दल इस मांग का समर्थन करते दिखे हैं।

कुमाऊं, जाट, राजपूत….
अहीर जवानों की भर्ती भारतीय सेना की कई रेजिमेंट में होती है। कुमाऊं, जाट, राजपूत जैसी रेजिमेंट में अहीर जवान (एक या अधिक जाति के लोग) निश्चित संख्या में और मिक्स्ड क्लास रेजिमेंट जैसे पैराशूट रेजिमेंट और अन्य इंजीनियर, सिग्नल, आर्टिलरी कोर में सभी जातियों के लोगों की भर्ती की जाती है।

इतिहास पलटकर देखें तो पहले शुरुआत में अहीरों की भर्ती 19 हैदराबाद रेजिमेंट में होती थी, जिसे बाद में कुमाऊं रेजिमेंट कहा गया। इस रेजिमेंट में पहले उत्तर प्रदेश से राजपूत और दक्कन के पठार से मुस्लिमों की भर्ती की जाती थी। 1902 में रेजिमेंट का संबंध हैदराबाद के निजाम से था। 1922 में भारतीय सेना के पुनर्गठन के बाद 19 हैदराबाद रेजिमेंट की बनावट बदल गई और इससे दक्कन के मुस्लिमों को हटा दिया गया। 1930 में फिर से संरचनात्मक बदलाव हुए कुमाऊंनी, जाट, अहीर और मिक्स क्लास के लिए एक-एक कंपनी की गई।

27 अक्टूबर 1945 को रेजिमेंट के नाम को बदलने की अनुमति दी गई और इसका नाम 19 कुमाऊं किया गया। आजादी मिलने के बाद इसका नाम कुमाऊं रेजिमेंट किया गया।

कुमाऊं रेजिमेंट की 13वीं बटालियन को रेजांग ला में सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मिली जब अहीर रणबांकुरे चीनियों से डटकर लड़े। यह आजादी के बाद बनने वाली पहली बटालियन थी। अक्टूबर 1948 में कुमाऊंनी और अहीर समुदाय को बराबर-बराबर प्रतिनिधित्व दिया गया। 1960 में 2 कुमाऊं और 6 कुमाऊं, 13 कुमाऊं से अहीरों के ट्रांसफर के बाद कुमाऊं रेजिमेंट में पहली अहीर बटालियन हो गई।

वह दिन था 18 नवंबर 1962 और पूर्वी लद्दाख के रेजांग ला में 17 हजार फीट की ऊंचाई पर 13 कुमाऊं के अहीर जवान मोर्चा संभाले हुए थे। चीन हमला कर देता है और जिस तरह 120 जवानों वाली यह कंपनी उनसे मुकाबला करती है, वह बहादुरी की मिसाल है। मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में 13 कुमाऊं की चार्ली कंपनी ने चीन के सैकड़ों सैनिकों को छठी का दूध याद दिला दिया। 117 जवान मातृभूमि के लिए लड़ते हुए शहीद हो गए जिसमें 114 अहीर थे और गंभीर हालत में केवल तीन सैनिक बचे। शहीद अहीर सैनिक रेवाड़ी-महेंद्रगढ़ इलाके से ताल्लुक रखते हैं। बताया जाता है कि इन 100 सैनिकों ने चीन के 400 सैनिकों को मार गिराया था, जबकि भारतीय सैनिकों के पास उतने आधुनिक हथियार भी नहीं थे।

सर्दी का मौसम खत्म होने के बाद शहीद सैनिकों के शव बरामद हो सके। यह जानकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे कि इन सैनिकों के हाथों में उस समय भी बंदूकें थीं। मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत देश का सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र दिया गया। आठ सैनिकों को वीर चक्र और कई अन्य को सेना मेडल दिया गया था।

यूपी-बिहार, हरियाणा और महाराष्ट्र में भी अहीरों की अच्छी आबादी है और राजनीतिक रूप से उनका दबदबा भी है। लालू यादव हों या अखिलेश यादव अहीर रेजिमेंट की मांग का सभी समर्थन कर चुके हैं। पिछले मंगलवार को राज्यसभा में कांग्रेस के सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने यह मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि 1857 की क्रांति हो या फिर दूसरा विश्व युद्ध, यदुवंशी शौर्य किसी परिचय का मोहताज नहीं है। उन्होंने कहा कि दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान तक फैले यदुवंशियों ने इतिहास में कई बार सीमाओं की रक्षा करते हुए अपना बलिदान दिया है। हुड्डा ने कहा कि यदुवंशियों को सम्मान देने के लिए अहीर रेजिमेंट की स्थापना से बेहतर विकल्प और कुछ नहीं होगा।

केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने बुधवार को कहा कि वह भारतीय सेना में ‘अहीर रेजिमेंट’ के गठन की मांग का ‘पूर्ण’ समर्थन करते हैं। उन्होंने पिछले दिनों प्रदर्शनकारियों से मिलकर उन्हें अपना समर्थन दिया। वह गुरुग्राम के सांसद भी हैं। उन्होंने प्रदर्शनकारियों से कहा कि मांग पूरी कराने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी होगी और इस लड़ाई में वह प्रदर्शनकारियों के साथ हैं। उन्होंने कहा कि न केवल हरियाणा के महेन्द्रगढ़ और रेवाड़ी के लोग बल्कि उत्तर प्रदेश के लोग भी अहीर रेजिमेंट के गठन की मांग कर रहे हैं। मैंने पहले भी इसका समर्थन किया है और भविष्य में भी करता रहूंगा।

हालांकि सेना ने फिलहाल किसी भी नए क्लास या जाति आधारित रेजिमेंट की मांग को खारिज कर दिया है। सेना पहले ही कह चुकी है कि पहले डोगरा रेजिमेंट, सिख रेजिमेंट, राजपूत रेजिमेंट और पंजाब रेजिमेंट जाति या क्षेत्र पर आधारित थे और वे आगे भी जारी रहेंगे लेकिन अहीर रेजिमेंट, हिमाचल, कलिंग, गुजरात रेजिमेंट जैसी मांग को स्वीकार नहीं किया जा सकता।



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