9/11 के 20 साल: जब दुनिया ने पहली बार महसूस किया भारत का दर्द, पढ़ें कैसे बदला आतंक के खिलाफ लड़ाई का तरीका

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9/11 के 20 साल: जब दुनिया ने पहली बार महसूस किया भारत का दर्द, पढ़ें कैसे बदला आतंक के खिलाफ लड़ाई का तरीका

हाइलाइट्स

  • अमेरिका में ट्विन टावर्स पर अल कायदा के हमले को 20 साल पूरे
  • भारत उसके काफी पहले से ही झेल रहा था आतंकवाद का दंश
  • 9/11 हमले के बाद दुनिया ने भारत को गंभीरता से लेना शुरू किया
  • भारत ने हमलों का जवाब देना शुरू किया तो मिला दुनिया का साथ

नई दिल्‍ली
उस दिन जब ट्विन टावर्स मलबे का ढेर बन गए, तब भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने कड़‍ियां जोड़नी शुरू कीं। उन्‍हें शक था कि करीब दो साल पहले, कंधार में इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट IC-814 का अपहरण कहीं 11 सितंबर 2001 के हमले का ट्रायल रन तो नहीं था। दो दशक बाद, यह शक तथ्‍य में बदल चुका है। 20 साल पहले न्‍यूयॉर्क में हुए उस हमले का असर पूरी दुनिया में महसूस किया गया। 9/11 ने आतंकवाद की परिभाषा बदल दी, कई देशों की किस्‍मत ने अलग मोड़ ले लिया और कुछ ने विदेशी नीति तक बदल डाली। दुनिया के कई हिस्‍सों का मानचित्र बदल गया। भारत पर उन हमलों का खासा असर पड़ा। उस हमले की गूंज रह-रहकर भारत की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा नीतियों में गूंजती रही है।

9/11 के बाद पाकिस्‍तान बना आतंकियों का ब्रीडिंग ग्राउंड
9/11 का जिम्‍मेदार अल कायदा था मगर उसने पाकिस्‍तान को नई रणनीति का ब्‍लूप्रिंट दे दिया। उसकी धरती से आतंकवादी समूहों की ऐसी पौध पनपने लगी जिसने आने वाले सालों में भारत को बहुत नुकसान पहुंचाया। हालांकि हर बार नतीजे वैसे नहीं रहे जैसे पाकिस्‍तान ने चाहे थे। जम्‍मू और कश्‍मीर विधानसभा पर अक्‍टूबर 2001 में हमला हुआ, मगर अगले महीने दुस्‍साहस की सीमा पार कर दी गई। जैश-ए-मोहम्‍मद के आतंकियों ने संसद भवन पर हमला कर लिया। भारत ने ‘ऑपरेशन पराक्रम’ से जवाब दिया। पाकिस्‍तान सीमा पर हजारों सैनिकों की तैनाती कर दी। पाकिस्‍तान को आनन-फानन में अफगान सीमा से हटाकर भारतीय सीमा पर फौज तैनाती करनी पड़ी। अगले छह महीने दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर रहा।

भारत को मिली जवाब देने की छूट
अमेरिका ने दोनों देशों के बीच मध्‍यस्‍थता की बहुत कोशिश की। नतीजा जून 2002 में दिखा जब जनरल परवेज मुशर्रफ सीमापार से आतंकियों की घुसपैठ रोकने को तैयार हो गए। संघर्ष विराम की यही शर्त रखी गई थी। 9/11 के बाद से ग्‍लोबल सिक्‍योरिटी को लेकर बातचीत में जबर्दस्‍त बदलाव आया। भारत इससे अछूता नहीं था। पूरी दुनिया अब भारत को ‘संयम’ का पाठ पढ़ाना छोड़ चुकी थी। बुश प्रशासन ने इस्‍लामाबाद से साफ कह दिया कि भारत आतंकवाद के खिलाफ जवाब देने के अपने अधिकार के भीतर है। अब भारत की लड़ाई पर ब्रेक केवल संसाधनों की कमी और राजनीतिक इच्‍छाशक्ति की कमी से लग सकता था, अंतरराष्‍ट्रीय दबाव में नहीं।

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तारीखें बदलती रहीं, आतंक का शिकार बनता रहा भारत
आतंकवाद की भारतीय परिभाषा को ‘पाकिस्‍तान-भारत की दुश्‍मनी’ के चश्‍मे से देखना बंद हो गया। भारत को आतंकवाद के खिलाफ दुनिया की लड़ाई में साझीदार मान लिया गया। हमने कोलकाता के अमेरिकन सेंटर पर आतंकी हमला देखा, गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर, मुंबई (2002-03), दिल्‍ली (2005), IISc बैंगलोर (2005), वाराणसी (2006) में भी हमले हुए। फिर मुंबई, दिल्‍ली, जयपुर, लखनऊ और बैंगलोर में योजनाबद्ध ढंग से बम धमाकों को अंजाम दिया गया। फिर नवंबर 2008 में भारत ने 9/11 जैसा आतंकी हमला झेला। तब मुंबई में कई जगहों पर लश्‍कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने जमकर खूब बहाया।

…जब भारत ने बदला रवैया तो दुनिया आई साथ
2014 के बाद हमलों में और तेजी आई। आतंकियों ने सुरक्षा बलों और रक्षा प्रतिष्‍ठानों को निशाना बनाना शुरू कर दिया था। पाकिस्‍तान की योजना भारत के भीतर ही आतंकी तैयार करने की थी। आतंकियों के बीच यह सोच बैठा दी गई कि सुरक्षा बलों पर हमला आतंकी कृत्‍य नहीं है। 9/11 के करीब एक दशक बाद भारत ने सीमापार के आतंकवाद का कड़ाई से जवाब देना शुरू किया। 2015 के बाद से भारत ने पाकिस्‍तान में घुसकर लड़ना शुरू किया। भारत अपनी रणनीतियां बदल चुका था। उनमें से दो का जिक्र जरूरी है।


2011-12 के बीच पाकिस्‍तान ने अपना परमाणु हथियार ‘नसर’ सामने रखा। भारत ने संकेत दिया कि अगर छोटा सा भी हमला हुआ तो वह बड़े पैमाने पर परमाणु हमला करेगा। दूसरा मौका 2016 में आया। उरी में पाकिस्‍तानी आतंकियों के हमले के बाद भारत ने पूरी ताकत के साथ जवाब दिया। उसी साल की गईं सर्जिकल स्‍ट्राइक्‍स हों या 2019 में बालाकोट एयर स्‍टाइक। भारत ने बार-बार कहा कि जम्‍मू और कश्‍मीर में सीमापार से आतंकवाद की समस्‍या है और दुनिया ने उसपर ध्‍यान भी दिया।

अमेरिका का करीबी बन चुका है भारत
बड़ी तस्‍वीर देखें तो 9/11 ने भारत और पाकिस्‍तान को लेकर अमेरिका के रुख में भी बदलाव किया। करगिल के बाद इसकी शुरुआत हो चुकी थी मगर रफ्तार 9/11 के बाद पकड़ी। 2003 में अमेरिका ने पाकिस्‍तान को गैर-NATO देशों में प्रमुख सहयोगी बनाना शुरू किया लेकिन भारत के साथ भी उसकी नजदीकियां बढ़ती जा रही थीं। 2008 में दोनों देशों के बीच परमाणु समझौता होने तक पॉलिसी काफी क्लियर हो चुकी थी।

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विदेश नीति के लिहाज से देखें तो अफगानिस्‍तान में 20 साल तक भारत का शानदार रिकॉर्ड रहा। वह विकास में प्रमुख साझेदार था और पाकिस्‍तान की रणनीतिक गहराई को कम करता जा रहा था। तालिबान की वापसी के साथ ही वह सब मिट्टी में मिल गया है। इन 20 सालों में भारत और अमेरिका के रिश्‍ते पूरी तरह बदल गए हैं।

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9/11 हमले के ठीक बाद की तस्‍वीर।



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