84 कोस परिक्रमा : जानिए आदिबद्री और कनकांचल पर्वत की महिमा जिसके लिए संत विजय दास ने प्राण न्योछावर कर दिए

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84 कोस परिक्रमा : जानिए आदिबद्री और कनकांचल पर्वत की महिमा जिसके लिए संत विजय दास ने प्राण न्योछावर कर दिए

84 कोस परिक्रमा : जानिए आदिबद्री और कनकांचल पर्वत की महिमा जिसके लिए संत विजय दास ने प्राण न्योछावर कर दिए

भरतपुर: भगवान श्रीकृष्ण और उनकी लीलाओं का उल्लेख जहां भी होता है वहां ब्रजभूमि या मथुरा का जिक्र जरूर होता है। पूरी दुनिया में भगवान श्रीकृष्ण के भक्त बसते हैं। और श्रीकृण भक्तों के लिए ब्रजभूमि भी देवतुल्य है, जगत विख्यात है। यूं तो गोवर्धन हो या भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा, दोनों ही वर्तमान में उत्तर प्रदेश में हैं। लेकिन श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़ी 84 कोस की परिक्रमा का क्षेत्र राजस्थान के भरतपुर तक फैला है। यहीं हैं आदिबद्री और कनकांचल पर्वत। ये वो पर्वतीय इलाका है जिसे देवताओं की तरह पूजा जाता है। यही कारण है कि इस पूरे इलाके को खनन से बचाने के लिए 18 सालों तक आंदोलन चला। कई टुकड़ों में इस आंदोलन में साधु संतों और ब्रजवासियों ने हिस्सा लिया। यहां की धार्मिक आस्था और पाैराणिक संपदा को बचाने का भरसक प्रयास किया। लेकिन पहाड़ों से पत्थर निकालना और उन्हें खोखला किया जाता रहा। आदिबद्री और कनकांचल पर्वतों में खनन नहीं थमा तो पिछले साल 16 जनवरी से फिर से आंदोलन शुरू हुआ। साधु संतों ने नए सिरे से आंदोलन की रणनीति बनाई। 551 दिन तक चले इस आंदोलन में कई बार सरकार से गुहार लगाई गई, लेकिन बात नहीं बनी। आखिरकार संत विजयदास ने 20 जुलाई 2022 को जब अपने प्राण न्योच्छावर कर दिए। इसपर राजस्थान सरकार को विवश होना पड़ा। अब सरकार ने यहां की 749 हेक्टेयर भूमि वन विभाग को सौंपी दी है।

इन पर्वतों को भगवान की तरह पूजा जाता है
मथुरा, गोवर्धन ही नहीं पूरा ब्रज क्षेत्र भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थली रहा है। उत्तर प्रदेश के मथुरा सहित यह ब्रज क्षेत्र राजस्थान तक फैला है। इसमें मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन, गोकुल, महावन, बलदेव, नन्दगांव, बरसाना जहां यूपी में हैं तो डीग और काम्यवन आदि पौराणिक स्थल आज के राजस्थान में हैं। यहां भगवान श्रीकृष्ण की कई लीलाओं को पौराणिक वर्णन मिलता है। यूं तो अक्सर गोवर्धन परिक्रमा का जिक्र सुनने को मिलता है लेकिन ब्रज की 84 कोस परिक्रमा में भरतपुर का इलाका भी शामिल है। इनमें आदिब्रदी धाम और कनकांचल पर्वत भी पूजे जाते हैं।

84 कोस परिक्रमा जिसमें हैं सारे धाम
वेद-पुराणों में ब्रज की 84 कोस की परिक्रमा का खासा महत्व है। ब्रज भूमि भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की लीला भूमि है। ब्रजवासियों की मान्यता है कि नंद बाबा और देवकी मां ने जब भगवान श्रीकृष्ण से सभी धामों के दर्शन की इच्छा जताई थी। तब नंद बाबा और देवकी मां बूढ़े हो चुके थे और ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे सभी धामों को ब्रज में बुलाने की बात कही। इस पर नंद बाबा और देवकी मां ने सहमति दी थी। भगवान श्री कृष्ण ने नंद बाबा और देवकी मां को दर्शन करवाने के लिए सभी धामों को ब्रज में आमंत्रित किया। यहां की 84 कोस की परिक्रमा को वारह पुराण में बताया गया है कि पृथ्वी पर 66 अरब तीर्थ हैं और वे सभी चातुर्मास में ब्रज में आकर निवास करते हैं।
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Braj chaurasi kos parikrama

खोह इलाके में भगवान कृष्ण करते रासलीला
ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण खोह इलाके में पर्वतों में गोपियों के साथ रासलीला किया करते थे। वह घंटों घंटों पर्वतों में गोपियों के साथ रहते। गोपियों को अभिमान होने लगा की वह उसके साथ रहती हैं जो पूरी सृष्टि रचयिता है। गोपियों को इस बात का अभिमान होने लगा। जैसे ही गोपियों की यह बात श्रीकृष्ण भगवान को पता लगी तो वह अदृश्य हो गए। जिसके बाद गोपियां विचलित हो उठी वह ब्रज के पर्वतों में श्रीकृष्ण भगवान को ढूंढ़ती रहीं।

राधा रानी को हुआ अभिमान तो गायब हुए श्री कृष्ण
ब्रज में कहा जाता है कि एक बार राधा रानी ब्रज के पर्वतों में पेड़ों से फूल तोड़ रहीं थीं। राधा रानी का जब हाथ पेड़ों तक नहीं पहुंचा तो भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने कंधे पर बैठा लिया। राधा रानी को भी अभिमान होने लगा की वह सृष्टि के रचयिता के कंधे पर बैठ कर फूल तोड़ रहीं हैं। तब भगवान फिर से अदृश्य हो गए। भगवान की अदृश्य होने के बाद राधा रानी और गोपियां उन्हें ढूंय़ने लगीं। वह अलग-अलग तरह स्वाग बनाकर भगवान श्री कृष्ण को ढूंढ़ती रहीं। ब्रज में श्रीकृष्ण की लीलाओं की इस तरह की कई कहानियां हैं जो भगवान श्री कृष्ण, राधा रानी और गोपियों से जुड़ी हुईं हैं।
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अब खनन ने ब्रज क्षेत्र की इन पहाड़ियों में नहीं होगा खनन
भरतपुर के डीग-कामां और नगर इलाके में पहाड़ियों की श्रृंखला है। ये पहाड़ियां ब्रज चौरासी कोस यात्रा में आती हैं। संत समाज के मुताबिक ये पहाड़ियां तीर्थ स्थल हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान कृष्ण यहां लीलाएं करते थे। 18 सालों तक साधु संतों के आग्रह, आंदोलन और आत्मदाह जैसे प्रयासों के बाद अब राजस्थान सरकार ने फैसला लिया है। अब ब्रज की आदिब्रदी और कनकांचल पर्वत इलाके में खनन पर रोक लगा दी गई है। साथी राजस्व भूमि को वन विभाग के सपूर्द कर दिया गया है।

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संत विजयदास ने प्राण न्योच्छावर किए, 2004 से चल रहा था आंदोलन
आदिबद्री और कनकांचल में खनन को पूरी तरह बैन करने की मांग 18 साल पहले 2004 से उठ रही थी। तब से कई टूकड़ों में आंदोलन हुए। पहला आंदोलन बरसाना के मान मंदिर के संत रमेश बाबा ने शुरू किया था। फिर 2007 में बाबा हरिबोल दास की अगुवाई में भरतपुर के बोलखेड़ा में संतों ने बड़ा आंदोलन किया। 4 जुलाई 2022 को भी इन्हीं संत बाबा हरिबोल दास ने मुख्यमंत्री निवास के सामने आत्मदाह की चेतावनी दी थी। हरिबोल के साथ 14 साधु-संत आत्मदाह के लिए तैयार हुए थे, जिनमें विजयदास भी थे। इसके बाद 18 जुलाई को मंत्री विश्वेंद्र सिंह ने संतों से वार्ता की। वन क्षेत्र घोषित करने की मांग पर विश्वेंद्र सिंह ने आश्वासन दिया। लेकिन अगले ही दिन 19 जुलाई की सुबह आंदोलनरत एक बाबा नारायण दास पसोपा में मोबाइल टावर पर चढ़ गए। 20 जुलाई की दोपहर तक नारायण दास टावर पर थे। उधर, बाबा विजयदास ने अचानक दोपहर 1 बजे पसोपा में खुद को आग लगा ली। इसके बाद 23 जुलाई को दिल्ली के एक अस्पताल में इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली।

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