600 साल पुराने तालाब के संरक्षण से बढ़ा जल स्तर: 12 महीने भरा रहता पानी, दूसरे देशों से पक्षी भी आते – Jodhpur News h3>
जोधपुर के बिलाड़ा क्षेत्र में जल संरक्षण को लेकर लोगों की दूरदर्शी सोच और प्रशासन की सक्रियता ने बिलाड़ा क्षेत्र के पारंपरिक जल स्रोतों को न केवल संजीवनी दी है बल्कि इन्हें जैव विविधता के स्वर्ग में बदल दिया है। इसके चलते कापरड़ा, रामासनी और ओलवी के
.
कापरड़ा गांव के बुजुर्ग पूनमदास और सरपंच प्रतिनिधि डूंगर सिंह कापरड़ा ने बताया- उनके गांव का तालाब 600 साल से भी ज्यादा पुराना है। इतनी पुरानी एक बावड़ी भी है। ग्रामीण प्रशासन के सहयोग से इसकी मरम्मत और देखरेख करते हैं। तालाब में 12 महीने पानी भरा रहता है। कापरड़ा के साथ ही आसपास के अन्य गांव के लोग भी इसका उपयोग करते हैं। इससे जलस्तर भी बना रहता है।
100 से ज्यादा प्रजातियों का प्रवास
हर साल सेंट्रल एशिया, मंगोलिया जैसे दूरस्थ देशों से हजारों किलोमीटर की यात्रा कर आने वाले 10 से 12 हजार पक्षी यहां शीत ऋतु बिताते हैं। ईथोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया की संयुक्त सचिव प्रो. रेणु कोहली बताती हैं कि क्षेत्र में 100 से ज्यादा प्रजातियों के पक्षी पंजीकृत हैं। इनमें नॉर्दर्न पिंटेल, स्पॉट-बिल्ड डक, कॉमन टील, ग्रे लग गूज, पैलिकन, शिकरा, मार्श हैरियर और दुर्लभ लाल कलगीदार पोचार्ड जैसी अनेक प्रजातियां शामिल हैं।
प्राकृतिक भोजन, शांत वातावरण और संरक्षण बना पक्षियों की पसंद
ओलवी और रामासनी के तालाब पक्षियों को न केवल पानी बल्कि प्रचुर मात्रा में जलमग्न वनस्पति और कीट प्रदान करते हैं, जो इनके भोजन का मुख्य स्रोत हैं। यहां बारहेडेड गीज, ग्रेलग गूज, नॉर्दर्न शॉवेलर जैसे जलपक्षियों की बड़ी संख्या देखने को मिलती है। ओलवी तालाब पर रफ का 1000 से अधिक पक्षियों का झुंड देखा गया है।
स्थानीय प्रशासन की ओर से जलाशयों की सफाई, वर्षा जल संग्रहण की सतत व्यवस्था और अतिक्रमण रोकने के प्रयासों ने इन पारंपरिक जल स्रोतों की गुणवत्ता बनाए रखी है, जिससे इन पक्षियों को एक सुरक्षित वातावरण मिल सका है।
इस बार ओलवी तालाब पर सैंडग्राउज की असाधारण संख्या दर्ज की गई है। जो पक्षी पहले कभी-कभार दिखते थे, अब झुंड के झुंड में नजर आ रहे हैं ।यह जल संरक्षण और जैव विविधता के बीच का जीवंत रिश्ता दर्शाता है।
सरकार की पहल और प्रशासन का प्रयास
राज्य सरकार द्वारा जल जीवन मिशन, अमृत सरोवर योजना और जलाशयों के पुनर्जीवन की दिशा में उठाए गए कदमों के फलस्वरूप बिलाड़ा क्षेत्र के पारंपरिक जल स्रोत आज केवल पानी के भंडार नहीं, बल्कि जैविक विविधता के केंद्र बन गए हैं।
ओलवी सरपंच अशोक बिश्नोई के अनुसार, कुछ संरक्षित क्षेत्र घोषित किए जाने तथा प्रशासन और स्थानीय लोगों के समर्पण ने इन जलाशयों को एक नई पहचान दी है।