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पुरातत्व संग्रहालय में 3 प्राचीन मूर्तियां रखी गयीं
फोटो:

17नालंदा01: पुरातत्व संग्रहालय नालंदा में बेसाल्ट प्रस्तर मूर्तियों का लोकार्पण करते नालंदा विवि के वीसी अभय कुमार सिंह, महाविहार के वीसी आरएन प्रसाद, गौतमी भट्टाचार्य व शंकर शर्मा।

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नालंदा, निज संवाददाता।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण अंतर्गत पुरातत्व संग्रहालय में बुधवार को तीन प्राचीन मूर्तियों की स्थायी प्रदर्शनी के रूप में लोकार्पण किया गया। अतिथियों के दीप प्रज्ज्वलन के बाद नालंदा यूनिवर्सिटी व नव नालंदा महाविहार के कुलपति ने संयुक्त रूप से लोकार्पण किया। ये सभी मूर्तियां इस संग्रहालय में वर्षों से रिजर्व कलेक्शन में सुरक्षित रखी गयी थीं। ये बसाल्ट प्रस्तर की मूर्तियां जैन, बौद्ध तथा हिन्दू धर्म से संबंधित है। यह आजादी के पहले इस संग्रहालय को विभिन्न समय में प्राप्त हुए थे। पहली मूर्ति भगवान विष्णु की है, जो 10वीं-11वीं सदी की है। इसमें मुकुटधारी सिरोभूषण से अलंकृत 136 सेमी लंबी चतुर्भुज विष्णु की इस स्नातक प्रतिमा में शंख, चक्र, गदा तथा पद्म लिये हुए हैं। उनके दोनों ओर स्त्री एवं पुरु ष परिचारक की मूर्ति है। कमल पीठिका के दोनों ओर उपासक बैठे हें। यह मूर्ति बिहार शरीफ से 1959 में इस संग्रहालय को प्राप्त हुआ था। दुसरी मुर्ति 132 सेमी लंबी लघु चतुर्मुखी जैन मंदिर 7 वीं शदी ई. की है। जो राजगीर के वैभव गिरि में अवस्थित सोनभंडार के पश्चिमी गुफा से प्राप्त हुआ था। जिसे इस संग्रहालय में 1940 के दशक में लाया गया था। इस मंदिर में चारो ओर ऋषभदेव, अजितनाथ, संभवनाथ तथा अभिनंदन जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां उत्कीर्ण है। सभी तीर्थंकर के दोनों ओर चवर धारण किये हुए पुरु ष परिचर तथा गंदर्भ की मूर्तियां है। तीथ्रंकर के उपर लघु छत्रावलि है। जिनके शीर्ष पर आंलकश बना है। तीर्थंकर के चरण के नीचे पीठिका पर उनके व्यक्तिगत वाहन व लाछन ऋषभ, हाथी, घोड़ा तथा बंदर उत्कीर्ण है। इस संपूर्ण कला स्वरूप को मूर्ति पस्थापत्य कला में सर्वतोभद्र आकृति कहा जाता है। इसे जैन धर्म में अति पवित्र माना जाता है। 140 सेमी लंबी तीसरी मूर्ति 10 वीं-11 वीं शती ई. के भगवान बुद्ध की है। इसमें बुद्ध को भूमिस्पर्श मुद्रा में पीपल वृक्ष के नीचे सिंहासन पर बैठे दर्शाया गया है। जिनके दायीं ओर बोधिसत्व तथा बायीं ओर मैत्रेय खड़े हैं। उष्णीय सुसजिजत घुंघराले बालों से युक्त बुद्ध के उपर प्रभावलि के दोनों ओर पुष्प की माला लिये गंधर्वों को दर्शाया गया है। प्रभामंडल में संस्कृत में बौद्ध मंत्र- ये धर्म हेतु प्रभवा हेतु तेषा तथागत: ह्यवदत् तेषा च यो निरोध एवं वादी महाश्रमण: का अभिलेख उत्कीर्ण है। यह मूर्ति इस संग्रहालय को 1992 में प्राप्त हुआ था। मुख्य अतिथि नालंदा विवि के कुलपति प्रो. अभय कुमार सिंह ने कहा हमारी विरासत हमारी शान है। इसको सहेजने की जिम्मेदारी हम सबों का है।आज लगाई गई प्रदर्शनी काफी अनुकरणीय है। हमारे पास समृद्ध विरासत है। सांस्कृतिक लगाव आने पर हीं हम विरासत को सहेज सकेंगे। म्यूजियम में ऐसा आकर्षण होना चाहिए कि पर्यटक बार बार यहां आने को बाध्य हों। नव नालंदा महाविहार के कुलपति प्रो. रामनक्षत्र प्रसाद ने कहा मगध के कदम कदम पर धरोहर छिपी है। इन धरोहरों को प्रदर्शित करने में आम नागरिकों की इच्छा शक्ति होनी चाहिए। प्राचीन नालंदा महाविहार को बुद्ध विहार का नाम दिया गया था। बुद्ध मूर्ति पूजा नहीं करते थे लेकिन पूजा को मानते थे। पुरातत्वविद गौतमी भट्टाचार्या ने कहा यहां मूर्तियों का कलेक्शन बहुत अच्छा है। आसपास में जो मुर्तियां मिलती है उसे हम संरक्षित करने का प्रयास करते हैं। यह म्यूजियम 2015 का बना हुआ है। इस साल के मध्य तक आपको इसमें विकास देखने को मिलेगा। इस म्यूजियम को अपग्रेट किया जायेगा। आभासी वास्तविकता का भी लाभ पर्यटकों को मिलेगा। पुरातत्वविद् शंकर शर्मा ने कहा कि इन मूर्तियों को संग्रहालय परिसर में एक स्कल्प्चर शेड बनाकर रखा गया है। इन मूर्तियों के लगने से पर्यटकों व मूर्ति कला में रु चि रखने वाले लोगों को नई जानकारी मिलेगी तथा संग्रहालय के अनूठे संग्रह से अवगत होंगे। इससे मूर्तिकला पर अनुसंधान करने वालों को लाभ होगा। सुविधा के लिए इनफार्मेशन साईनेज भी लगाये गये हैं। शोकेस तथा गैलरी में सौर्य उर्जा से प्रज्वलित होने वाले लाइट लगाये गये हैं। मौके पर नालंदा विवि के छात्र-छात्राओं के साथ पुरातत्व, इतिहास, कला, धर्म व दर्शन प्रेमी उपस्थित रहे।

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