5 मौतों वाली बस पर परिवहन मंत्री का झूठा दावा: दयाशंकर बोले- बस की परमिट 2023 तक थी, ARTO की रिपोर्ट- 16 मई तक वैध लाइसेंस – Lucknow News

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5 मौतों वाली बस पर परिवहन मंत्री का झूठा दावा:  दयाशंकर बोले- बस की परमिट 2023 तक थी, ARTO की रिपोर्ट- 16 मई तक वैध लाइसेंस – Lucknow News
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5 मौतों वाली बस पर परिवहन मंत्री का झूठा दावा: दयाशंकर बोले- बस की परमिट 2023 तक थी, ARTO की रिपोर्ट- 16 मई तक वैध लाइसेंस – Lucknow News

लखनऊ में बुधवार सुबह चलती बस में आग लगने से 5 लोगों की मौत हो गई। इस घटना पर बाद राज्य के परिवहन मंत्री दया शंकर सिंह ने कहा- बस का परमिट 2023 में ही समाप्त हो गया था। लेकिन, बागपत के ARTO प्रशासन राघवेंद्र सिंह की भेजी गई रिपोर्ट की मानें तो बस की प

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दरअसल, लोकभवन में कैबिनेट बैठक में शामिल होकर बाहर निकले परिवहन मंत्री दया शंकर सिंह से पत्रकारों ने बस हादसे पर सवाल किया। इस दौरान उन्होंने कहा- यह बस बिहार से दिल्ली जा रही थी। बागपत में रजिस्टर्ड थी। हादसे में 5 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। यह घटना सुबह करीब 5 बजे की है। घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है।

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मंत्री दयाशंकर ने यह भी कहा- मामले की जांच की जा रही है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।’

बागपत के सीनियर ARTO प्रशासन की रिपोर्ट देखिए…

बागपत के एआरटीओ प्रशासन की रिपोर्ट।

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बागपत के एआरटीओ प्रशासन के अनुसार परमिट अवधि।

गाड़ी से संबंधित जानकारी।

बागपत ARTO की रिपोर्ट मंत्री के बयान से अलग है

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मंत्री के बयान के कुछ ही घंटों बाद बागपत के सीनियर ARTO प्रशासन ने आग लगने वाली बस UP17 AT 6372 को लेकर जो रिपोर्ट पेश की, उसने मंत्री के दावों की पोल खोल दी। एआरटीओ की रिपोर्ट के अनुसार बस की कर वैधता 31 मई 2025 तक है। बस की फिटनेस 7 अप्रैल 2026 तक मान्य है। बस की बीमा 13 जुलाई 2025 तक वैध। बस की स्पेशल परमिट 10 से 16 मई 2025 तक है।

ARTO प्रशासन की रिपोर्ट सबसे अहम बात है कि बस की स्पेशल परमिट 6 मई 2025 तक पूरी तरह वैध था। हादसा 15 मई को हुआ, यानी बस उस समय परमिट के दायरे में थी।

मीडिया से बचने के लिए परिवहन मंत्री ने दिया गलत बयान

ARTO प्रशासन की रिपोर्ट से परिवहन मंत्री का दावा झूठा साबित हो गया। अब लोग सवाल उठा रहे हैं कि मंत्री ने बिना जांच पूरी हुए, एक वैध परमिट वाली बस को अवैध क्यों बताया? क्या यह ध्यान भटकाने की कोशिश थी?

हादसे में सबसे बड़ी बात यह है कि जिस बस की फिटनेस, बीमा और परमिट वैध थी। उसमें इमरजेंसी विंडो क्यों नहीं खुली? तय सीमा से ज्यादा सवारी क्यों बैठाए गए? क्या यह विभागीय लापरवाही का मामला है? क्या परिवहन विभाग अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रहा है? इन सवालों के जवाब आने बाकी है।

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