3 साल से ग्रीन सिग्नल का इंतजार, नोएडा-62 से मोहननगर और वैशाली से साहिबाबाद के बीच प्रस्तावित है मेट्रो

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3 साल से ग्रीन सिग्नल का इंतजार, नोएडा-62 से मोहननगर और वैशाली से साहिबाबाद के बीच प्रस्तावित है मेट्रो

3 साल से ग्रीन सिग्नल का इंतजार, नोएडा-62 से मोहननगर और वैशाली से साहिबाबाद के बीच प्रस्तावित है मेट्रो


आशु मिश्रा, गाजियाबाद: वसुंधरा, वैशाली और इंदिरापुरम के लोगों की ओर से पिछले कई महीनों से रोपवे की जगह मेट्रो विस्तार की मांग गलत नहीं है। बल्कि वह सरकारी एजेंसियों की ओर से ही बनाई गई योजना, जिसे शासन स्तर पर भेजने के बाद सब भूल चुके हैं उसे लागू करने की मांग कर रहे हैं। इस योजना को लागू करवाने को लेकर पैदल मार्च तक निकाला जा चुका है। इसके बावजूद न तो जीडीए और न ही शासन स्तर पर मेट्रो विस्तार की प्रक्रिया में कोई डिवेलपमेंट किया गया है।

शासन स्तर पर 2019 में जो डीपीआर 3325.22 करोड़ की भेजी गई थी, वह ज्यों की त्यों है। हालांकि जीडीए का कहना है कि बजट अधिक होने के कारण ही मेट्रो विस्तार की योजना आगे नहीं बढ़ पा रही है। पूर्व उपाध्यक्ष कंचन वर्मा की ओर से इस मामले में उत्तर प्रदेश के आवास एवं शहरी नियोजन प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर कुल डीपीआर का 50 प्रतिशत देने और डीएमआरसी और शहरी कार्य मंत्रालय से भी बाकी का बजट देने की मांग की गई थी, लेकिन यह प्रयास सफल नहीं हुआ। डीपीआर को दो बार संशोधित करके भेजा गया था। पहली बार में लगभग 2400 करोड़ रुपये की डीपीआर तैयार करके उच्चाधिकारियों को भेजी गई थी, जो ठंडे बस्ते में डाल दी गई है।

इन दो ट्रैक पर यात्रियों को मेट्रो के दौड़ाने का है इंतजार

1. वैशाली से मोहननगर तक मेट्रो
इस प्रस्तावित मेट्रो कॉरिडोर की लंबाई 5.04 किमी है। इसका निर्माण एलिवेटेड किया जाना है। इस रूट पर 4 स्टेशन बनाए जाने प्रस्तावित हैं, जहां से यात्री अपने गंतव्य के मेट्रो ले सकेंगे। इनमें प्रह्लादगढ़ी, वसुंधरा सेक्टर-14, साहिबाबाद व मोहननगर शामिल हैं। इस प्रॉजेक्ट कि अनुमानित लागत 1808.22 करोड़ रुपये आंकी गई थी, जिसकी डीपीआर आज से पांच साल पहले तैयारी गई थी। यही नहीं, इस कॉरिडोर की खास बात यह थी कि साहिबाबाद मेट्रो स्टेशन का दिल्ली मेरठ आरआरटीएस स्टेशन के साथ कॉमन प्रवेश और निकास होगा। उस समय के सर्वे अनुसार इस ट्रैक के बनने से रोज 37,438 यात्रियों को सीधा लाभ पहुंचना है।

हमारी तरफ से शासन स्तर पर मेट्रो विस्तार पर जो भी कागज या डीपीआर भेजी जानी थी वह पहले ही भेजी जा चुकी है। इनका जवाब अब शासन स्तर से आना बाकी है। जवाब आने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।

राकेश गुप्ता, चीफ इंजीनियर, जीडीए

2. नोएडा-62 से साहिबाबाद का ट्रैक
इस प्रस्तावित मेट्रो रूट की कुल लंबाई 5.017 किमी है। यह मेट्रो ट्रैक भी एलिवेटेड बनना, जिस पर कुल 5 स्टेशन बनाए जाने प्रस्तावित हैं। इनमें वैभवखंड, डीपीएस इंदिरापुरम, शक्ति खंड, वसुंधरा सेक्टर-5 और साहिबाबाद शामिल हैं। इस मेट्रो विस्तार के लिए कुल 1517.01 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है, जो कि आज से पांच साल पहले का अनुमान है। जीडीए की ओर डीपीआर बनाने से पूर्व किए गए सर्वे में बात सामने आई थी कि इस कॉरिडोर के बनने के बाद से रोज 30,663 यात्री सफर कर सकेंगे।

मंत्री और अधिकारियों से मिल चुके हैं लोग
इन दोनों रूटों पर मेट्रो विस्तार की मांग को लेकर लोग लखनऊ में कई बड़े अधिकारियों और मंत्रियों तक से मिल चुके हैं। इसमें संघर्ष समिति से लेकर, फेडरेशन ऑफ एओए और यहां तक कि कई पार्षद भी शामिल हैं। 26 और 27 को गाजियाबाद में मुख्यमंत्री दौरे के दौरान भी लोगों ने मेट्रो विस्तार को लेकर मिलने का समय मांगा था, लेकिन वह संभव नहीं हो सका। लोगों का कहना है कि कोई भी अन्य परियोजना मेट्रो की जगह नहीं ले सकती है।

हमने पैदल मार्च मेट्रो विस्तार के लिए किया था। क्योंकि वैशाली, इंदिरापुरम और वसुंधरा से बड़ी संख्या में लोगों को मेट्रो की जरूरत पड़ती है। इंदिरापुरम से वैशाली या वसुंधरा से मोहननगर तक जाने में ऑटो और ई-रिक्शा के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है।

संजय सिंह, पार्षद, वॉर्ड-100

नोएडा-62 के आगे रुका काम
नोएडा-62 से आगे इंदिरापुरम की तरफ एक अतिरिक्त मेट्रो पिलर भी बना हुआ है। जो इस बात को दर्शाता है कि यह प्रॉजेक्ट शुरू तो हुआ था, लेकिन फंडिंग के कारण ही बीच में रुक गया।

ये प्रॉजेक्ट भी रहे हैं चर्चा में
नोएडा इलेक्ट्रॉनिक सिटी से साहिबाबाद और वैशाली से मोहननगर के बीच में नियो मेट्रो का प्रॉजेक्ट भी जीडीए अधिकारियों की ओर से बनाया गया है। इस पर जीडीए अधिकारियों ने कुछ दिन पहले सर्वे भी किया था। वैशाली, वसुंधरा और इंदिरापुरम के लोगों की ओर से रोपवे प्रॉजेक्ट के विरोध के बाद यह कदम उठाया गया था। रोपवे प्रॉजेक्ट का सुझाव सांसद वीके सिंह की ओर से दिया गया था, जिस पर जीडीए ने 2021 में काम करना शुरू किया था, लेकिन लोगों के विरोध के कारण इसे बंद कर दिया गया। रोपवे प्रॉजेक्ट को बनाने में 450 करोड़ का खर्चा था। जो मेट्रो से कई गुणा कम था, लेकिन लोगों का कहना था कि यह बहुत अधिक उपयोगी नहीं होगा।

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