दो बार मौत से जीता तो करोड़ों की दौलत छोड़ कर भिक्षु बनने चला सीए

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कुछ हादसे आपकी ज़िन्दगी बदल देते हैं. ज़िन्दगी में अचानक मिली किसी खुशी या गम से आपके जीने का ढंग ही बदल जाता है. दो बार मौत के मुह से बचकर निकले एक युवक की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. 24 साल के मोक्षेष शाह अपने पिता का 100 करोड़ का कारोबार छोड़कर जैन भिक्षु बनने वाले हैं. पेशे से सीए मोक्षेष को 19 अप्रैल को एक कार्यक्रम के दौरान दीक्षा दी जाएगी, जिसके बाद उनका भिक्षु जीवन शुरु हो जाएगा. रत्न मुनिराज जिनप्रेमविजय जी महाराज अहमदाबाद के नजदीक अमियापुर में स्थित तपोबल संस्कारपीठ में मोक्षेष को दीक्षा प्रदान करेंगे.

ख़ुशी के सही मायने कुछ अलग हैं

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में रहने वाला मोक्षेष का परिवार मूलरुप से गुजरात से है. दिलचस्प बात ये है कि मोक्षेष के पिता के कारोबार का सालाना टर्नओवर 100 करोड़ रुपए है, लेकिन मोक्षेष ने सबकुछ छोड़ने का फैसला कर लिया है. मोक्षेष का मानना है कि जीवन में पैसा ही सबकुछ नहीं है, यही वजह है कि सभी पैसे वाले लोग ख़ुश नहीं हैं. आंतरिक ख़ुशी कुछ पाने में नहीं, बल्कि कुछ देने में है. मोक्षेष ने बताया कि सीए बनने के बाद मैंने 2 साल बिज़नेस में लगाए, लेकिन इस बीच मुझे अहसास हुआ कि अपनी कंपनी की बैलेंस शीट बढ़ाने के बजाए, मुझे अपने पुण्य की बैलेंस शीट बढ़ाने की ज़रुरत है. यही वजह है कि मैने दीक्षा लेकर जैन भिक्षु बनने का फैसला किया. उनके इस फैसले पर माता-पिता के रिएक्शन पर पूछे गए सवाल पर मोक्षेष ने कहा कि मैं पिछले साल ही दीक्षा लेना चाहता था, लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे इसकी इजाज़त नहीं दी. अब जब माता-पिता ने इजाज़त दे दी है तो फिर मैंने जैन भिक्षु बनने का फैसला किया है.

2003 Mokshesh Shah 1 -

जीवनदान ने बदला जीवन

मोक्षेष ने बताया कि वह 2 बार मौत के मुंह से निकल चुके हैं. एक बार जावेरी ब्लास्ट के वक्त और दूसरा कुछ समय पहले पुणे-मुंबई एक्सप्रेसवे पर हुए हादसे के दौरान. मोक्षेष का कहना है कि दोनों घटनाओं ने उन्हें हिलाकर रख दिया. इसलिए अब जो उन्हें ये जिंदगी मिली है, उसे वह पुण्य के कामों में बिताना चाहते हैं. मोक्षेष ने युवाओं को संदेश देते हुए कहा कि मोक्ष पाना परम आनंददायक बात है, लेकिन हमें जीवन में दूसरों की मदद करनी चाहिए. तीर्थांकर परमात्मा ने भी हमेशा दूसरों की मदद की. बता दें कि पिछले साल गुजरात बोर्ड के टॉपर रहे वर्षिल शाह भी जैन धर्म की दीक्षा लेकर भिक्षु बन चुके हैं.