2022 में करिश्माई प्रदर्शन को बेताब रालोद का पश्चिमी यूपी में है जनाधार, जानिए पूरी डिटेल

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2022 में करिश्माई प्रदर्शन को बेताब रालोद का पश्चिमी यूपी में है जनाधार, जानिए पूरी डिटेल

Rashtriya Lok Dal Party लंबे समय से खोई हुई अपनी राजनैतिक जमीन तलाशने के लिए परिवर्तन के साथ वेस्ट में निकली रालोद को चुनाव 2022 से काफी उम्मीदें हैं। इस बार किसान आंदोलन के बीच फिर से रालोद पश्चिमी यूपी में गठबंधन के कंधों पर जनाधार जुटाने में लगी है।

 

पार्टी राष्ट्रीय लोकदल
स्थापना 1998
संस्थापक चौधरी अजित सिंह
उद्देश्य किसानों की आवाज बनना और हरित प्रदेश का निर्माण
जनाधार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रमुख जिले

शिवमणि त्यागी

NEWS 4 SOCIAL, लखनऊ.

25 वर्ष पुरानी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल ( रालोद ) यूपी में अपनी खोई सियासी जमीन तलाश रही है। वर्तमान में पार्टी के पास न तो कोई सांसद हैं और न ही विधायक। बीते पंचायत चुनावों में भी पार्टी कोई खास करिश्मा नहीं कर पाई। सिर्फ बागपत में पार्टी की एक जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। 2017 का विस चुनाव सपा और कांग्रेस संग मिलकर लड़ने वाली रालोद इस बार भी सपा के साथ गठबंधन में हैं। पश्चिमी यूपी में चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी से भी गठबंधन की कोशिशें चल रही हैं। अजित चौधरी के निधन के बाद पार्टी ( RLD ) की कमान छोटे चौधरी कहे जाने वाले जयंत चौधरी ( Jayant Chaudhary ) के पास है। अब उनके कंधों पर पार्टी की खोई प्रतिष्ठा दिलाने की जिम्मेदारी है, जिसकी उम्मीद उन्हें किसान आंदोलन के जरिए दिख रही है। जयंत चौधरी को उम्मीद है कि 2022 ( Uttar Pradesh Assembly Election 2022 ) के विधानसभा चुनाव में पार्टी शानदार प्रदर्शन करेगी।

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2014 के लोकसभा चुनाव ( Lok Sabha Elections ) से पहले तक रालोद को किसानों और जाटों का पूर्ण बहुमत मिलता रहा है, जिसके चलते अजित सिंह ( Ajit Singh ) छह बार लोकसभा सांसद निवार्चित हुए। एक बार राज्यसभा सांसद ( Rajya Sabha MP ) भी रहे। केंद्र की अलग-अलग सरकारों में वह चार बने मंत्री भी बने। रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी 15वीं लोकसभा के लिए पहली बार मथुरा से सांसद चुने गए थे। 2014 में भाजपा प्रत्याशी हेमामालिनी से उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2019 में जयंत ने बागपत से चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार भी वह जीत नहीं दर्ज कर पाए। पार्टी का फोकस इस बार यूपी विधानसभा चुनाव पर है।

लोकदल का इतिहास
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने 1974 में लोकदल का गठन किया था। 1977 में इस पार्टी का जनता पार्टी में विलय हो गया। 1980 में दल का नाम ‘दलित मजदूर किसान पार्टी’ रखा गया। पार्टी में अंतरिक कलह के चलते 1985 में चौधरी चरण सिंह ने फिर से लोकदल का गठन किया। 1987 में चौधरी अजित सिंह ने लोकदल (अ) यानी लोकदल अजित के नाम से नई पार्टी बना ली, 1993 में जिसका कांग्रेस में विलय हो गया। इसके बाद 1996 में अजित सिंह फिर अलग हुए किसान कामगार पार्टी बना ली। 1998 में अजित सिंह ने इस दल का नाम बदलकर राष्ट्रीय लोकदल कर दिया।

वेस्ट के कई जिलों में जनाधार
राष्ट्रीय लोकदल की राजनीतिक हमेशा वेस्ट यूपी के ईद-गिर्द ही घूमती रही। इनमें मुख्य रूप से मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, गौतमबुद्धनगर, बागपत, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, आगरा, अलीगढ़, मथुरा, फिरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, बरेली, बदायूं, पीलीभीत और शाहजहांपुर जिले शामिल हैं।

इन मुद्दों पर बात करती है रालोद
रालोद पार्टी पश्चिमी उप्र के किसानों की समस्या को काफी समय से उठाती आई है। गन्ना किसानों के भुगतान मामले में चीनी मिले इस पार्टी के निशाने पर रही हैं। जाटों को लेकर भी पार्टी आबादी व आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात करती रही है।

पार्टी के प्रमुख नेता
पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत चौधरी अजित सिंह (संस्थापक और पूर्व अध्यक्ष), जयंत चौधरी (राष्ट्रीय अध्यक्ष) अनुराधा चौधरी पूर्व मंत्री, कोकब हमीद (पूर्व मंत्री), डॉक्टर मैराजुद्दीन (पूर्व सिंचाई मंत्री)

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