2020 की तरह बिहार में फिर ‘खेला’ करेंगे ओवैसी, सीमांचल से साधेंगे मुस्लिम वोटर्स; क्या है AIMIM का गेम प्लान?

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2020 की तरह बिहार में फिर ‘खेला’ करेंगे ओवैसी, सीमांचल से साधेंगे मुस्लिम वोटर्स; क्या है AIMIM का गेम प्लान?

2020 की तरह बिहार में फिर ‘खेला’ करेंगे ओवैसी, सीमांचल से साधेंगे मुस्लिम वोटर्स; क्या है AIMIM का गेम प्लान?


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बिहार में सियासी उठापठक के बीच लोकसभा चुनाव का सियासी पारी भी उबाल मार रहा है। सीमांचल का पूर्णिया सियासत का केंद्र बिंदु बनता जा रहा है। फरवरी में महागठबंधन ने यहां शक्ति प्रदर्शन किया था तो वहीं बीजेपी ने भी बिहार की लड़ाई का आगाज पूर्णिया से ही किया था। और अब AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी भी अपने मिशन बिहार का आगाज पूर्णिया से करने वाले हैं। जिसका खाका भी तैयार हो गया है। 

सीमांचल से ओवैसी करेंगे आगाज

AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी 18 और 19 मार्च को सीमांचल के दौरे पर रहेंगे। इस दौरान किशनगंज और पूर्णिया में अधिकार पदयात्रा निकालेंगे। और कई जनसभाओं को संबोधित भी करेंगे। किशनगंज मं महानंदा और डॉक नदी पर पुल की पुरानी मांग को लेककर पदयात्रा निकालेंगे। लेकिन ओवैसी का असल मकसद मुस्लिम वोटर्स को अपने पाले में करना है। जिसके लिए उन्होने कमर कस ली है। 

सियासी जमीन बचाने की चुनौती

ओवैसी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी सियासी जमीन को बचाए रखने की भी है। क्योंकि 2020 में सीमांचल इलाके की 5 सीटों पर ओवैसी की पार्टी AIMIM की सफलता मिली थी। लेकिन बाद में पांच में से चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए थे। जो ओवैसी के लिए बड़ा झटका था। ऐसे में मुस्लिम बहुल आबादी वाला सीमांचल ओवैसी के लिए मिशन बिहार की शुरुआत के लिए सबसे मुफीद इलाका है। शायद यही वजह कि ओवैसी ने पूर्णिया और किशनगंज से बिगुल फूंकने का प्लान बनाया है। 

 उपचुनाव में ओवैसी ने बिगाड़ा था गेम

ओवैसी के बिहार के सियासी घमासान में कूदने का सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को हो सकता है तो नहीं महागठबंधन को काफी नुकसान पहुंच सकता है। क्योंकि 2020 में बीजेपी को सीमांचल बड़ी जीत हासिल हुई थी। और 8 सीटें जीतने में सफल हुई थी। वहीं हाल ही में कुढ़नी और गोपलागंज में हुए उपचुनाव में भी महागठबंधन का खेल ओवैसी ने बिगाड़ा था। और काफी हद तक मुस्लिम को अपने पाले में करने में कामयबा रहे थे। जिसके चलते कुढ़नी और गोपालगंज दोनों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी। गोपालगंज में बीजेपी की जीत का फासला सिर्फ 1,794 वोटों का था। AIMIM ने 2020 के विधानसभा चुनाव में 20 उम्मीदवार उतारे थे। जिसमें पांच जीते। उनकी पार्टी को कुल 523,279 वोट मिले थे। ऐसे में कोई शक नहीं कि ओवैसी की पार्टी महागठबंधन के लिए जरूर चिंता का सबब है। 

बिहार में मुस्लिम फैक्टर

बात अगर बिहार में मुस्लिम राजनीति की करें तो यहां मुस्लिम आबादी करीब 16 फीसदी है। बिहार की करीब 10 सीटों पर मुस्लिम आबादी 35-40 फीसदी तक है। वहीं सीमांचल में तो मुस्लिम आबाजी 40 से 70 फीसदी तक है। जो एक बहुत बड़ा वोटबैंक है। ऐसे में मुस्लिम वोटर्स में सेंधमारी करने में अगर ओवैसी कामयाब होते हैं। तो महागठबंधन के लिए परेशानी बढ़नी तय है। 

क्या फिर बीजेपी को फायदा पहुंचाएंगे ओवैसी?

महागठबंधन के लिए सबसे बड़ी चुनौती मुस्लिम वोटों में बिखराव को रोकना है। क्योंकि अगर ओवैसी मुस्लिम वोटर्स को बांटने में सफल हुए तो सीधा फायदा बीजेपी को मिलना तय है। ऐसे ही कुछ बीते साल कुढ़नी और गोपालगंज में हुए उपचुनाव में दिखा था। वहीं दूसरी तरफ बीजेपी का हिंदुत्व कार्ड भी काफी काम का साबित होता है। आरजेडी की ताकत जहां एम-वाई यानि कि मुस्लिम यादव फैक्टर है तो वहीं जदयू की शक्ति अति पिछड़ा और मुस्लिम वोटर हैं। लेकिन ओवैसी अगर अपने गेम प्लान में सफल हुए तो नीतीश कुमार और तेजस्वी को बड़ा झटका लग सकता है। राजनीति के जानकारों का भी मानना है कि ओवैसी के दौरे का सीधा असर सत्तारूढ़ महागठबंधन पर पड़ेगा है। बांटा हुआ मुस्लिम वोट महागठबंधन के लिए चिंता का कारण होगा।

सीमांचल के पिछड़ेपन को हथियार बनाकर ओवैसी महागठबंधन पर निशाना साधते रहे हैं। और एक बार फिर से सीमांचल की धरती से वो लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बड़ा प्रयोग करने जा रहे है। मुद्दा भले ही विकास का हो लेकिन ओवैसी का मकसद तो 2024 की लड़ाई में AIMIM की जीत दिलाने का है।

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