20 साल तक डटा रहा अमेरिका, अब चीन भी टिका…क्या है अफगानिस्तान में छिपा 1 ट्रिल्यन डॉलर का खजाना?

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20 साल तक डटा रहा अमेरिका, अब चीन भी टिका…क्या है अफगानिस्तान में छिपा 1 ट्रिल्यन डॉलर का खजाना?

काबुल
साल 2001 में अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को उड़ाने वाले अलकायदा को तालिबान ने पनाह दे दी। अमेरिका उसे ढूंढते-ढूंढते यहां आ पहुंचा और यहां उसे मिला एक ऐसा खजाना जो अफगानिस्तान की सूरत हमेशा के लिए बदल सकता था। तालिबान की हिंसा से अफगानिस्तान को बचाने के लिए पश्चिमी देशों की सेनाएं दो दशकों तक यहां डटी रहीं और अब बीच मझदार में अफगान जनता को छोड़कर लौट गईं।

दिलचस्प बात यह है कि सारी दुनिया जब अपने लोगों को युद्धग्रस्त अफगानिस्तान से वापस बुला रहे हैं, इस बार चीन यहां रुका हुआ है। यहां तक कि ड्रैगन ने तालिबान के साथ दोस्ताना संबंधों की बात तक कह डाली है। ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि आखिरकार अफगानिस्तान में ऐसा क्या है जो इस एशियाई देश पर दुनिया की नजरें टिकी रहती हैं-

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‘अमेरिका को मिला खजाना’
दरअसल, साल 2004 में तालिबान पर ऐक्शन के लिए जब अमेरिकी फोर्सेज उतरीं तो अमेरिकी जियॉलजिकल सोसायटी सर्वे ने भी यहां सर्वे शुरू किया। 2006 में अमेरिकी रिसर्चर्स ने मैग्नेटिक, ग्रैविटी और हाइपरस्पेक्ट्रल सर्वे के लिए हवाई मिशन भी किए। भारतीय उपमहाद्वीप के एशिया से टकराने पर धरती पर मौजूद दुर्लभ खनिजों का विशाल भंडार यहां इकट्ठा हो गया, जहां आज अफगानिस्तान है।

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अफगानिस्तान को कहते हैं ‘सऊदी अरब’
अफगानिस्तान में मिले खनिजों में लोहा, तांबा, कोबाल्ट, सोने के अलावा औद्योगिक रूप से अहम लीथियम और निओबियम भी शामिल है। इन सब में से लीथियम की मांग के चलते अफगानिस्तान को ‘सऊदी अरब’ भी कहा जाता है। दरअसल, लीथियम का इस्तेमाल लैपटॉप और मोबाइल की बैटरियों में होता है। अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने खुद अफगानिस्तान के लीथियम का सऊदी अरब बनने की बात कही थी।

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अफगानिस्तान की ओर क्यों आएंगे देश?
जलवायु परिवर्तन को देखते हुए यह तय है कि आने वाले समय में जीवाश्म ईंधन की जगह इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की पूछ बढ़ने वाली है। ऐसे में लीथियम जैसे खनिज की भारी मौजूदगी को अफगानिस्तान की किस्मत बदलने वाला माना जाता है। यहां सॉफ्ट मेटल निओबियम भी पाया जाता है जिसका इस्तेमाल सुपरकंडक्टर स्टील बनाने में किया जाता है।

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इसीलिए चीन की टिकी हैं निगाहें?
इतने सारे दुर्लभ खनिजों की मौजूदगी के कारण माना जाता है कि आने वाले समय में दुनिया खनन के लिए अफगानिस्तान का रुख तेजी से करेगी। माना जा रहा है कि अफगानिस्तान में सुरक्षा संकट के बावजूद चीन के यहां टिके रहने के पीछे यह खजाना एक बड़ा कारण है। इसके लिए उसने करीब 62 अरब डॉलर के बेल्‍ट ऐंड रोड प्रॉजेक्‍ट के तहत CPC (चीन पाकिस्तान कॉरिडोर) का विस्‍तार अफगानिस्‍तान तक करने की कोशिश तेज कर दी है।

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अफगान सरकार हुई ‘फेल’
एक रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान में एक ट्रिल्यन डॉलर की कीमत के संसाधन मौजूद हैं लेकिन हर साल सरकार खनन से 30 करोड़ डॉलर का रेवेन्यू खो देती है। खराब सुरक्षा, कानूनों की कमी और भ्रष्टाचार के कारण बेकार हो रहे संगठनों की वजह से इस क्षेत्र में अफगानिस्तान विकास नहीं कर सका है। खस्ताहाल इन्फ्रास्ट्रक्चर की वजह से ट्रांसपोर्ट और एक्सपोर्ट बेहद मुश्किल हो गए हैं। वहीं, अफगान सरकार ने टैक्स इतना ज्यादा लगा दिया कि निवेशक भी मिलने बंद हो गए। इसके नतीजतन खनन से देश की जीडीपी में 7-10% योगदान ही पहुंचा।

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अफगानिस्तान में खनिजों का भंडार (Reuters / Danish Siddiqui)

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