1857 विद्रोह: क्रूरता की एक और दास्तां, 22 युवाओं को ‘कोल्हू’ से कुचला, हाथ-पैरों में ठोकी थी कीलें

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1857 विद्रोह: क्रूरता की एक और दास्तां, 22 युवाओं को ‘कोल्हू’ से कुचला, हाथ-पैरों में ठोकी थी कीलें

1857 के विद्रोह से जुड़ी एक और दर्दभरी दास्तां हरियाणा में सोनिपत जिले के लिवासपुर गांव से मिलती है। विद्रोह के दौरान यहां अंग्रेजों ने 22 क्रांतिकारियों को दर्दनाक मौत दी थी। कहा जाता है कि इन सभी को ‘कोल्हू’ से कुचल दिया गया था। कोल्हू, एक तरह के पत्थर से बने रोलर को कहते हैं। आज यानि 10 मई को इस विद्रोह को 165 वर्ष पूरे हो चुके हैं, लेकिन ग्रामीणों में सालों पुराने जख्म जिंदा हैं।

क्रांतिकारियों की निर्मम हत्या के बाद भी अंग्रेजों की क्रूरता यहीं नहीं रुकी थी। खबर है कि युवाओं के नेता को जीवित पेड़ से बांध दिया गया था। उनके हाथों और पैरों में कील ठोकी गई थीं। वहीं, गांव के नंबरदार उदमी राम भी उस विद्रोह को गुमनाम नायकों में शुमार हैं। उन्हें और उनकी पत्नी रत्ना देवी को भी हाथ-पैरों में कीलें ठोककर पेड़ से लटकाया गया था, जहां भूख से उनकी मौत हो गई थी।

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ट्रिब्यून के अनुसार, 96 वर्षीय लक्ष्मण सिंह बताते हैं कि उनके गांव ने 1857 के संग्राम में बड़ी भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा कि औपनिवेशिक शासकों ने तीन बार उनके गांव को तबाह किया, लेकिन वह फिर खड़ा हो गया। उन्होंने कहा कि हमारे बुजुर्गों ने हमें बताया है कि उदमी राम ने भाले, तलवारों आदि से अंग्रेजों का सामना किया था। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर कई अंग्रेजों को मारा था।

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सिंह ने बताया कि कुछ दिनों बाद ब्रिटिश सेना ने तोपों के साथ  गांव को घेर लिया और तीन लोगों को पेश करने की बात कही। उन्होंने बताया कि इनमें उदमी राम नंबरदार, गुलाब और सहज राम का नाम शामिल है।

66 साल के अत्तर सिंह का कहना है कि  उदमी राम ने गांव के 22 युवाओं के साथ ब्रिटिश सेना के अधिकारियों और अन्य लोगों को मार गिराया था, लेकिन रतधाना गांव के सीताराम ने उदमी राम और दूसरे विद्रोहियों की जानकारी ब्रिटिश को दी। उन्होंने बताया कि इसके बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया और अपने साथ ले गए।

अत्तर सिंह ने जानकारी दी कि अंग्रेज सेना ने उदमी राम और उनकी पत्नी रत्ना देवी को पीपल के पेड़ से हाथों और पैरों में कील ठोककर बांध दिया और बगैर खाने-पीने के मरने के लिए छोड़ दिया। उन्होंने कहा कि 22 युवाओं को जमीन पर लिटाकर उन्हें इस कोल्हू से कुचल दिया। जबकि, अन्य लोगों को काला पानी भेज दिया गया।

उन्होंने कहा कि ब्रिटिश ने जब विद्रोह खत्म होने के बाद लिवासपुर गांव की पूरी 2700 बीघा जमीन को 200 रुपये के लगान के तौर पर गद्दार सीता राम के पक्ष में नीलाम कर उसे इनाम दिया। उन्होंने कहा कि हम 165 सालों से हमारी जमीन के हक के लिए लड़ रहे हैं और कई मामले अभी भी कोर्ट में लंबित हैं।

इधर, अंग्रेजों की क्रूरता की कहानी सुनाता कोल्हू राष्ट्रीय राजमार्ग 44 पर स्थित ताऊ देवीलाल पार्क में रखा हुआ है। इस बगीचे की देखरेख हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के जिम्मे है, लेकिन 1857 विद्रोह की यह निशानी अभाव का सामना कर रही है।



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