1857 के विद्रोह के 165 साल, जानें ग्वालियर से बिहार तक किसने संभाली थी कमान

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1857 के विद्रोह के 165 साल, जानें ग्वालियर से बिहार तक किसने संभाली थी कमान

भारतीय विद्रोह, सिपाही विद्रोह या पहला स्वतंत्रता संग्राम। अलग-अलग नामों से जाने गए 1857 के विद्रोह को आज 165 साल पूरे हो गए हैं। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ हुए इस संघर्ष को इतिहास में असफल माना गया, लेकिन इसके अंदर कई सफलताएं भी हैं। एक ओर जहां इस विद्रोह ने देश को कई नायक दिए। वहीं, अंग्रेजों को राज में बदलाव करने पर मजबूर कर दिया गया। बहरहाल, मेरठ से शुरू हुए संघर्ष के दौर का असर पूरे देश में देखा गया, लेकिन इसकी असल तस्वीर कुछ खास इलाकों में उभर कर नजर आई।

विद्रोह की आग पटना से सटे इलाकों से लेकर राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों तक फैल गई थी। इस दौरान मुख्य केंद्र लखनऊ, कानपुर, दिल्ली, झांसी, कानपुर, ग्वालियर और बिहार रहे। खास बात है कि यह विद्रोह एक साल से ज्यादा समय तक चला, लेकिन 1858 के मध्य तक इसे दबा दिया गया। कहा जाता है कि 8 जुलाई 1858 में लॉर्ड कैनिंग ने आखिरकार शांति का ऐलान कर दिया था।

किसकी अगुवाई में कहा लड़ी गई जंग

लखनऊ
: अवध की राजधानी रहे लखनऊ में विद्रोह की अगुवाई बेगम हजरत महल कर रही थीं। वह अवध के पूर्व राजा की पत्नियों में से एक थीं। इस क्षेत्र में विद्रोह को दबाने में हैनरी लॉरेंस नाम के ब्रिटिश अधिकारी ने बड़ी भूमिका निभाई थी।

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कानपुर: यहां विद्रोह की कमान पेशवा बाजी राव द्वितीय के गोद लिए हुए पुत्र नाना साहेब संभाल रहे थे। कहा जाता है कि ब्रिटिश की तरफ से पेंशन से वंचित किए जाने के बाद उन्होंने विद्रोह का हिस्सा बनने का फैसला किया था। इस क्षेत्र में सर कॉलिन कैंपबेल ने विद्रोह को दबा दिया। हालांकि, यहां अंत तक जंग को जीवित रखने का श्रेय तात्या टोपे को जाता है। लेकिन उन्हें भी अंत में हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया और मौत की सजा सुनाई गई।

झांसी: गोद लिए बेटे को गद्दी का हक देने से इनकार कर रहे ब्रिटिश के खिलाफ यहां विद्रोह का नेतृत्व रानी लक्ष्मी बाई कर रही थीं। अंग्रेजों के हाथों हारने तक उन्होंने बहादुरी से दुश्मनों का मुकाबला किया।

ग्वालियर: रानी लक्ष्मी बाई को बाद में तात्या टोपे का साथ मिला और उन्हें ग्वालियर को हासिल करने में सफलता मिली। हालांकि, अंग्रेजों से बहादुरी के साथ दो-दो हाथ करने में झांसी की रानी दुनिया को अलविदा कह गई। इसके बाद क्षेत्र पर दोबारा ब्रिटिश कब्जा हुआ।

बिहार: जगदीशपुर राज घराने के कुंवर सिंह के नेतृत्व में यहां विद्रोह लड़ा गया। इनके अलावा 1857 के विद्रोह में दिल्ली और मेरठ का नाम भी शामिल है। एक और जहां मेरठ को लेकर मंगल पांडे मुख्य चेहरा रहे। वहीं, इतिहास में दिल्ली क्षेत्र में बहादुर शाह द्वितीय का नाम दर्ज है।

विद्रोह को भले ही असफल कहा गया, लेकिन इसमें कुछ खास बातें भारतीयों के हित में रही। इनमें कंपनी के शासन का अंत, ब्रिटिश राज के हाथों में सत्ता आना, धार्मिक समानता, प्रशासनिक बदलाव और पुनर्गठन जैसी कई बातें शामिल हैं।



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