13 सीटों के विधान परिषद चुनाव में भाजपा ने दलित और महिला से बनायी दूरी, नामांकन आज | BJP Distances Itself From Dalits, Women In 13 Council Polls | News 4 Social h3>
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मान (Legislative Council Election Nomination) वरिष्ठ राजनीतिक प्रवक्ता मनोज श्रीवास्तव ने बताया कि अब भाजपा के पास प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह जाट, विधान परिषद में एक नया जाट चेहरा मोहित बेनीवाल, चौधरी लक्ष्मीनारायण कैबिनेट मंत्री, के अलावा राष्ट्रीय लोकदल का पूरा जाट पट्टा सब भाजपा ने साध लिया।इसमें संवैधानिक पदों की गणना नहीं की जा रही है।माना जा रहा है कि भाजपा के रणनीतिकारों ने जाट वोट पर राजनैतिक गांठ बांध लिया। इनकी आबादी देखते हुए पार्टी इन्हें रिझाने के लिये अभी कुछ दे सकती है बस यह भाजपा को इसी तरह अपनी ताकत का एहसास कराते रहें।
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(Legislative Council Election Candidates) ठाकुर साधने में भी पार्टी ने बहुत सजगता दिखाई है। महेंद्र सिंह को लगातार तीसरी बार विधान परिषद भेज कर उनके कद का अपमान किया है।अपने भाषणों के बल पर राष्ट्रीय राजनीति में अलग पहचान बनाने वाले महेंद्र सिंह असोम व नार्थ ईस्ट में भाजपा की सत्ता के शिल्पकार माने जाते हैं। पांच राज्यों के चुनाव में उन्होंने पार्टी की शानदार जीत के लिये राजस्थान, मध्यप्रदेश में महत्वपूर्ण भूमिका अदा किया। (Legislative Council Election ) संगठन का व्यक्ति होने के बावजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से योगी पार्ट-1 में निकटता टीम गुजरात और उनके कोतवाल को रास नहीं आयी, जिसके कारण उन्हें मंत्रिमंडल से हाथ धोना पड़ा। प्रधानमंत्री आवास हो या उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड को में हर घर जल योजना को साकार करना हो महेंद्र सिंह का काम मील का पत्थर साबित हुआ है। राज्यसभा में उनकी दावेदारी पक्की मानी जा रही थी।
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विजय बहादुर पाठक वह व्यक्ति हैं जिन्हें भाजपा कार्यालय का जर्रा-जर्रा पहचानता है। जानकर बताते हैं कि पाठक जिस मुहूर्त में पार्टी कार्यालय में पहली बार घुसे थे उस समय सर्व सिद्धि और अभिजीत मुहूर्त और पुष्य नक्षत्र था।उन्होंने पार्टी को अपना सब कुछ दिया। बदले में पार्टी ने जो दिया उसका खुलासा वह नामांकन में करेंगे।बताते हैं कलराज मिश्र के यूपी में प्रदेश अध्यक्ष और लोक निर्माण मंत्री रहते पाठक ने बहुत दोस्त बनाये। उनमें पार्टी के नेता, नौकरशाह और पत्रकार सब शामिल हैं। कठिन परिश्रमी, मृदुभाषी होने के कारण वह पत्थर को भी मोम बना देते हैं।
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ब्राह्मण समाज में भाजपा के नये नेताओं से ज्यादा पैठ रखने के कारण उनको विधानपरिषद भेज कर भाजपा ने कोई ऐहसान नहीं किया है। तमाम उतार चढ़ाव देखने वाले पाठक लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश के मंत्रिमंडल में यदि जगह नहीं बना पाये और जिस तरह पार्टी अति पिछड़ों और दलितों से विधानपरिषद चुनाव में दूरी बनायी है पाठक प्रदेश अध्यक्ष के प्रबलतम दावेदार बन कर उभरेंगे। उनके अब तक की कार्यशैली से जो लोग अवगत हैं वह उन्हें हर भूमिका में सक्षम और उपयुक्त मानते हैं।
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राज्य मंत्री सोमेंद्र तोमर जिस गुजर समाज से आते हैं उसी गुजर समाज से पूर्व मंत्री अशोक कटारिया भी आते हैं। विद्यार्थी परिषद के नेता रहे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट के साथ गुजर साधना अनिवार्य होता है। जाट और गुजर मिल कर जिसके साथ खड़े होते हैं उसके सफलता की संभावना बढ़ जाती है। ये ऐसी जातियां हैं जो पार्टी से ज्यादा अपने समाज पर भरोसे के लिये जानी जाती हैं। जिनका आपसी संगठन बहुत मजबूत होता है। क्योंकि यह संगठित रहते हैं। जाट-गूजर हिन्दू-मुस्लिम -सिख तीनों में होते हैं। सिख समाज में तो जट सिख प्रायः अपर हैण्ड (दबदबा) रखता है। परिवहन मंत्री रहते कटारिया ने जो किया उसकी आज भी चर्चा होती है। एक राष्ट्रीय महामंत्री जो टीम गुजरात के बहुत करीबी बताये जाते हैं उनका इन पर भी आशीर्वाद है।
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संतोष सिंह बचपन में ही छात्र राजनीति से जुड़ गये थे। इंटर कॉलेज में ही दबंग (न दबने वाला) छात्र होने के कारण लखनऊ आते ही विश्वविद्यालय की राजनीति में वह रम गये। इसी बीच अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संपर्क में आ गये।विश्वविद्यालय में बढ़ती लोकप्रियता ने इन्हें मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के सर्किल में पहुंचा दिया। महामंत्री, अध्यक्ष रहते हुए संतोष सिंह ने पूर्वांचल के अलावा शेष प्रदेश के छात्रों में मजबूत पैठ बनाने में सफल थे। भाजपा में जुड़ने के बाद पार्टी पर चाहे जितना उतार चढ़ाव आया वह विचलित नहीं हुये। हालांकि पार्टी ने बहुत झेला कर मुश्किल से उन्हें विधान परिषद में भेजा है।
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क्यों कि उनके बाद के बहुत लोग पार्टी में बाहर से आये न जाने क्या-क्या प्राप्त कर लिये।इस बीच संतोष पर नाम का पूरा असर दिखा। एक समय राजनाथ सिंह के पुत्र नीरज सिंह के साथ दयाशंकर सिंह, संतोष सिंह और अश्वनी त्यागी प्रदेश मंत्री होते थे। पंकज सिंह को आउट ऑफ टर्न प्रोन्नति देकर महामंत्री बना दिया गया तब संतोष सिंह, दयाशंकर सिंह और अश्वनी त्यागी ने आवाज उठा कर नेतृत्व को यह एहसास करा दिया था कि हम ऐसे-वैसे नहीं हैं। विपक्ष में रह कर यदि हम यूपी और केंद्र सरकार की चूलें हिला सकते हैं तो पार्टी के भीतर हुये पक्षपात को भी हम स्वीकार नहीं करेंगे। इस विरोध की सबसे ज्यादा कीमत संतोष सिंह को चुकानी पड़ी।
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भूमिहार समाज के धर्मेंद्र सिंह भाजपा के लिये अतिविशिष्ट क्षेत्र काशी से आते हैं।लिखने-पढ़ने वाले सिंह 2014 में कांग्रेस से भाजपा में उनका आगमन हुआ। वह क्षेत्रीय मीडिया टीम में सहप्रभारी हैं। कभी ऐसा नहीं रहा कि भाजपा में आने के बाद वह अपने स्वभाव में कोई परिवर्तन लाये हों। समय-समय पर आवाज बुलंद करना उनकी पहचान बन गयी है।
बस कुछ ही देर में शुरू होगा नामांकन की प्रतिक्रिया एमएलसी प्रत्याशियों के नामांकन आज भाजपा और सपा के प्रत्याशी आज करेंगे नामांकन। बीजेपी के घोषित 7 प्रत्याशी करेंगे नामांकन। विजय बहादुर पाठक, मोहित बेनीवाल, महेंद्र सिंह, अशोक कटारिया, संतोष सिंह, धर्मेंद्र सिंह, रामतीर्थ सिंघल शामिल है। 3 एमएलसी सीट बीजेपी ने सहयोगी दलों को दी. अपना दल एस से मंत्री आशीष पटेल ,रालोद से योगेश चौधरी और एनडीए की सहयोगी सुभासपा प्रत्याशी भी एक सीट पर करेंगे नामांकन।
मुख्यमंत्री समेत कई बड़े नेता उपस्थित नामांकन के समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ , उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक , भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी सहित कई वरिष्ठ सदस्य साथ रहेंगे। बीजेपी के पास 10 एमएलसी जिताने के लिए पर्याप्त बहुमत। एक एमएलसी सीट के लिए 29 विधायकों के मत की जरूरत। बीजेपी और सहयोगी दलों को मिलाकर 286 विधायक एनडीए के पास। राजा भैया की पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक को मिलाकर 288 विधायक।
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मान (Legislative Council Election Nomination) वरिष्ठ राजनीतिक प्रवक्ता मनोज श्रीवास्तव ने बताया कि अब भाजपा के पास प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह जाट, विधान परिषद में एक नया जाट चेहरा मोहित बेनीवाल, चौधरी लक्ष्मीनारायण कैबिनेट मंत्री, के अलावा राष्ट्रीय लोकदल का पूरा जाट पट्टा सब भाजपा ने साध लिया।इसमें संवैधानिक पदों की गणना नहीं की जा रही है।माना जा रहा है कि भाजपा के रणनीतिकारों ने जाट वोट पर राजनैतिक गांठ बांध लिया। इनकी आबादी देखते हुए पार्टी इन्हें रिझाने के लिये अभी कुछ दे सकती है बस यह भाजपा को इसी तरह अपनी ताकत का एहसास कराते रहें।
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विजय बहादुर पाठक वह व्यक्ति हैं जिन्हें भाजपा कार्यालय का जर्रा-जर्रा पहचानता है। जानकर बताते हैं कि पाठक जिस मुहूर्त में पार्टी कार्यालय में पहली बार घुसे थे उस समय सर्व सिद्धि और अभिजीत मुहूर्त और पुष्य नक्षत्र था।उन्होंने पार्टी को अपना सब कुछ दिया। बदले में पार्टी ने जो दिया उसका खुलासा वह नामांकन में करेंगे।बताते हैं कलराज मिश्र के यूपी में प्रदेश अध्यक्ष और लोक निर्माण मंत्री रहते पाठक ने बहुत दोस्त बनाये। उनमें पार्टी के नेता, नौकरशाह और पत्रकार सब शामिल हैं। कठिन परिश्रमी, मृदुभाषी होने के कारण वह पत्थर को भी मोम बना देते हैं।
पूर्व सीएम अखिलेश यादव के बयान पर भड़के DCM Keshav Prasad Maurya , कहा-फिर हारेगी सपा की गुंडागर्दी, जीतेगी BJP
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राज्य मंत्री सोमेंद्र तोमर जिस गुजर समाज से आते हैं उसी गुजर समाज से पूर्व मंत्री अशोक कटारिया भी आते हैं। विद्यार्थी परिषद के नेता रहे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट के साथ गुजर साधना अनिवार्य होता है। जाट और गुजर मिल कर जिसके साथ खड़े होते हैं उसके सफलता की संभावना बढ़ जाती है। ये ऐसी जातियां हैं जो पार्टी से ज्यादा अपने समाज पर भरोसे के लिये जानी जाती हैं। जिनका आपसी संगठन बहुत मजबूत होता है। क्योंकि यह संगठित रहते हैं। जाट-गूजर हिन्दू-मुस्लिम -सिख तीनों में होते हैं। सिख समाज में तो जट सिख प्रायः अपर हैण्ड (दबदबा) रखता है। परिवहन मंत्री रहते कटारिया ने जो किया उसकी आज भी चर्चा होती है। एक राष्ट्रीय महामंत्री जो टीम गुजरात के बहुत करीबी बताये जाते हैं उनका इन पर भी आशीर्वाद है।
UP Board: यूपी बोर्ड परीक्षाएं खत्म, 16 मार्च से जांची जाएंगी कॉपियां
संतोष सिंह बचपन में ही छात्र राजनीति से जुड़ गये थे। इंटर कॉलेज में ही दबंग (न दबने वाला) छात्र होने के कारण लखनऊ आते ही विश्वविद्यालय की राजनीति में वह रम गये। इसी बीच अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संपर्क में आ गये।विश्वविद्यालय में बढ़ती लोकप्रियता ने इन्हें मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के सर्किल में पहुंचा दिया। महामंत्री, अध्यक्ष रहते हुए संतोष सिंह ने पूर्वांचल के अलावा शेष प्रदेश के छात्रों में मजबूत पैठ बनाने में सफल थे। भाजपा में जुड़ने के बाद पार्टी पर चाहे जितना उतार चढ़ाव आया वह विचलित नहीं हुये। हालांकि पार्टी ने बहुत झेला कर मुश्किल से उन्हें विधान परिषद में भेजा है।
Gold And Silver Price: लखनऊ में सोने और चांदी के भाव में आई बढ़त, जाने आज की कीमत
क्यों कि उनके बाद के बहुत लोग पार्टी में बाहर से आये न जाने क्या-क्या प्राप्त कर लिये।इस बीच संतोष पर नाम का पूरा असर दिखा। एक समय राजनाथ सिंह के पुत्र नीरज सिंह के साथ दयाशंकर सिंह, संतोष सिंह और अश्वनी त्यागी प्रदेश मंत्री होते थे। पंकज सिंह को आउट ऑफ टर्न प्रोन्नति देकर महामंत्री बना दिया गया तब संतोष सिंह, दयाशंकर सिंह और अश्वनी त्यागी ने आवाज उठा कर नेतृत्व को यह एहसास करा दिया था कि हम ऐसे-वैसे नहीं हैं। विपक्ष में रह कर यदि हम यूपी और केंद्र सरकार की चूलें हिला सकते हैं तो पार्टी के भीतर हुये पक्षपात को भी हम स्वीकार नहीं करेंगे। इस विरोध की सबसे ज्यादा कीमत संतोष सिंह को चुकानी पड़ी।
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भूमिहार समाज के धर्मेंद्र सिंह भाजपा के लिये अतिविशिष्ट क्षेत्र काशी से आते हैं।लिखने-पढ़ने वाले सिंह 2014 में कांग्रेस से भाजपा में उनका आगमन हुआ। वह क्षेत्रीय मीडिया टीम में सहप्रभारी हैं। कभी ऐसा नहीं रहा कि भाजपा में आने के बाद वह अपने स्वभाव में कोई परिवर्तन लाये हों। समय-समय पर आवाज बुलंद करना उनकी पहचान बन गयी है।
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