10 साल में 10 ट्रिलियन डॉलर की होगी इकॉनमी

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10 साल में 10 ट्रिलियन डॉलर की होगी इकॉनमी

मोतीलाल ओसवाल
बीते वित्तीय वर्ष में भारत ने मोटे तौर पर 20 फीसदी की अद्‌भुत विकास गति हासिल की है। यही वजह है कि पहली बार हमारी इकॉनमी तीन ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य को पार कर गई। अब हम विश्व की छठी बड़ी इकॉनमी हैं। वर्ष 2008 तक हम 12वें नंबर पर हुआ करते थे। इंटरनैशनल मॉनिटरी फंड (आईएमएफ) का मानना है कि अगले साल हम ब्रिटेन को पछाड़ देंगे और पांचवीं सबसे बड़ी इकनॉमी बन जाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2024-25 तक भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी तक पहुंचाने का संकल्प लिया था। आईएमएफ के अनुसार, अब हम यह लक्ष्य 2026-27 तक हासिल कर पाएंगे।

महामारी की मार
अगर विश्व में कोविड का संकट न फैला होता, तो संभव है कि हमने पांच ट्रिलियन का यह लक्ष्य समय से पूरा कर लिया होता। बहरहाल, जब पांच ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य सामने दिखाई दे रहा हो, तो हमें 10 ट्रिलियन डॉलर के नए लक्ष्य तय करने की तरफ कदम बढ़ाने होंगे। ऐसा हुआ, तो हम विश्व की तीसरी बड़ी इकॉनमी बन जाएंगे। आज जो संकेत मिल रहे हैं, वे आने वाले भविष्य को लेकर विश्वास जगाते हैं। पहला बदलाव यह आया है कि भारत में कॉरपोरेट मुनाफा बढ़ा है। यह वित्तीय वर्ष 2008 में जीडीपी के 7.8 फीसदी के स्तर पर यानी अपने शिखर पर हुआ करता था। बाद में यह घटकर 2.2 फीसदी पर आ गया, दो दशक के सबसे निचले स्तर पर। वित्तीय वर्ष 2020 में काफी ठीक-ठाक बढ़कर यह 4.5 फीसदी पर पहुंचा। बीते वित्तीय वर्ष 2022 में उम्मीद है यह 6 फीसदी पर होगा, 11 साल में सबसे ऊंचे स्तर पर। लिस्टेड सेक्टर और अनलिस्टेड सेक्टर, दोनों में मुनाफा बढ़ा है। वित्तीय वर्ष 2020 में लिस्टेड सेक्टर का हिस्सा जीडीपी का 1.7 फीसदी था और वित्तीय वर्ष 2022 में यह जीडीपी का 4.5 फीसदी हो गया। अनलिस्टेड सेक्टर भी 0.5 से लेकर 1.5 फीसदी तक बढ़ने का अनुमान है। कॉरपोरेट सेक्टर में केवल मुनाफा ही नहीं बढ़ा, उसने अपने खर्चों की पूर्ति करने के बाद नकदी भी बचाई है। विश्व इकॉनमी सामान्य होगी, तो बेहतर मुनाफा, ठोस कैश फ्लो और हल्की बैलेंस शीट के साथ भारत का कॉरपोरेट सेक्टर विकास के नए पर्व की ओर कदमताल करने के लिए तैयार दिखेगा।

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दूसरी बात, बहुत सारे विश्लेषक भारत की वित्तीय स्थिति को लेकर चिंतित हैं, मगर देश का टैक्स कलेक्शन कुछ और ही कथा बयान कर रहा है। केंद्र और राज्यों की कुल टैक्स आय वर्ष 2008 में जीडीपी के 17.6 फीसदी के साथ शीर्ष पर थी। कोरोना काल से पहले वह 17 फीसदी के आसपास बनी रही। वित्तीय वर्ष 2019 में यह जीडीपी के 17.4 फीसदी पर दिखाई दी। वित्तीय वर्ष 2022 में शायद यह अपने उच्चतम स्तर पर होगी। एक कारण तो यह है कि लोग टैक्स देने में कोताही नहीं कर रहे, मगर इसको नकारा नहीं जा सकता कि लोग ज्यादा खर्च कर रहे हैं। इससे डिमांड ग्रोथ में भी तेजी आती है।

टैक्स कलेक्शन जब मजबूत होगा, तो दूसरे स्रोतों से होने वाली आवक कम होने पर भी स्थिति संभल जाएगी। याद रहे, वित्तीय वर्ष 2021-22 में केंद्र ने राज्यों को ज्यादा हिस्सेदारी दी। इसके बावजूद लक्ष्य से कहीं ज्यादा वसूली हुई। टैक्स सरकार के लिए आय का सबसे स्थिर और ठोस स्रोत है। वित्तीय वर्ष 2019-20 में सरकार करीब तीन ट्रिलियन रुपये निवेश कर रही थी, जो कि जीडीपी का 1.6 फीसदी था। वित्तीय वर्ष 2022 में यह छह ट्रिलियन रुपये होगा, जो कि जीडीपी का 2.6 फीसदी होगा। वित्तीय वर्ष 2023 में 25 फीसदी बढ़ाकर इसे 7.5 फीसदी करने का प्रावधान बजट में किया गया है। ऐसा हुआ तो यह 7.5 ट्रिलियन रुपये (जीडीपी का 2.5 फीसदी) हो जाएगा। कोरोना काल में हुए नुकसान की भरपाई करने के लिहाज से सरकार खर्च कम करके सुदृढ़ीकरण में जुटी है। वर्ष 2025-26 में राजकोषीय घाटा 4.5 फीसदी होगा और सुदृढ़ीकरण धीमा पड़ेगा। कल्पना ही की जा सकती है कि ऐसा होने पर सरकार किस तरह का निवेश करके प्रगति को किस तरह की गति देने की हालत में होगी।

तीसरी बात, यह सभी जानते हैं कि रिहायशी रियल एस्टेट या प्रॉपर्टी मार्केट इकॉनमी को किस तरह कई गुना बढ़ाने की क्षमता रखता है। 2010 के दशक के मध्य में इसके कमजोर पड़ने की वजह से विकास की गति भी कमजोर पड़ी। बीच में इस क्षेत्र में कई कानूनी सुधार लाए गए हैं और पिछले 18 महीने में आश्चर्यजनक बदलाव देखे जा रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2021 तक स्टैंप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन से राज्यों को होने वाली आय साल दर साल लगभग 2 फीसदी घटती रही। वित्तीय वर्ष 2022 में सभी राज्यों ने इसमें 35 फीसदी बढ़त दर्ज की है। दो साल में सीएजीआर (संयुक्त वार्षिक विकास दर) 15 फीसदी बढ़ गई है। जब रियल एस्टेट इस तरह से बढ़ेगा, तो इकॉनमी फेल नहीं हो सकती।

निर्यात में भी कमाल
अंत में, न केवल भारत की घरेलू मांग में जोरदार वृद्धि हो रही है, बल्कि निर्यात में भी वित्त वर्ष 2012 में 45 फीसदी की रेकॉर्ड उच्च वृद्धि देखी गई है। यह इसे 421 अरब डॉलर के अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर ले गई है। सेवाओं सहित भारत का कुल निर्यात वित्त वर्ष 2022 में 683 अरब डॉलर था, जो वित्त वर्ष 2010 में 533 अरब डॉलर हुआ करता था। तो यह आश्चर्य की बात नहीं है कि केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने इकॉनमी के 30 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने के अपने उद्देश्य के साथ ही, 2030 तक निर्यात लक्ष्य एक ट्रिलियन डॉलर निर्धारित किया है। सरकार की हाल ही में घोषित उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना भी आयात पर भारत की निर्भरता को कम करने और निर्यात को बढ़ावा देने के बहुत काम आ सकती है।

कुल मिलाकर, उत्साहित कॉरपोरेट क्षेत्र, ठोस टैक्स कलेक्शन, मजबूत प्रॉपर्टी मार्केट, अंदरूनी गतिविधि और बाहरी मांग के बड़े हिस्से पर कब्जा करने का संयोजन – यह सब भारत के लिए अगले कुछ वर्ष में 5 ट्रिलियन डॉलर से 10 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ने का अवसर प्रदान करेगा। भारत का समय आ गया है और कोई भी निवेशक दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की अनदेखी नहीं कर सकता।

‌(मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशल सर्विसेज के एमडी और सीईओ मोतीलाल ओसवाल ‘नवभारत टाइम्स’ के आज के अंक के गेस्ट एडिटर हैं)

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं



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