10 रुपए का समोसा भी यूपीआई से मिल रहा तो एटीएम क्यों जाना, ‘टॉफी करेंसी से मिली मुक्ति | get samosa worth 10 rupees from UPI, then why go to ATM | Patrika News

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10 रुपए का समोसा भी यूपीआई से मिल रहा तो एटीएम क्यों जाना, ‘टॉफी करेंसी से मिली मुक्ति | get samosa worth 10 rupees from UPI, then why go to ATM | Patrika News

10 रुपए का समोसा भी यूपीआई से मिल रहा तो एटीएम क्यों जाना, ‘टॉफी करेंसी से मिली मुक्ति | get samosa worth 10 rupees from UPI, then why go to ATM | Patrika News

जबलपुर शहर में भी तेजी से बदल रहा लेन-देन का तरीका, बड़े पेमेंट के लिए ही डेविट कार्ड का सहारा

श्याम बिहारी @ जबलपुर।

जबलपुर शहर भी कैशलेस की तरफ तेजी से बढ़ा है। देशभर के आंकड़े बता रहे हैं कि अब 80 प्रतिशत से ज्यादा लेनदेन यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस) के जरएि किया जाने लगा है। जबकि, शहर में यह आंकड़ा 60 प्रतिशत के ऊपर है। लोग मानने लगे हैं कि 10 रुपए के समोसा का भी भुगतान यूपीआई से हो रहा है, तो एटीएम जाने की जरूरत ही नहीं। अब लोग जेब में कैश रखते हैं। लेकिन, खर्च तभी करते हैं, जब मोबाइल में तकनीकी समस्या आ जाती है। एटीएम, डेविट या क्रेडिट कार्ड की जरूरत बड़े भुगतान के समय पड़ती है।
महीनों जेब में रखे रह जाते हैं नोट
पुराने बस स्टैंड की एक दुकान पर नाश्ता करने पहुंचे युवकों ने बताया कि उन्हें अब कैश में पैसे देना असुविधाजनक लगता है। मोबाइल से दो मिनट में भुगतान हो जाता है। पर्स में पैसे रखे रहते हैं। लेकिन, मोबाइल में तकनीकी खराबी ना आए, तो नोट निकालने की जरूरत महीनों तक पड़ती ही नहीं। हालांकि, कुछ ने यह भी कहा कि कभी-कभार नेटवर्क की समस्या होने पर पैसे कट जाते हैं, लेकिन भुगतान नहीं होता। जब तक पैसे वापस नहीं आते, तब तक परेशान होना पड़ता है। लेकिन, ज्यादातर का कहना था कि हड़बड़ी नहीं दिखाएं। यूपीआई सही ढंग से स्कैन करें। तकनीकी खराबी आ भी गई, तब भी पैसे खाते से नहीं कटते।
चिल्लर की चिकचिक हुई कम
बैंकिंग सेक्टर के जानकारों का कहना है कि डिजिटली लेनदेन पर साइबर अपराधियों की नजर रहती है। लेकिन, सावधानी बरतें, तो वे कुछ नहीं कर सकते। जबलपुर शहर भले ही महानगरों की तर्ज पर नहीं पहुंचा। इसके बाद भी डिजिटली लेनदेन में यहां के लोग भी सहजता महसूस करने लगे हैं। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पूरे देश में बीते सितम्बर में यूपीआई से 11 लाख करोड़ रुपए का लेनदेन किया गया। अगस्त में यह आंकड़ा 10 लाख करोड़ रुपए था। जानकारों का कहना है कि डिजिटली लेनदेन करने वालों को ज्यादा आसान यह भी लगता है कि चिल्लर की चिकचिक नहीं करनी पड़ती। ये उन दिनों को याद करते हैं, जब चिल्लर के नाम पर ‘टॉफी करेंसीÓ चलने लगी थी।
एटीएम में कम हुई भीड़
फुहारा, गंजीपुरा जैसे क्षेत्र के एटीएम में अब पैसे निकालने वाले बहुम कम दिखते हैं। एक एटीएम के गार्ड ने बताया कि लोग पैसे निकालने आते हैं, लेकिन लाइन अब नहीं लगती। कभी-कभी तो घंटोंं कोई नहीं आता। उसका कहना था कि अब नोट भरने वाली गाडिय़ां भी कम चक्कर लगाती हैं। अब यह बदलाव जरूर आया है कि एटीएम में पैसे जमा करने वाले बढ़े हैं। इस बारे में जानकारों का कहना है कि यूपीआई से पैसे ट्रांसफर करने की लिमिट तय है। जबकि, एटीएम में ज्यादा पैसे भी जमा कर सकते हैं। इसलिए बैंक में लाइन लगाने से अच्छा लोग एटीएम में जमा कर देते हैं। बैंक में जाने से इसलिए भी बचते हैं, क्योंकि वहां टाइम तय होता है। एटीएम में कभी भी जमा किया जा सकता है।
सावधानी फिर भी जरूरी
यूपीआई का जितना तेजी से चलन बढ़ा है, उतनी तेजी से साइबर अपराधी भी सक्रिय हुए हैं। इसलिए जानकारों का कहना है कि डिजीटली लेनदेन कभी भी जल्दबाजी में ना करें। बड़े-लेन से बचें। मोबाइल और यूपीआई का कोड यहां तक कि घर के भी किसी सदस्य को बताने से बचें। हो सकता है कि कोई साइबर अपराधी आपकी जगह घर के किसी सदस्य को फोन करके जानकारी जुटा ले। बैंकिंग सेक्टर वालों का यह भी कहना है कि तकनीकी जानकारी नहीं है, तो किसी परिचित से ही समझें। अनजान लोगों से 10 कदम दूर ही रहें। भीड़भाड़ वाली जगह में भी पैसे ट्रांसफर करने से हड़बड़ी की स्थिति बनती है। इसलिए कोशिश करें कि यूपीआई स्कैन दुकानदार को बताकर करें।



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