10 मई 1857 को मेरठ से उठी थी आजादी की पहली चिंगारी,जानिए क्या हुआ था

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10 मई 1857 को मेरठ से उठी थी आजादी की पहली चिंगारी,जानिए क्या हुआ था

वर्ष 1857 में वह ऐतिहासिक दिन 10 मई ही था, जब देश की आजादी के लिए पहली चिंगारी मेरठ से भड़की थी। अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नींव साल 1857 में सबसे पहले मेरठ के सदर बाजार में भड़की, जो पूरे देश में फैल गई थी। यह मेरठ के साथ-साथ पूरे देश के लिए गौरव की बात है। मेरठ के क्रांति स्थल और अन्य धरोहर आज भी अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिधरा से शुरू हुई आजादी की क्रांति की याद ताजा करती हैं।

शहर में में 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की क्रांति की चिंगारी उस वक्त फूटी थी, जब देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ जनता में गुस्सा भरा हुआ था। अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के लिए रणनीति तय की गई थी। एक साथ पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बजाना था, लेकिन मेरठ में तय तारीख से पहले अंग्रेजों के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। इतिहासकारों की माने और राजकीय स्वतंत्रता संग्रहालय में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित रिकार्ड को देखे तो, दस मई 1857 में शाम पांच बजे जब गिरिजाघर का घंटा बजा, तब लोग घरों से निकलकर सड़कों पर एकत्रित होने लगे थे। 

सदर बाजार क्षेत्र से अंग्रेज फौज पर लोगों की भीड़ ने हमला बोल दिया। नौ मई को कोर्ट मार्शल में चर्बीयुक्त कारतूसों को प्रयोग करने से इंकार करने वाले 85 सैनिकों का कोर्ट मार्शल किया गया था। उन्हें विक्टोरिया पार्क स्थित नई जेल में बेड़ियों और जंजीरों से जकड़कर बंद कर दिया था। दस मई की शाम को ही इस जेल को तोड़कर 85 सैनिकों को आजाद करा दिया था। कुछ सैनिक तो रात में ही दिल्ली पहुंच गए थे और कुछ सैनिक ग्यारह मई की सुबह यहां से भारतीय सैनिक दिल्ली के लिए रवाना हुए और दिल्ली पर कब्जा कर लिया था।

मेरठ छावनी में सैनिकों को 23 अप्रैल 1857 में बंदूक में चर्बी लगे कारतूस इस्तेमाल करने के लिए दिए गए। भारतीय सैनिकों ने इन्हें इस्तेमाल करने से इंकार कर दिया था। तब 24 अप्रैल 1857 में सामूहिक परेड बुलाई गई और परेड के दौरान 85 भारतीय सैनिकों ने चर्बी लगे कारतूसों को इस्तेमाल करने के लिए दिया गया, लेकिन परेड में भी सैनिकों ने कारतूस का इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया। सैनिकों द्वारा चर्बी लगे कारतूस इस्तेमाल करने से इनकार करने पर उन सभी का कोर्ट मार्शल कर दिया गया। मई छह, सात और आठ को कोर्ट मार्शल का ट्रायल हुआ, जिसमें 85 सैनिकों को नौ मई को सामूहिक कोर्ट मार्शल में सजा सुनाई गई। और विक्टोरिया पार्क नई जेल में ले जाकर बंद कर दिया था। दस मई को 85 सैनिकों को जेल तोड़कर आजाद कर दिया था।  क्रांति का गवाह औघड़नाथ मंदिर भी है। काली पलटन के सैनिक वहीं पीछे आवासों में रहते थे। औघड़नाथ मंदिर से नजदीक ज्यादातर स्वतंत्रता सेनानी मंदिर में आकर रुकते थे। उस समय अंग्रेजों ने मंदिर के पास ट्रेनिंग सेंटर भी बनाया था।

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