हिंदी भाषियों के गढ़ में कहीं BJP को भारी न पड़ जाए गुजराती उम्मीदवार,अंधेरी पूर्व विधानसभा उप चुनाव का पूरा गणित समझिए

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हिंदी भाषियों के गढ़ में कहीं BJP को भारी न पड़ जाए गुजराती उम्मीदवार,अंधेरी पूर्व विधानसभा उप चुनाव का पूरा गणित समझिए

हिंदी भाषियों के गढ़ में कहीं BJP को भारी न पड़ जाए गुजराती उम्मीदवार,अंधेरी पूर्व विधानसभा उप चुनाव का पूरा गणित समझिए

मुंबई: अगले महीने की तीन तारीख को विधानसभा की अंधेरी पूर्व सीट (Andheri East Assembly By Election) के लिए उप चुनाव होना है। इस सीट पर ज्यादातर हिंदी भाषी और मराठी मतदाता ही निर्णायक स्थिति में है। लेकिन बीजेपी ने यहां से गुजराती भाषी मुरजी पटेल को उम्मीदवारी दी है। इसके बाद क्षेत्र में यह चर्चा चल पड़ी है कि कहीं यह फैसला बीजेपी(BJP) को भारी न पड़ जाए। इसकी एक पटेल के खिलाफ बीजेपी के भीतर भी काफी अंतरविरोध बताया जा रहा है। बीजेपी के नेता भी इस खतरे को भांप रहे हैं, इसलिए शिवसेना को हराने के लिए शिंदे गुट (Eknath Shinde Camp) का एक उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारने की जुगत लड़ाई जा सकती है। हालांकि, शिंदे गुट के एक नेता ने कहा ‘यह बहुत जोखिम वाला काम है। अगर हम एक पूर्व शिवसैनिक (Shiv Sainik) की विधवा के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारेंगे, तो शिवसैनिकों में इसका गलत संदेश भी जा सकता है।’

2019 में अंधेरी पूर्व की विधानसभा सीट पर चुनाव जीतने वाले शिवसेना विधायक रमेश लटके के निधन के बाद इस सीट पर उप चुनाव कराया जा रहा है। शिवसेना ने यहां से दिवंगत रमेश लटके की पत्नी ऋतुजा रमेश लटके को उम्मीदवार बनाया जा रहा है। अंधेरी के जानकारों का कहना है कि अंधेरी में केवल नागरदास रोड का जो पट्टा है सिर्फ उसी में ज्यादातर गुजराती वोटर हैं। बाकी पूरा चुनाव क्षेत्र उत्तर भारतीयों का गढ़ माना जाता है। इसके बावजूद शिवसेना के रमेश लटके यहां से विधायक चुने जाते थे। इसकी दो वजहों थीं। एक तो तीन बार वह स्थानीय नगरसेवक रहे थे। उनका अपने इलाके में अच्छा जनसंपर्क था। दूसरे उनके फेवर में मराठी वोटर एकजुट होकर वोटिंग करता था।

2014 में बीजेपी ने इस समीकरण को तोड़ने की बड़ी कोशिश की थी। योजनाबद्ध रूप से उसने यहां से अपने उत्तर भारतीय उम्मीदवार सुनील यादव को चुनाव मैदान में उतारा था। लेकिन 2014 की मोदी लहर के बावजूद शिवसेना उम्मीदवार लटके ने सुनील यादव को हराकर चुनाव जीता। सुनील यादव को 52 हजार 817 वोटों के मुकाबले में 47 हजार 388 वोट मिले थे। कांग्रेस के सुरेश शेट्टी तीसरे नंबर पर रहे थे। उन्हें 37 हजार 929 वोट मिले थे।

2019 की कहानी
अब बात करते हैं 2019 के चुनाव की। 2019 में शिवसेना-बीजेपी ने मिलकर चुनाव लड़ा और सीटों के बंटवारे में यह सीट शिवसेना के खाते में गई। लेकिन बीजेपी के मुरजी पटेल ने यहां से निर्दलीय चुनाव लड़ा। कहने वाले कहते हैं कि उन्हें बीजेपी का अंदरूनी समर्थन था। उन्हें 2014 में बीजेपी के अधिकृत प्रत्याशी सुनील यादव की तुलना में 1580 वोट कम मिले और शिवसेना के रमेश लटके को 9 हजार 956 वोट ज्यादा मिले।

2022 के समीकरण
इस बार उप चुनाव की खासियत यह है कि इस चुनाव में न तो शिवसेना के रमेश लटके जीवित हैं और न ही बीजेपी के सुनील यादव। इसका खामियाजा शिवसेना और बीजेपी दोनों को उठाना पड़ सकता है। खासकर बीजेपी के लिए चिंता की बात यह है कि शिवसेना को इस बार कांग्रेस और एनसीपी दोनों का समर्थन मिल रहा है। कांग्रेस का इस चुनाव क्षेत्र में कम से कम 30 से 35 हजार वोट बैंक हैं। क्योंकि 2014 में कांग्रेस के सुरेश शेट्टी को यहां से 37 हजार से ज्यादा वोट मिले थे वहीं 2019 में कांग्रेस के अमीन कुट्टी को 27 हजार से ज्यादा वोट मिले थे। यह वोट इस बार शिवसेना के खाते में जा सकते हैं। दूसरी बात यह है कि अंधेरी पूर्व के इस चुनाव में शिवसेना को सहानुभूति का डबल फायदा हो सकता है। एक तो रमेश लटके के अपने निजी संपर्क और समर्थन का फायदा उसे मिलेगा दूसरी तरफ एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद उद्धव को मिल रही सहानुभूति का फायदा भी उसे मिल सकता है।

बीजेपी के लिए मुश्किल की बात यह भी हो सकती है कि सुनील यादव उत्तर भारतीय उम्मीदवार थे, इसलिए उन्हें उत्तर भारतीयों के वोट बड़ी तादाद में मिले थे। इस बार गुजराती भाषी मूरजी पटेल को उत्तर भारतीयों का इतना समर्थन मिलेगा इसमे शंका है। परेशानी इससे आगे भी है। बीजेपी के उत्तर भारतीय नेताओं को भी लग रहा है कि अगर मूरजी पटेल यहां से चुनाव जीत गए, तो उत्तर भारतीयों के हक का एक चुनाव क्षेत्र उनके हाथ से हमेशा के लिए निकल जाएगा। इसलिए वह अभी से माहौल बनाने में लग गए हैं। बीजेपी के एक कद्दावर उत्तर भारतीय नेता ने कहा कि मूरजी पटेल की इमेज तो पूरे चुनाव क्षेत्र में बिल्डर लॉबी के आदमी की है। इलाके की जनता उसे पसंद नहीं करती। 2019 में उसे इसलिए वोट मिल गए थे क्योंकि तब बीजेपी का कोई अधिकृत प्रत्याशी नहीं था। इस बार उत्तर भारतीय पटेल को कितना वोट देंगे कुछ कहा नहीं जा सकता।

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