​हर साल सिर्फ फाेटाे बदली और प्राप्त कर ली नर्सिंग काॅलेज की मान्यता | How an fake nursing college get recognition | Patrika News

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​हर साल सिर्फ फाेटाे बदली और प्राप्त कर ली नर्सिंग काॅलेज की मान्यता | How an fake nursing college get recognition | Patrika News

​हर साल सिर्फ फाेटाे बदली और प्राप्त कर ली नर्सिंग काॅलेज की मान्यता | How an fake nursing college get recognition | Patrika News

मामला भोपाल में संचालित एपीएस एकेडमी ऑफ नर्सिंग, साकेत नगर भोपाल का है। इस कॉलेज ने नर्सिंग कॉउंसिल को दिए दस्तावेजों में जो भवन दिखाया, उसमें निजी स्कूल (भोपाल पब्लिक स्कूल) चल रहा है। कॉलेज में दिखाए शिक्षक अन्य नर्सिंग कॉलेजों में भी कार्यरत बताए गए हैं। इसके बाद भी कॉलेज को कई बरसों से मान्यता मिल रही है।

कॉलेज में 2020-21 में कार्यरत बताए शैक्षणिक स्टाफ रश्मि सिंह एपीएस नर्सिंग एकेडमी सहित 4 कॉलेजों में, प्रतीक 3 , लोतिका एंड्रयूज 4 , ऐमी मैथ्यू 2 , हरेन्द्र सिंह 2 , जितेन्द्र सिंह- 2 , ज्योति बनकर-2 व विनोद कुमार-2 कॉलेजों में एक ही समय पर कार्यरत दिखाए गए। 2021-22 में यही रश्मि सिंह एपीएस सहित 2 कॉलेजों में भी कार्यरत दिखाई गई है।

हर साल अलग-अलग बिल्डिंग…
एपीएस एकेडमी ऑफ नर्सिंग ने 2020-21 में मान्यता के लिए चौकसे नगर बैरसिया भोपाल में संजीव चौकसे से 3 मंजिला भवन किराए पर दिखाया। 2021-22 में मान्यता के लिए नया भवन साकेत नगर में दीपक गुप्ता से किराए पर लेना दिखाया। इसमें भोपाल पब्लिक स्कूल भी है। एक फ्लोर पर 4000 वर्गफीट में कॉलेज चल रहा है, जबकि आवंटित सीटों के हिसाब से 25 हजार वर्गफीट का भवन जरूरी है।

अटेंडर को मरीज बना कागजों में करते थे इलाज-
आयुष्मान कार्डधारी मरीजों को होटल वेगा में रखकर इलाज करने वाले सेन्ट्रल इंडिया किडनी अस्पताल की संचालक डॉ. दुहिता पाठक और डॉ. अश्वनी पाठक ने शासन को ज्यादा से ज्यादा चपत लगाने के लिए कई सारे कारनामे कर रखे थे।

अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों के अटेंडर को भी अस्पताल में भर्ती बता दिया जाता था। यह सारा खेल कागजों में होता था। इसके लिए उनका आधार नम्बर उपयोग किया जाता था। बकायदा उसकी ट्रीटमेंट फाइल भी बना दी जाती थी।

उसकी फाइलों में भी महंगी दवाएं दिए जाने का उल्लेख है। स्वास्थ्य विभाग की टीम को जांच में ऐसे दस्तावेज हाथ लगे हैं। विभाग दस्तावेजों की जांच कर रहा है।

पांच लाख पूरा वसूलने की कवायद-
योजना के तहत एक परिवार के सभी सदस्यों का एक साल में पांच लाख रुपए तक फ्री इलाज किए जाने का प्रावधान है। कार्ड में पूरे परिवार की जानकारी होती थी। कई बार डॉक्टर दंपती अस्पताल में भर्ती का बिल बनाने के लिए उसके अटेंडरों का भी सहारा लेते थे।

अलग-अलग बनाई जाती थीं फाइलें-
अस्पताल ने आयुष्मान से मरीजों का क्या इलाज किया, कितना पैसा लिया, इसकी जानकारी न तो मरीज को दी जाती और न ही परिजनों को। मरीजों को डिस्चार्ज के समय दी जाने और योजना से रकम वसूली के लिए अलग-अलग फाइलें बनाई गई थीं।



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