स्वयंभू शिवलिंग श्री पातालेश्वर महादेवः कई बार तोड़ा, फिर प्रकट हुआ, मंदिर परिसर से है पाताल का रास्ता!

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स्वयंभू शिवलिंग श्री पातालेश्वर महादेवः कई बार तोड़ा, फिर प्रकट हुआ, मंदिर परिसर से है पाताल का रास्ता!

स्वयंभू शिवलिंग श्री पातालेश्वर महादेवः कई बार तोड़ा, फिर प्रकट हुआ, मंदिर परिसर से है पाताल का रास्ता!

मंदिर में मिलती है मन को शांति

मंदिर में पूजा अर्चना करने आने वाले श्रद्धालुओं रामारानी, सीमा, संतोष आदि ने बताया कि वह पिछली कई पीढ़ियों से इस मंदिर में श्री पातालेश्वर महादेव जी के दर्शन करने व जलाभिषेक करने आ रहे हैं। यहां आकर उन्हें मन की शांति तो मिलती ही है, उनकी सारी मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं।

मंदिर को एक सिद्ध पीठ बताया

मंदिर को एक सिद्ध पीठ बताया

डॉक्टर जनार्दन शर्मा ने बताया कि 1985 में यहां जगन्‍नाथपुरी गोवर्धन पीठ से आए जगतगुरू शंकराचार्य स्‍वामी श्री निरंजन देव तीर्थ जी ने कुछ दिनों तक तप किया था। जिसके बाद उन्होंने इस मंदिर को एक सिद्ध पीठ बताया और इतिहास के कई सुनहरे पन्नों को खंगालते हुए इस स्थान से जुड़े कई रहस्यों को दुनिया के सामने उजागर किया था।

मंदिर में पाताल कुआं

मंदिर में पाताल कुआं

इसके अलावा यहां एक ऐतिहासिक पाताल कुआं भी है जिसके बारे में लोगों की मान्यता है कि किसी समय यहां से दूध निकला करता था। मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉक्टर जनार्दन शर्मा का कहना है कि यहां अलग अलग राज्यों और दूर-दूर से श्रद्धालु मंदिर में पहुंचकर इस प्राचीन धरोहर के दर्शन करते हैं और स्वयंभू शिवलिंग के रूप में विराजमान भगवान पातालेश्वर महादेव जी का जलाभिषेक कर अपनी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

मंदिर प्रांगण में एक प्राचीन एवं ऐतिहासिक शिव बावड़ी भी

मंदिर प्रांगण में एक प्राचीन एवं ऐतिहासिक शिव बावड़ी भी

मंदिर प्रांगण में एक प्राचीन एवं ऐतिहासिक शिव बावड़ी भी है। जो पताल लोक से होते हुए कहां तक जा रही है, इस बात का खुलासा आज तक कोई नहीं कर पाया। भले कितना भी सूखा क्यों न पड़ जाए मगर यहां पानी कभी नहीं सूखता। मंदिर के मुख्य पुजारी मुकेश गौतम ने बताया कि प्राचीन काल में जब इस क्षेत्र में अकाल पढ़ता था तो लोग इसी बावड़ी से जल निकालकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते थे। और ऐसा करते करते जब भगवान शंकर जी की जलहरी भर जाती थी तो भरपूर बारिश होने लगती थी।

शिवलिंग के कटे हुए भाग आज भी मंदिर में मौजूद​

शिवलिंग के कटे हुए भाग आज भी मंदिर में मौजूद​

कहा जाता है कि इतिहास में क्रूर शासकों द्वारा यहां स्थित स्वयंभू शिवलिंग को कटवा दिया गया था। मगर जैसे ही शिवलिंग को काटा जाता अगले ही पल फिर से उसी स्थान पर दोबारा शिवलिंग प्रकट हो जाते। जिनके दर्शन कर शिवलिंग काटने वाले तत्कालीन क्रूर शासक भी नतमस्तक हो लौट गए। मंदिर प्रांगण में स्थापित शिवलिंग के कटे हुए भाग आज भी उस किस्से की गवाही दे रहे है।

शिवलिंग जमीन के स्तर से काफी नीचे विराजमान​

शिवलिंग जमीन के स्तर से काफी नीचे विराजमान​

मंदिर में श्री पातालेश्वर महादेव शिवलिंग रूप में विराजमान है। हालांकि शिवलिंग के प्रकट होने की तारीख या समय को लेकर किसी के पास ठीक से कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। मगर इतना सब जानते है कि भले ब्रिटिश साम्राज्य हो या फिर मुगल सल्तनत। हर युग में श्री पातालेश्वर महादेव इसी तरह शिव भक्तों को दर्शन देते आएं है। यहां शिवलिंग जमीन के स्तर से काफी नीचे विराजमान है और मंदिर प्रांगण में दो कटे हुए शिव लिंगों के भी दर्शन किए जा सकते है।

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