‘सेकेंड लॉकडाउन लगा था और मेरे पापा चल बसे थे’, पत्रलेखा ने सुनाया ‘आर या पार’ के शुरू होने का किस्सा

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‘सेकेंड लॉकडाउन लगा था और मेरे पापा चल बसे थे’, पत्रलेखा ने सुनाया ‘आर या पार’ के शुरू होने का किस्सा

‘सेकेंड लॉकडाउन लगा था और मेरे पापा चल बसे थे’, पत्रलेखा ने सुनाया ‘आर या पार’ के शुरू होने का किस्सा

हर किसी की तरह पत्रलेखा को भी जिंदगी में ऐसा ‘राजकुमार’ मिला, जिसके साथ वह ‘राज’ कर रही हैं। वे साथ में फिल्में देखते हैं और एक-दूसरे को गिफ्ट देते हैं। इन दिनों पत्रलेखा अपनी सीरीज ‘आर या पार’ को लेकर चर्चा में हैं। इसकी तरह जिंदगी में भी उन्होंने ‘आर या पार’ वाला लम्हा जीया है, जब उन्हें एक्ट्रेस बनना था। ‘सिटी लाइट्स’ और ‘बोस-डेड एंड एलाइव’ के अलावा फैंस पत्रलेखा और राजकुमार को साथ में देखने के लिए बेताब हैं लेकिन दोनों अभी अच्छी कहानी और डायरेक्टर के इंतजार में हैं। पत्रलेखा बताती हैं कि मैं और राज चाहते हैं कि जब हम काम करें तो वह अच्छा हो।

वॉशरूम के लिए कई किमी दूर जाना पड़ता था
‘आर या पार’ में मेरे संघमित्रा के किरदार को आप चुनौतीपूर्ण कह सकते हैं लेकिन सबसे चुनौतीपूर्ण नहीं। मैंने इस किरदार को जानबूझकर चुना था इसलिए कठिन होने जैसी कोई बात ही नहीं। मुझको पता था कि सेट पर क्या होने वाला है। हालांकि, शूटिंग फिजिकली काफी चुनौतीपूर्ण थी क्योंकि जंगलों में शूटिंग थी। वहां एक से डेढ़ किलोमीटर पैदल चलकर जाना पड़ता था। आपको वॉशरूम जाना है तो डेढ़ किमी पैदल चलकर ऊपर जाइए। फिर गाड़ी लीजिए। वहां से भी एक किमी. आगे जाइए, तब जाकर वैनिटी मिलती थी। वो सब थोड़ा कठिन था लेकिन हमने मजे भी बहुत किए। मैंने इस तरह का किरदार पहले नहीं किया था। अब तक लाइफ का सबसे चैलेंजिंग किरदार मैंने लव रंजन के प्रोजेक्ट ‘गुलकंदा टेल्स’ में निभाया है।

क्रिएटिव फील्ड में हर बार चुनौती है
मैं यह नहीं मानती कि डर के कारण ही परफॉर्मेंस बेहतर होती है। कई बार इसका उल्टा भी होता है। आप जब किसी जानी-पहचानी चीज को करते हैं तो वहां डर की गुंजाइश नहीं रहती, लेकिन क्रिएटिव फील्ड में तो हर बार नई चुनौती है। दिक्कत तभी होती है, जब फिल्म या सीरीज शुरू करने से पहले आपको पता नहीं होता कि कैरेक्टर कैसे करना है, वो क्या है, कौन सी दिशा में जाएगा, सेट पर कौन लोग हैं, नई यूनिट है, नए को-ऐक्टर्स हैं, नई कहानी है। इस वजह से बस कुछ दिन सेटल होने में लगते हैं। ‘आर या पार’ का ही किस्सा ले लीजिए। पहले दिन मेरा सुमित व्यास के साथ शूट था। मेरे मन में डर था कि ऐक्टिंग कर पाऊंगी या नहीं। मैं गई और सीन शूट किए। सुमितजी देख रहे थे कि मैं अटक रही हूं। उन्होंने कुछ बोला नहीं, बस मुझसे बातें कीं, ताकि मेरा डर दूर हो। सच में सुमित व्यास जितने अच्छे इंसान हैं, उतने ही अच्छे को-ऐक्टर भी हैं।

जब पापा गुजरे थे, तब आया था ऑडिशन के लिए कॉल
‘आर या पार’ के ऑडिशन के लिए फोन तब आया था, जब मैं जिंदगी के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही थी। उस वक्त सेकेंड लॉकडाउन लगा था और मेरे पापा चल बसे थे। मैं तब शिलॉन्ग में थी। उसी दौरान कास्टिंग टीम का ऑडिशन के लिए कॉल आया था। मैंने अपनी परेशानी बताकर उनको मना कर दिया। एक महीने बाद फिर उनका कॉल आया। उस वक्त भी लॉकडाउन चल रहा था। उन्होंने बताया कि डायरेक्टर साहब चाहते हैं कि आप एक बार ऑडिशन दें। मुझे लगा कि कोई चाहता है कि मैं ऑडिशन दूं तो ऐक्टर के तौर पर मेरे लिए यह बड़ी बात है। मैंने ऑडिशन दिया और भूल गई। एक हफ्ते बाद फोन आया कि डायरेक्टर को आपका ऑडिशन बहुत सही लगा। उस वक्त लॉकडाउन खुल भी रहा था तो मैंने हां कर दी। दरअसल, इस शो के जो क्रिएटिव हैं सिद्धार्थ सेनगुप्ता, पहले लॉकडाउन में मैंने उनकी सीरीज ‘अनदेखी’ देखी थी। मुझे वह बहुत हटकर लगी। मेरा उनके साथ तभी से काम करने का मन था। उसके बाद उन्होंने ‘ये काली-काली आंखें’ बनाई। आप कह सकते हैं कि संघमित्रा का किरदार मेरी किस्मत में ही लिखा था।

पत्नी होने के नाते मेरी फिल्में देखना उनका फर्ज़ है
राज (राजकुमार राव) मेरे पति हैं इसलिए मेरा काम देखना उनका फर्ज़ बनता है। उन्होंने ‘आर या पार’ भी देखी है। वैसे, राज बहुत कॉन्टेंट देखते हैं। फिर चाहे वो किसी भी भाषा में आई फिल्म, सीरीज हो। मैं इसमें उनका काफी साथ देती हूं। अगर हम दोनों मुंबई में हैं तो साथ में कॉन्टेंट देखते हैं। बीते दिनों हम लंदन में हॉलिडे पर थे। वहां रोज शाम को होटल वापस आकर राज ‘आर या पार’ लगा देते थे। इसके अलावा, कुछ फिल्में और भी देखीं। लंदन जाने से पहले ही हमने मन बना लिया था कि वहीं पर ‘अवतार-2’ देखेंगे क्योंकि वहां के थिएटर ज्यादा एडवांस्ड हैं। हमने साथ में एक इंटरनैशनल मूवी भी देखी, जो भारत में रिलीज नहीं होनी थी। हम दोनों को फिल्में देखना बहुत पसंद है। ये हमारी कॉमन हॉबी है।

अपने काम को लेकर राज से सलाह लेती हूं
अगर मैं कभी कन्फ्यूज्ड होती हूं कि मुझे क्या करना है और क्या नहीं तो मैं राज से सलाह ले लेती हूं। इसमें कोई बुराई नहीं क्योंकि राज इतना बेहतर काम करते हैं। स्क्रिप्ट को लेकर उनका सेंस बहुत अच्छा है। वहीं, राज की बात करूं तो वह अपने काम को लेकर बहुत क्लियर हैं। वह कभी ऐसे नहीं डगमगाते कि यह काम करना चाहिए कि नहीं। इस चीज को लेकर वह बहुत स्पष्ट हैं।

सोशल मीडिया पर कोई कुछ भी मुंह उठाकर बोल देता
सोशल मीडिया दिन-ब-दिन बहुत कॉम्प्लेक्स होता जा रहा है। 5-6 साल पहले इसमें मजा आता था। आपके पोस्ट या फोटोज बड़े चाव से लोग देखते थे। मैं ऑर्कुट (सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म, जो अब बंद हो गया) के टाइम से सोशल मीडिया पर ऐक्टिव हूं, जब वो शुरू हुआ था और जब खत्म हो रहा था। सोशल मीडिया के जरिए आप उन फ्रेंड्स से मिल सकते हैं, जिनसे जमाने पहले आपका साथ छूट गया था। शुरुआत में ये बहुत कनेक्टिंग था लेकिन जैसे-जैसे फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम आते गए और अपग्रेड होते गए, वैसे-वैसे पूरी दुनिया बस एक जगह पर सिमटकर आ गई। इससे धीरे-धीरे जहर भी घुलने लगा। कोई भी मुंह उठाकर कुछ भी बोल देता है। ऐसी हरकतें किसी के भी मेंटल हेल्थ के लिहाज से सही नहीं हैं। मुझे लगता है कि एक अच्छी चीज गलत रास्ते पर जाने लगी है।

खुद को छोड़कर सबके लिए गिफ्ट लेते हैं
मुझे गोलगप्पे खाने का शौक है और लखनऊ की चाट कितनी अच्छी है। पिछले साल राज लखनऊ में ‘भीड़’ की शूटिंग कर रहे थे और मैं चंडीगढ़ में लव रंजन सर का प्रोजेक्ट कर रही थी। उस वक्त मैं लखनऊ आई थी, तब अनुभव सिन्हा (डायरेक्टर) सर ने वहां का बहुत सारा टेस्टी खाना खिलवाया था। उन्होंने चाट, कबाब, बिरयानी खिलवाई। ऐसा कभी नहीं होता कि राज लखनऊ जाएं और मेरे लिए कुछ ना लाएं। ये मुझे बहुत आरामदायक लगते हैं और बहुत सुंदर भी। राज अक्सर शूटिंग के बाद खाते-पीते हैं या फिल्में देखते हैं। उन्हें गिफ्ट्स देना पसंद है लेकिन अपने लिए वह कुछ नहीं खरीदते हैं। मैं उनके लिए गिफ्ट्स खरीदती हूं। मैं अपनी बड़ाई नहीं कर रही। ना यकीन हो तो राज से पूछिएगा कि कौन उनके लिए गिफ्ट्स खरीदता है तो वह मेरा ही नाम लेंगे।