सूबे में गहरा संकट- 31 जिले…3447 गांव…13,708 से ज्यादा मवेशी लंपी वायरस की चपेट में | Deep crisis of lumpy virus in Madhya Pradesh | Patrika News

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सूबे में गहरा संकट- 31 जिले…3447 गांव…13,708 से ज्यादा मवेशी लंपी वायरस की चपेट में | Deep crisis of lumpy virus in Madhya Pradesh | Patrika News

सूबे में गहरा संकट- 31 जिले…3447 गांव…13,708 से ज्यादा मवेशी लंपी वायरस की चपेट में | Deep crisis of lumpy virus in Madhya Pradesh | Patrika News

हालांकि सरकार 6,08,849 मवेशियों का टीकाकरण करा चुकी है। 10,824 पशु स्वस्थ हो गए, पर इतने भर से काम नहीं चलेगा। स्थिति नाजुक है। विभाग के पास वैक्सीन की कमी है। बाजार में डोज मिल नहीं रहे या कालाबाजारी हो रही है। दरअसल, मध्यप्रदेश से वैक्सीन निर्माता कंपनियों के पास 10 लाख डोज टीके का ऑर्डर देरी से पहुंचा है, इसलिए कंपनियों को आपूर्ति करने में वक्त लगा रहा है।

नियम के मुताबिक, 5 हजार मवेशियों पर एक डॉक्टर होना जरूरी है, लेकिन मध्यप्रदेश में 25 हजार मवेशियों पर सिर्फ एक डॉक्टर है। स्वीकृत 1671 पदों में से 200 खाली हैं। पैरामेडिकल, तकनीकी स्टाफ आधे हैं। करीब तीन हजार पद खाली हैं। ब्लॉक स्तर पर पशु चिकित्सकों के पास वाहन नहीं हैं, जिससे वे गांव-गांव जाकर इलाज कर सकें। हालात पर जल्द काबू नहीं किया गया तो मध्यप्रदेश की स्थिति सर्वाधिक प्रभावित राजस्थान जैसी हो सकती है, क्योंकि मध्यप्रदेश की सीमाएं वहां से सटी हैं। इससे न सिर्फ कृषि अर्थव्यवस्था, बल्कि डेयरी आजीविका पर संकट आ सकता है।

सर्वाधिक प्रभावित जिलों की ग्राउंड रिपोर्ट-
बैतूल: 21 मवेशियों की मौत
बैतूल जिले में 21 मवेशियों की मौत हो चुकी है। संक्रमण फैलने से रोकने के लिए मवेशियों को दफनाया जा रहा है। एक हजार मवेशी लंपी ग्रस्त हैं। स्वस्थ मवेशियों को लगाने पर्याप्त टीके नहीं हैं। 39 पशु चिकित्सक की जगह 21 हैं।

मंदसौर: पशु हाट को बंद किया
राजस्थान से सटे मंदसौर जिले के 454 गांवों में 1335 गोवंश संक्रमित हुए। इनमें से 26 गायों की मौत हो चुकी है। 1302 स्वस्थ हुए हैं। स्टाफ की कमी है। जनसहयोग से काम हो रहा है। सभी पशु हाट को बंद कर दिया है।

नीमच: 252 गांव प्रभावित
नीमच जिले में 942 पशुओं में लंबी वायरस की पुष्टि हो चुकी है। 252 गांवों के पशुओं में वायरस के लक्षण पाए गए हैं। अब तक 19 मवेशी दम तोड़ चुके हैं। संक्रमण की रोकथाम के लिए 138 कर्मचारियों का अमला लगा हुआ है।

अफसर गलतफहमी में रहे, नतीजतन आधा प्रदेश चपेट में
1. मध्यप्रदेश में वैक्सीन का टोटा होने से वायरस का कहर बढ़ता जा रहा है। प्रदेश को कंपनियां पर्याप्त मात्रा में टीका नहीं उपलब्ध करा पा रही हैं, क्योंकि इन्हें राजस्थान और गुजरात ने पहले ऑर्डर किया था। वे वहां की पूर्ति कर रही हैं।
2. बता दें, देश में लंपी वायरस की वैक्सीन की आपूर्ति हरियाणा और विदेश की एक कंपनी करती है। शुरुआती दौर में प्रदेश के पशुपालन विभाग ने सरकार को भरोसा दिलाया कि संक्रमण का असर नहीं होगा, इसलिए तैयारी ही नहीं की गई।
3. कोरोना से पहले वर्ष 2019 में ओडिशा से लंपी वायरस आया था। तब पशुपालन विभाग ने इसके लिए एक विंग बनाई थी। इस विंग ने संक्रमण के शुरुआती दौर तक काम नहीं किया। इससे स्थितियां बिगड़ती गईं।

सीएम ने उठाए कदम: बाहर के मवेशियों पर लगाया प्रतिबंध
बीमारी को देखते हुए सरकार ने सभी जिलों को हाईअलर्ट कर दिया है। दूसरे राज्यों के पशुओं की एंट्री बैन कर दी है। सीएम शिवराज सिंह चौहान उच्च स्तरीय बैठक कर लंपी वायरस को रोकने के लिए कोविड नियंत्रण जैसे उपाय करने के निर्देश दे चुके हैं। जागरूकता के लिए ग्राम सभाओं का आयोजन किया जा रहा है। लोगों को बचाव के उपाय बताए जा रहे हैं।

पांच सवालों में लंपी-

1. क्या है यह बीमारी?
– यह एक स्किन बीमारी है, जो पॉक्स प्रजाति के वायरस से गोवंशीय और भैंसवंशीय पशुओं में होती है।

2. इसके लक्षण क्या हैं?
– संक्रमित पशु को बुखार, मुंह से अत्यधिक लार और आंखें-नाक से पानी बहता है। पैरों में सूजन आती है।

3. कैसे होगी पहचान?
– पशु के शरीर पर त्वचा में बड़ी संख्या में 2 से 5 सेंटीमीटर आकार की गठानें बनना। मुंह में छाले पड़ते हैं।

4. क्या दुग्ध उत्पादन गिरता है?
– हां, दूध के उत्पादन में गिरावट आती है। गर्भित पशुओं में गर्भपात व कभी-कभी पशु की मौत हो जाती है।

5. इंसानों पर कितना असर?
– यह बीमारी पशुओं से मनुष्यों में नहीं फैलता। विशेषज्ञों के अनुसार गाय का दूध लंपी के बावजूद सुरक्षित है।

एक्सपर्ट व्यू –
वैटनरी काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष उमेश शर्मा कहते हैं कि पशुओं की संख्या के अनुसार, मध्यप्रदेश सहित देश में डॉक्टरों, पैरामेडिकल स्टाफ और तकनीकी स्टाफ के पद बढ़ाने की जरूरत है। मध्यप्रदेश में डॉक्टरों के करीब आठ सौ पद और बढ़ाने के साथ इन पर भर्ती की जानी चाहिए। ब्लॉक स्तर के अस्पतालों को संसाधनयुक्त बनाने की जरूरत है।



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