सीट तो गई लेकिन वोट बैंक बचाने में सफल रही बीजेपी, भविष्य में एमवीए बढ़ाएगी शिंदे-फडणवीस की मुश्किलें?

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सीट तो गई लेकिन वोट बैंक बचाने में सफल रही बीजेपी, भविष्य में एमवीए बढ़ाएगी शिंदे-फडणवीस की मुश्किलें?

सीट तो गई लेकिन वोट बैंक बचाने में सफल रही बीजेपी, भविष्य में एमवीए बढ़ाएगी शिंदे-फडणवीस की मुश्किलें?


मुंबई: महाराष्ट्र में आये उपचुनाव के नतीजों ने आगामी चुनावों में बीजेपी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। कसबा सीट पर 28 साल पुराना किला महाविकास अघाड़ी ने तोड़ दिया है। कसबा पेठ सीट गंवाने के बाद विपक्षी महाविकास अघाड़ी की बढ़ती ताकत उसे ज्यादा परेशान कर रही है। वैसे, इन नतीजों की खास बात यह है कि बीजेपी अपना परंपरागत वोट कसबा और चिंचवड, दोनों ही सीटों पर बचाने में सफल रही है। शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के मिले जुले गठबंधन के वोटों की बदौलत उसे हार का मुंह देखना पड़ रहा है। यह केवल महाराष्ट्र नहीं, बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। उत्तर प्रदेश के बाद 48 सीटों के साथ महाराष्ट्र लोकसभा चुनाव का दूसरा बड़ा खिलाड़ी है। यहां हुई गड़बड़ देश के स्तर पर परेशानी का सबब बन सकती है।

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, बीजेपी को दोनों उपचुनाव में 47 फीसदी से ज्यादा वोट पड़े हैं। आम तौर पर इतने वोट किसी भी सीट पर निर्णायक जीत हासिल करने के लिए काफी होने चाहिए। मगर एनसीपी, कांग्रेस के वोट और शिवसेना (उद्धव ठाकरे) की छिपी ताकत चिंता की लकीरें बढ़ाने का कारण बनी हुई है। देश के बाकी हिस्सों की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू महाराष्ट्र में भी असर करता दिखाई पड़ रहा है और शिवसेना (उद्धव) का साथ छूटने के बाद अपने खुद के वोट बैंक में इजाफा करने में बीजेपी काफी हद तक सफल भी रही है।

मगर दूसरी तरफ यह भी कड़वा सच है कि उद्धव ठाकरे के बिछड़ने की कोई पूर्ति महाराष्ट्र में होती दिखाई नहीं दे रही। तभी एक के बाद उसे झटके लगते रहे हैं। विपक्ष में दूरियां बनाने की कोशिश भी सफल होती दिख रही। एक के बाद एक विपक्षी नेताओं को जेल भेजने की कार्रवाई का उतना फायदा जमीन पर नजर नहीं आ रहा है। बल्कि तीनों पार्टियों का मिलकर बीजेपी को पछाड़ने का एकत्रित संकल्प राजनीतिक पटल पर कहीं ज्यादा कारगर दिखाई दे रही है।

बैक फुट पर बीजेपी?
वैसे भी, पार्टी ने जब से शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे को मुखिया बनाकर सरकार खड़ी की है, तब से राज्य में कोई निर्णायक राजनीतिक जीत दर्ज कराने में पार्टी असफल रही है। मई 2021 में पंढरपुर विधानसभा उपचुनाव की सीट बीजेपी ने झटकी थी। तब से देगलूर (नांदेड़), कोल्हापुर उत्तर और अंधेरी (मुंबई) के विधानसभा उपचुनावों में पार्टी बैकफुट पर नजर आई है। हाल में विधानपरिषद उपचुनाव में भी शिक्षक व ग्रैजुएट सीटों पर एकमात्र कोंकण शिक्षक सीट जीतने में सफल रही। इनमें भी नागपुर और अमरावती के गढ़ गंवाने की टीस उसे झेलनी पड़ी है। ताजा उपचुनाव में 28 वर्षों से गढ़ रही पुणे की कसबा पेठ विधानसभा सीट की हार पचाना आसान नहीं होगा। चिंचवड सीट बच तो गई, मगर शिवसेना का बागी उम्मीदवार 42 हजार वोट न खींचता, तो मुश्किल बढ़ सकती थी। एनसीपी उम्मीदवार को दिवंगत विधायक लक्ष्मण जगताप की विधवा ने 32 हजार वोटों से हराया है।

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