सिलिकॉन वैली बैंक जैसी मुश्किल में आपके घर का गुल्लक ही बचाएगा आपको
क्या भारत के बैंकों पर होगा इसका असर?
अमेरिका के बैंक के अचानक डूबने की खबर से दुनियाभर में चिंता की लहर फैल गई है। लोगों को साल 2008 लेहमन ब्रदर्स के डूबने की याद आ रही है। इस बार भी यही चिंता है कि कहीं इसका असर भारत तक न पहुंच जाये और हमारा वित्तीय सेक्टर जो अब धीरे-धीरे मजबूत होता जा रहा है कही फिर लड़खड़ा न जाये। सिलिकॉन वैली का असर भारतीय बैंकों पर पड़ने की संभावना न के बराबर है। अगर शेयर बाज़ार के रुझान को देखें तो ये बात और मजबूत लग रही है। बैंकिंग एक्सपर्ट भी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि अमेरिकी बैंक के डूबने का असर भारतीय बैंकों पर नहीं पड़ेगा। देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक SBI के पूर्व चेयरमैन रजनीश कुमार ने भी ये बात कही कि अमेरिका के सिलिकॉन वैली बैंक संकट का असर भारतीय बैंकिंग सिस्टम पर नहीं पड़ेगा। अमेरिकी बैंकों में भारतीयों का एक्पोजर नहीं है। सिलिकॉन वैली बैंक इतना बड़ा बैंक नहीं है कि वो बैंकिंग सिस्टम पर असर डाल सके। हालांकि उन स्टार्टअप्स पर जरूर असर पड़ेगा, जिनका पैसा वहां जमा है। भारतीय बैंकों की रेगुलेटरी, कर्ज देने के नियम, आरबीआई की निगरानी जैसे कई लेयर्स हैं, जो उन्हें सिलिकॉन वैली बैंक जैसी गलती करने से रोकते हैं।
भारतीयों की ये आदत उन्हें बचा लेगी
अगर भारत में सिलिकॉन वाली जैसी कोई घटना होती है तो भारतीयों की सेविंग की आदत उन्हें मुश्किल से उबार लेगी। भारत के लोग कर्ज के मुकाबले सेविंग पर ज्यादा फोकस करते हैं। अगर आंकड़ों को देख लें तो रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुमान के मुताबिक साल 2027 तक भारत के लोगों की फाइनेंशियल सेविंग 135 लाख रुपये से बढ़कर 315 लाख करोड़ रुपये हो जाएगी। सिर्फ हाउसहोल्ड सेविंग यानी जो घर में हम बचत करते हैं वो 43.9 लाख करोड़ तक पहुंच गई है। हमारी बचत की आदत हमें इस तरह के बैंकिंग क्राइसिस में बचाकर रखेगी। फिर चाहे बचत घर में रखे गुल्लक में करें, पोस्ट ऑफिस की सेविंग स्कीम में करें या फिजिकल एसेट्स में करें। यहां लोग जमीन और सोने में निवेश कर उसे अपने भविष्य के लिए या मुश्किल वक्त के लिए बचाकर रखते हैं। वित्तीय वर्ष 2021 में भारत में 52.5 फीसदी लोगों ने फिजिकल सेविंग के जरिए बचत की तो वहीं 47.5 फीसदी लोगों ने एसेट्स में निवेश कर सेविंग की। भारतीयों की एक और आदत जो उन्हें बैंकिंग संकट या बैंक के दिवालिया होने की स्थिति में बचाती है, वो है तय लिमिट के साथ बैंकों में सेविंग करना। शेयर मार्केट, म्युचुअल फंड, बीमा, एफडी, पोस्ट ऑफिस सेविंग स्कीम, सरकारी स्कीम, गोल्ड, प्लांट जैसे अलग-अलग एसेट्स में निवेश करने वाले भारतीयों की आदत उन्हें बैंकिंग क्राइसिस में बचाने के लिए कारगर हैं। भारत और अमेरिका के लोगों की फाइनेंशियल आदतों के बारे में बात करें तो अमेरिका में लोगों के कर्ज लेने की आदत हमसे अलग है। अमेरिका में ब्याज दरें कम थीं, जिसकी वजह से वहां के लोगों में लोन लेना आदत में शुमार था। जबकि भारतीयों में लोन का डर रहता है। ऊंची ब्याज दरों की वजह से लोग लोन लेने से बचते हैं। बैंक कर्ज पर लोगों की निर्भरता हमारी कम है।
क्यों डूबा अमेरिकी बैंक
1983 में अमेरिका के सिलिकॉन बैंक की शुरुआत हुई थी। अब बैंक की वित्तीय हालात ऐसी हो गई कि इसपर ताला लग गया। बैंक के डूबने की पूरी कहानी की बात करें तो इस बैंक का मुख्य काम दुनियाभर के स्टार्टअप्स में पैसा लगाना था। इस बैंक ने अपना अधिकतर निवेश यूएस बॉन्ड्स में किया था। अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दरों में बढ़ोतरी किए जाने के बाद बॉन्ड्स की वैल्यू घटने लगी। वहीं दूसरी तरफ महंगाई बढ़ने और दूसरे कारणों के चलते स्टार्टअप्स कंपनियों की फंडिंग में कमी आने लगी । लोग और स्टार्टअप्स बैंक से पैसा निकालने लगे। बैंक को ग्राहकों को भुगतान करने के लिए अपने बॉन्ड्स को घाटे पर बेचना पड़ा, जिसके चलते बैंक 10 हजार करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ। बैंक के ग्राहकों ने बैंक से 3.5 लाख करोड़ रुपये निकाल लिए।
कैसे निपटा था भारत 2008 के संकट से
साल 2008 में जब अमेरिका में बैंकिंग क्राइसिस शुरू हुई थी तो भारत ने उससे निपटने के लिए आरबीआई ने मॉनेटरी पॉलिसी में काफी ढील दी। पहले रेपो रेट 6.5% थी, जिसे घटाकर पहले 5.5%, फिर 5% और फिर घटाकर 4% कर दिया गया। कैश रिजर्व रेश्यो को घटा दिया गया। RBI के इन कदमों से इकनॉमी में करीब 5,60,000 करोड़ रुपए लिक्विडिटी के तौर पर बाहर आए। बाजार में लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए पब्लिक स्पेंडिंग पर भी जोरदार तरीके से खर्च किया।