समाज को कहां ले जाएंगी सोशल मीडिया रील्स?

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समाज को कहां ले जाएंगी सोशल मीडिया रील्स?

समाज को कहां ले जाएंगी सोशल मीडिया रील्स?

मुकुल श्रीवास्तव
जून 2020 में टिक टॉक बैन होने के बाद शॉर्ट वीडियो की दुनिया लंबा रास्ता तय कर चुकी है। इंस्टाग्राम, यूट्यूब और फेसबुक तो हैं ही, एमएक्स, मौज, जोश, चिंगारी, मित्रों जैसे ऐप भी इस दुनिया में तहलका मचाए हुए हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर जिस तरह से फेक न्यूज और आरोप-प्रत्यारोपों की बाढ़ आ गई थी, इसके यूजर विकल्प की तलाश में थे। इसी विकल्प की भरपाई रील्स कर रही हैं।

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा और सबसे तेजी से बढ़ता इंटरनेट यूजर बेस को होस्ट करने वाला देश है। यहां फिल्में, उनके डायलॉग और म्यूजिक हमारे जीवन में इस हद तक घुसे हुए हैं कि उसके बगैर जीवन की कल्पना करना मुश्किल है। हर कोई कैमरे के सामने सिलेब्रिटी बनना चाहता है, जिसका रास्ता रील्स की कुछ इस तरह से बढ़ती दुनिया बना रही है-

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  • 2016 में रिलायंस जिओ के लॉन्च के बाद सस्ते डेटा ने रील्स को भारत में पांव पसारने का बेहतरीन मौका दिया।
  • रेड्शीर कंसल्टिंग फर्म की एंटरटेनमेंट एंड एडवरटाइजिंग राइडिंग द डिजिटल वेव रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक और गूगल के बाद दूसरा सबसे बड़ा सेगमेंट रील्स ही हैं, जहां लोग सबसे ज्यादा समय बिता रहे हैं।
  • शॉर्ट वीडियो बनाने की सुविधा देने वाली वेबसाइट या ऐप्स के यूजर्स की संख्या साल 2025 तक 65 करोड़ हो जाएगी।
  • इसी रिपोर्ट के अनुसार शॉर्ट वीडियो आने वाले वक्त में ओटीटी वीडियो कंटेंट को भी पछाड़ देगा।
  • डिजिटल विज्ञापनों की दुनिया में वीडियो के ये लघु संस्करण तेजी से अपनी जगह बना रहे हैं। साल 2019 से 2022 के बीच यह सेगमेंट 44 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ा।
  • इसकी वजह टियर टू शहरों में इंटरनेट का फैलाव है, जिसने एक नई मार्केट पैदा की है जहां ब्रैंड उपभोक्ता तक सीधे पहुंच बना रहे हैं। यह ढांचा आने वाले वर्षों में बहुत तेजी से बदलेगा।
  • इन रील्स को बनाने में किसी प्रॉडक्शन हाउस की मदद नहीं ली जा रही है। इसकी बड़ी वजह हैं रील बनाने के प्लेटफॉर्मों में आसान इंटरफेस। इसमें किसी को तकनीक का महारथी होने की जरूरत नहीं है।

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विवादों की रील
लेकिन कुछ सवाल ऐसे भी हैं जिनके जवाब अभी खोजे जाने हैं।

  • पहला मुद्दा तो निजता का ही है। टियर टू शहरों से आने वाली रील्स ज्यादातर लोगों के निजी परिवेश को ही दिखा रही हैं, मसलन वे कहां रहते हैं, क्या करते हैं, उनके परिवार के सदस्य कौन-कौन हैं? इनमें काफी कुछ दिख जा रहा है।
  • दूसरा मुद्दा है अश्लीलता का। अपनी रील्स और अपने सोशल मीडिया हैंडल को वायरल करने के लिए लोग सॉफ्ट पोर्न और अश्लील चुटकुलों का सहारा ले रहे हैं।
  • तीसरा, दूसरों के कंटेंट को एडिट कर अपना बना लेने की भी कवायद यहां खूब हो रही है। अपनी रील में इंटरनेट पर पहले से मौजूद किसी भी क्लिप का इस्तेमाल करना नैतिक दृष्टि से उचित नहीं माना जा सकता है।
  • चौथा, लोगों की बिना अनुमति के उनकी वीडियो रील्स में डाली जा रही हैं। मसलन, कोई व्यक्ति रोड क्रॉस करते वक्त मैनहोल में गिर जाता है और कोई रील्स में फनी म्यूजिक लगाकर उसे वायरल कर देता है। पर क्या वह व्यक्ति खुद चाहता कि उसका ऐसा कोई वीडियो वायरल हो?

समय की बर्बादी
इंटरनेट के फैलाव ने बहुत सी निहायत निजी चीजों को सार्वजनिक कर दिया है। ऐसे में हम उन असामान्य घटनाओं को भी सार्वजनिक जीवन का हिस्सा मान लेते हैं, जिनसे एक परपीड़क समाज का जन्म होता है। शायद यही वजह है कि अब दुर्घटना होने पर लोग मदद की बजाय वीडियो बनाने में लग जाते हैं कि उससे वायरल हो जाएंगे। और अंत में सबसे बड़ा मुद्दा रील देखने में समय की बर्बादी का है, जिसमें दर्शक कोल्हू के बैल की तरह चलता तो बहुत है पर पहुंचता कहीं नहीं। इंटरनेट की दुनिया में बिखरी हुई रील्स में फूहड़ चुटकुले, दूसरों को तंग करने वाले मजाक का ज्यादा बोलबाला है। हो सकता है, आने वाले वक्त में जैसे-जैसे इन रील्स के दर्शक समझदार होते जाएं, इनका कंटेंट भी बेहतर होता जाए।

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं

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