सपा में पूर्व मंत्री अवधेश प्रसाद को क्यों मिल रही है तवज्जो? जानिए आखिर क्या है गुणा-गणित

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सपा में पूर्व मंत्री अवधेश प्रसाद को क्यों मिल रही है तवज्जो? जानिए आखिर क्या है गुणा-गणित

सपा में पूर्व मंत्री अवधेश प्रसाद को क्यों मिल रही है तवज्जो? जानिए आखिर क्या है गुणा-गणित


लखनऊ:समाजवादी पार्टी ने शुक्रवार को अपने ट्विटर हैंडल से राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जाते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की ली एक सेल्फी शेयर की। हवाई जहाज के भीतर की इस सेल्फी में सपा अध्यक्ष के साथ पार्टी के महासचिव शिवपाल यादव और अवधेश प्रसाद साथ में बैठे दिख रहे हैं। कोलकाता में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रसाद को मंच पर अपने बगल में बैठाया। इसके बाद से यह चर्चा शुरू हो गई है कि सपा में पूर्व मंत्री और मिल्कीपुर से विधायक अवधेश प्रसाद को इतनी तवज्जो क्यों मिल रही है?

मुलायम से अखिलेश तक सबके ‘खास’

अवधेश प्रसाद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के खास माने जाते हैं। अखिलेश ने उन्हें इस बार राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राष्ट्रीय महासचिव बनाया है। नौ बार के विधायक और पांच बार के मंत्री अवधेश प्रसाद को अखिलेश ने विधानसभा में भी अपने बगल की सीट देकर तवज्जो दी है। इससे पहले इस सीट पर पूर्व मंत्री मोहम्मद आजम खां बैठते थे। प्रसाद सैफई परिवार के झगड़े में भी अखिलेश यादव के ही साथ रहे। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले जब अखिलेश यादव ने उनके बेटे अजीत प्रसाद को अमेठी के जगदीशपुर से सपा का टिकट दिया था, तब शिवपाल ने प्रदेश अध्यक्ष बनते ही उनका टिकट काट दिया। बाद में अवधेश ने मुलायम से मिलकर बेटे का टिकट वापस पाया था।

अवधेश प्रसाद 1977 से ही सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के साथ रहे हैं। जनता पार्टी की सरकार में जब मुलायम मंत्री बने थे तो अवधेश प्रसाद उनके खास थे। कहा जाता है कि 1989 में जब मुलायम पहली बार सीएम बने तो अवधेश प्रसाद ने विधायकों को जुटाने में बड़ी मदद की थी। मुलायम ने उन्हें राष्ट्रीय सचिव बना दिया था। इसके बाद से उनका कद सपा में लगातार बढ़ता रहा।

सपा की नई रणनीति का हिस्सा

कहा जा रहा है कि पासी जाति से आने वाले अवधेश सपा की दलितों को जोड़ने की मुहिम का हिस्सा हैं। सपा अध्यक्ष को पता है कि अवधेश प्रसाद ऐसी जाति से आते हैं, जो दलितों में भी अपना अलग दमखम और असर रखती है। पूर्वांचल, अवध और बुंदेलखंड के कई जिलों में उनका असर दिखता है। जहां कई विधानसभा और लोकसभा सीटों पर पासी निर्णायक भूमिका में हैं। दरअसल सपा पिछले विधानसभा चुनावों के पहले से ही उसी फॉर्म्युले पर काम कर रही है, जिस पर चलकर कभी बसपा के संस्थापक कांशीराम ने अपनी पार्टी खड़ी की थी।

गैर यादव पिछड़ों के साथ दलितों की अलग-अलग बिरादरी को साथ जोड़कर नया समीकरण तैयार हो रहा है। इसकी शुरुआत अप्रैल 2021 में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अंबेडकर जयंती पर बाबा साहेब वाहिनी का गठन करके की। अब समाजवादी बाबा साहेब वाहिनी पूरे प्रदेश में दलितों को जोड़ने की मुहिम चला रही है।

हाल ही में बाबा साहेब वाहिनी ने पूरे प्रदेश में सपा दफ्तरों में बसपा संस्थापक कांशीराम की जयंती मनाई। सपा के प्रदेश कार्यालय में भी कांशीराम को याद किया गया। अंबेडकर जयंती पर अखिलेश यादव ने बाबा साहेब के चित्र के सामने दीप जलाकर दलित दिवाली मनाने की भी शुरुआत की है। इस बार राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी छह दलितों को जगह दी गई है। 40% से ज्यादा चेहरे गैर यादव ओबीसी हैं। चूंकि इनमें पासी सबसे ज्यादा एकजुट और मुखर रहते हैं, इस वजह से पुराने नेता अवधेश प्रसाद को ज्यादा ‘सम्मान’ से नवाजा गया है।

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