सचिन पायलट को क्या इग्नोर कर सकता कांग्रेस आलाकमान…? यूं समझिए सियासी गणित

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सचिन पायलट को क्या इग्नोर कर सकता कांग्रेस आलाकमान…? यूं समझिए सियासी गणित

सचिन पायलट को क्या इग्नोर कर सकता कांग्रेस आलाकमान…? यूं समझिए सियासी गणित

जयपुर: सचिन पायलट की लोकप्रियता, राजनैतिक पहुंच, राहुल, प्रियंका और सोनिया गांधी से उनकी नजदीकीयां देखकर ऐसा नहीं लग रहा कि शायद ही राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में आलाकमान किसी और चेहरे पर मोहर लगाएगा। भले ही अशोक गहलोत की पसंद सचिन पायलट नहीं है लेकिन कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी और पायलट समर्थकों की धमकी को देखकर ऐसा नहीं लगता कि कांग्रेस आलाकमान कोई रिस्क लेगा। अगर सचिन पायलट के बजाय किसी और के नाम पर विचार किया गया तो कांग्रेस को टूटने से कोई नहीं बचा सकता। पायलट के कट्टर समर्थक कुछ भी कदम उठा सकते हैं। चूंकि अब सरकार का केवल सवा साल का कार्यकाल बचा है। ऐसे में अब अगर सचिन पायलट का मुख्यमंत्री के तौर पर फाइनल नहीं होता तो पायलट समर्थक विधायक एक बार फिर बगावत की राह पकड़ सकते हैं। हो सकता है कि अशोक गहलोत एक बार फिर सत्ता बचाने में कामयाब हो जाएं लेकिन पार्टी को बिखरने से कोई नहीं रोक सकेगा।

ऐसे समझिए राजस्थान का सियासी गणित
राजस्थान विधानसभा के कुल 200 सदस्यों में से 108 सदस्य कांग्रेस के हैं। भाजपा के 71, आरएलपी के 3, माकपा के 2, बीटीपी के 2, आरएलडी के 1 और निर्दलीय सदस्यों की संख्या 13 है। आरएलडी का कांग्रेस के साथ गठबंधन है, ऐसे में कांग्रेस के पास कुल 109 सदस्य हो गए हैं। बीटीपी, माकपा और निर्दलीय विधायक अशोक गहलोत के समर्थन में हैं। विपक्ष की बात करें तो भाजपा के 71 और आरएलपी के 3 कुल 74 विधायक हैं। अब सोचिए कि दो साल पहले की भांति अगर सचिन पायलट या उनके समर्थक बगावत का रास्ता चुनते हैं तो अगस्त 2020 की तरह अशोक गहलोत को एक बार फिर बहुमत साबित करना पड़ सकता है।

पायलट गुट बगावत करता है तो क्या समीकरण बनेंगे राजस्थान में
जुलाई 2020 में जब सचिन पायलट ने बगावत के संकेत दिए थे तब उनके पास कांग्रेस के 18 विधायक थे। इनमें दीपेन्द्र सिंह शेखावत, हेमाराम चौधरी, इंद्राज गुर्जर, जीआर खटाणा, मुकेश भाकर, रामनिवास गावड़िया, भंवरलाल शर्मा, वेद प्रकाश सोलंकी, राकेश पारीक, हरीश मीणा, रमेश मीणा, पीआर मीणा, विश्वेन्द्र सिंह, अमर सिंह जाटव, गजेन्द्र सिंह शक्तावत, बृजेन्द्र सिंह ओला, सुरेश मोदी और मुरारीलाल मीणा शामिल थे। इनमें से पांच विधायक मंत्री बना दिए गए हैं लेकिन ऐसा कोई नहीं है जिन्होंने सचिन पायलट का साथ छोड़ा हो।

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हालांकि गहलोत खेमे के खिलाड़ीलाल बैरवा सचिन पायलट खेमे में आ चुके हैं। एक खुद सचिन पायलट हैं। ऐसे में पायलट खेमे के विधायकों की कुल संख्या 18 +1+1 = 20 हो गई है। अगर बहुमत साबित करने की नौबत आती है तो सरकार बचाने के लिए गहलोत को 101 का आंकड़ा छूना जरूरी है। विपक्ष के 71+3 = 74 विधायकों के साथ पायलट गुट के 20 विधायक जोड़ें तो यह आंकड़ा 94 होता है। इनमें से भाजपा से निष्कासित विधायक शोभारानी कुशवाह गहलोत के पाले में आ गई हैं। ऐसे में यह आंकड़ा 94 के बजाय 93 ही रह जाएगा।

पूर्व में 3 निर्दलीयों ने सचिन पायलट का साथ दिया था लेकिन एसीबी में केस दर्ज होने के बाद तीनों निर्दलीय विधायक गहलोत खेमे में लौट आए। अभी तक एसीबी में केस लंबित है। ऐसे में ये तीन विधायक भी शायद ही गहलोत का साथ छोड़े। अगर छोड़ भी दें तो भी यह आंकड़ा 93+3=96 ही पहुंचता है। निर्दलीयों और अन्य दलों के विधायकों का साथ मिलने पर गहलोत सरकार को गिराना आसान नहीं होगा।

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सरकार बचाने में माहिर हैं गहलोत
अशोक गहलोत राजनीति के हर आंकड़ें को भलीभांति समझते हैं। उन्हें पता है कि कौन नाराज हो सकता है और कौन उन्हें छोड़कर नहीं जा सकता है। ऐसे में अशोक गहलोत ने भी मंगलवार रात जो बयान दिया, वह भी सोच समझकर दिया। गहलोत आए दिन सचिन पायलट को टारगेट करते रहते हैं। मंगलवार रात को दिया गया बयान भी उसी रणनीति का एक हिस्सा है। हालांकि अगर सचिन पायलट या उनके समर्थक बगावत जैसा कोई कदम उठाते हैं तो गहलोत सरकार भले ही बचा ले लेकिन पार्टी को बिखरने से रोक नहीं सकेंगे।

सचिन पायलट भी गांधी परिवार के विश्वसनीय नेताओं में से एक हैं। वे पार्टी के स्टार प्रचारक हैं। पार्टी उन्हें देश के विभिन्न राज्यों में केन्द्र सरकार पर हमला करने के लिए भेजती रहती है। ऐसे में आने वाले दिन सचिन पायलट के लिए अच्छे हो सकते हैं।
रिपोर्ट – रामस्वरूप लामरोड़

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