संस्कारधानी के कवियों ने जगाई आजादी की अलख, कुरीतियों पर भी किया प्रहार | The poets of Sanskardhani awakened the light of freedom | Patrika News
काव्य सृजन के लिए संस्कारधानी को कलचुरिकाल से ही देश मे सम्मान के साथ जाना जाता है। कलचुरिकाल के कवि राजशेखर को संस्कृत के कविओं में उच्च स्थान प्राप्त है। यहां के कवियों की कविताओं ने आजादी के संग्राम में जो राष्ट्रभक्ति की अलख जगाई, वह अविस्मरणीय है। स्व सुभद्राकुमारी चौहान की कविता ‘खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी’ ने तो देशवासियों की रग-रग में स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला प्रज्ज्वलित कर दी थी।
150 वर्षों से बह रही है कविता की अविरल गंगा
जबलपुर।
काव्य सृजन के लिए संस्कारधानी को कलचुरिकाल से ही देश मे सम्मान के साथ जाना जाता है। कलचुरिकाल के कवि राजशेखर को संस्कृत के कविओं में उच्च स्थान प्राप्त है। यहां के कवियों की कविताओं ने आजादी के संग्राम में जो राष्ट्रभक्ति की अलख जगाई, वह अविस्मरणीय है। स्व सुभद्राकुमारी चौहान की कविता ‘खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी’ ने तो देशवासियों की रग-रग में स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला प्रज्ज्वलित कर दी थी। आजादी के बाद केशव पाठक व मनोहरलाल श्रीवास्तव ऊंट को उनकी कविताओं के जरिये कुरीतियों और कुशासन पर करारे प्रहार करने के लिए ख्याति मिली, तो मधुकर खरे, श्रीपाल पांडे, जवाहर लाल चौरसिया तरुण ने अपने सुमधुर गीतों से कविता में एक नए युग का सूत्रपात किया। वहीं अभय तिवारी, विष्णु पांडे, सूरज राय सूरज ने सामाजिक विषमताओं पर अपनी कविताओं के तीखे बाण चलाए हैं। संस्कारधानी की इस समृद्ध काव्य परम्परा को अब बाबुषा कोहली, सुदीप भोला के साथ नौजवान पीढ़ी बड़ी जिम्मेदारी से आगे बढ़ा रही है।
जबलपुर आते थे भारतेंदु-
कवि राजकुमार सुमित्र बताते हैं कि
आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह भारतेंदु हरिश्चंद्र अक्सर जबलपुर आते थे। महावीर प्रसाद द्विवेदी भी यहां 16 वर्ष तक रहे। उन्होंने अपने ‘अद्भुत आलाप’ में जबलपुर के सम्बंध में दिलचस्प संकेत दिए हैं। मुक्तिबोध की अनेक लम्बी यात्राएं और उनका लम्बे समय तक यहां रहने से एक नए दौर की शुरुआत हुई।
1900 के बाद जबलपुर में कई साहित्यिक संगठन बने और कवि गोष्ठियों की शुरुआत हुई, जो आज भी जारी है। जबलपुर साहित्यिक पत्रिकाओं के प्रकाशन में भी अग्रणी रहा है। काव्य सुधा निधि के संपादक रघुवर प्रसाद द्विवेदी ने छंद काव्य को व्यवस्थित रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कामता प्रसाद गुरु और गंगा प्रसाद अग्निहोत्री जबलपुर में खड़ी हिंदी में काव्य की नई धारा को विकसित करने में सफल रहे। इसके बाद जबलपुर के साहित्यकारों ने राष्ट्रप्रेम, प्रकृति और छायावाद के विविध आयामों के साथ रचनाकर्म किया।