‘शोले’ फेम रमेश सिप्‍पी की दो टूक- अच्‍छी फिल्‍में तब भी थीं, आज भी हैं… बॉलीवुड को दोष देना गलत

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‘शोले’ फेम रमेश सिप्‍पी की दो टूक- अच्‍छी फिल्‍में तब भी थीं, आज भी हैं… बॉलीवुड को दोष देना गलत

‘शोले’ फेम रमेश सिप्‍पी की दो टूक- अच्‍छी फिल्‍में तब भी थीं, आज भी हैं… बॉलीवुड को दोष देना गलत

रमेश सिप्‍पी के डायरेक्‍शन में बनी ‘शोले’ बॉलीवुड की उन ब्‍लॉकबस्‍टर फिल्‍मों में से है, जिसकी चर्चा आज 47 साल बाद भी होती है। बेहतरीन कहानी, सलीम-जावेद का जबरदस्‍त स्‍क्रीनप्‍ले, डायलॉग्‍स, आरडी बर्मन का संगीत, अमिताभ बच्‍चन, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, संजीव कुमार और इन सब से कहीं आगे अमजद खान की एक्‍ट‍िंग। आज के दौर में जब यह कहा जा रहा है कि बॉलीवुड के पास कहानियां नहीं हैं, अच्‍छी फिल्‍में नहीं बन रही हैं, ‘शोले’ एक शाहकार की तरह है। नवभारत टाइम्‍स ऑनलाइन से एक्‍सक्‍लूसिव बातचीत में रमेश सिप्‍पी ने जहां एक ओर ‘शोले’ की मेकिंग पर बात की, वहीं हिंदी सिनेमा की आलोचना करने वालों को भी कठघरे में खड़ा किया। उन्‍होंने सीधे शब्‍दों में कहा कि अच्‍छी फिल्‍में तब भी बनती थीं और आज भी बन रही हैं। वो फिल्‍में जो दिल में उतर जाए, वो तब भी कम बनती थीं और आज भी ऐसा ही है। कुछ लोग हैं जो हर चीज के लिए सिनेमा पर दोष मढ़ना चाहते हैं, यह गलत है।

आगे पढ़ें, रमेश सिप्‍पी से नवभारत टाइम्‍स के लिए नरेश तनेजा की एक्‍सक्‍लूसिव बातचीत जस का तस-

47 साल बीत गए, ‘शोले के डायलॉग्‍स, वो अदाकारी, वो शानदार गीत… ऐसा क्‍या जादू है फिल्‍म में कि यह भुलाए नहीं भूलती?
– इस सवाल का जवाब बहुत ही मुश्‍क‍िल है। बहुत सी बातें थीं शोले के बारे में। देख‍िए, हर बार आप फिल्‍म बनाते हैं तो सबकुछ प्‍लानिंग के हिसाब से नहीं चलता है। जब आप काम कर रहे होते हैं तो बहुत सी चीजें कम लगती हैं। जब हम यह फिल्‍म बना रहे थे तो कॉन्‍फ‍िडेंस तो पूरा था। लेकिन हां, यह भी नहीं सोचा था कि फिल्‍म ऐसी बन जाएगी कि 40 साल बाद, 50 साल बाद भी लोगों की जुबान पर रहेगी। लेकिन इतनी सारी बातें, इतनी सारी चीजें एकसाथ एक ही फिल्‍म में आ जाए, ऐसा बहुत कम होता है। शोले एक ऐसी फिल्‍म थी… देख‍िए अब इसे थी कहना भी अच्‍छा नहीं लगता। तो शोले एक ऐसी फिल्‍म रही, जिसे हमने दिल-ओ-जान से बनाई, लेनिक उस समय यह कोई नहीं कह सकता था कि यह फिल्‍म ऐसी साबित होगी।

फिल्‍म की स्‍टारकास्‍ट, स्‍क्रीनप्‍ले, शूटिंग लोकेशन, बैकग्रांड स्‍कोर, यह सबकुछ इतना जबरदस्‍त है कि सिनेमा का फैन आज भी इसकी खूबियां उंगलियों पर गिनवा सकता है। लेकिन इसी से सवाल यह उठता है कि ऐसी फिल्‍में आज क्‍यों नहीं बन पा रही हैं?
– हर फिल्‍म को लेकर ऐसे सोचना कि इसकी तुलना हम शोले से करें यह ठीक बात नहीं है। कुछ चीजें बस हो जाती हैं। अब उस समय हमने गब्‍बर के रोल के लिए डैनी डेन्जोंगपा को साइन किया था। अब वो उस वक्‍त इतने बिजी हो गए कि हमारी फिल्‍म के समय नहीं निकाल पाए। वो मिलते रहे मुझे और कहते रहे कि एक चेक पड़ा है आपका मेरे पास मैंने कैश नहीं किया है, तो यह होता रहता है। एक दिन शायद हम साथ में काम करें भी आगे।

फिल्‍म शोले के सेट पर अमिताभ बच्‍चन, धर्मेंद्र, संजीव कुमार, अमजद खान

बॉलीवुड में जिस तरह से ‘शोले’ है, जिस तरह से ‘मुगल-ए-आजम’ है, क्‍या आजकल अच्‍छी फिल्‍मों का अकाल हो गया है, खासकर यह सवाल इसलिए कि लगातार इस तरह की बातें हो रही हैं?
– देख‍िए ऐसा नहीं है। अगर ऐसा है तो उस वक्‍त की भी आपको दो ही फिल्‍में याद नहीं होतीं। यदि हम यह कह रहे हैं तो हमारे और आपके पास तब के समय की 20 फिल्‍मों के नाम याद होने चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है। देख‍िए, वक्‍त बदलता है। लोगों का मिजाज बदलता है। पसंद-नापसंद बदलती है। थोड़ा सा हमें सोचना चाहिए। आज औरत का दर्जा कहां से कहां पहुंच गया है। हालांकि, महिलाओं के सशक्‍त‍िकरण के लिए अभी भी हमें बहुत कुछ करना है, लेकिन आप यह देख‍िए कि तब के दौर में औरतों की समाज में पोजिशन और आज की स्‍थ‍िति में कितना कुछ बदल गया है। तो कहने का मतलब यह है कि कहानियां अलग-अलग बनेंगी ना। देख‍िए, उस समय के वैल्‍यूज पर आज फिल्‍म बनेंगी तो शायद आज के दर्शकों को पसंद भी नहीं आएगी। क्‍योंकि समय के साथ नैरेटिव बदला है। कहानी कहने का अंदाज भी बदला है।

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… तो क्‍या ऐसा कहा जा सकता है कि ये जो नेगेटिव नैरेटिव बन रहा है हिंदी स‍िनेमा को लेकर इसके पीछे कोई लॉबी काम कर रही है?
– नहीं, नहीं। बिल्‍कुल नहीं। क्‍यों करेंगे। जो दिल से फिल्‍म बनाना चाहते हैं, वो क्‍यों करेंगे ऐसा। चाहे चंद फिल्‍ममेकर ही हैं। अब संजय लीला भंसाली हैं, वो दिल से फिल्‍म बनाते हैं। प्‍यार से बनाते हैं। अच्‍छी फिल्‍में बनाते हैं। राजू हिरानी हैं, उन्‍होंने पांच फिल्‍में बनाईं और पांच की पांचों बढ़‍िया हैं। ये नहीं कह सकते कि आज के फिल्‍ममेकर अच्‍छी फिल्‍में नहीं बनाते हैं। ये बॉलीवुड के विरोध में काम करने वाली लॉबी की जहां तक बात है तो कहने की बात है। जिनको ये कहना है कि आज सबकुछ गलत हो रहा है, वो बस फिल्‍मों पर दोष मढ़ना चाहते हैं। सिनेमा और मीडिया समाज में जो हो रहा है, वहीं दिखाते हैं। तो ऐसा कहना गलत होगा।

सिप्‍पी साहब, साउथ की फिल्‍मों का बाजार जिस तरह से हिंदी में बढ़ा है, जिस तरह से‍ फिल्‍में डब हो रही हैं, पैन इंडिया रिलीज हो रही हैं, इससे आप कितने संतुष्‍ट हैं?
– मैंने साउथ की ज्‍यादा फिल्‍में देखी नहीं हैं। लेकिन सुना है कि मजेदार कहानियां हैं। हां, यह भी सुना है कि वो एक सेट फॉर्मूला पर फिल्‍में बनाते हैं। मैं तो इस बात को मानता हूं कि कुछ फिल्‍ममेकर्स ऐसे होते हैं जो अपने हिसाब से, दिल से फिल्‍म बनाते हैं। जबकि कुछ फिल्‍ममेकर्स ऐसे होते हैं जो कर्मश‍ियल फिल्‍में बनाते हैं। वो अपना हुनर जानते हैं। इसमें किसी को अच्‍छा या किसी को बुरा कहने वाली कोई बात नहीं है।

ramesh sippy sholay set

शोले के सेट पर अमिताभ बच्‍चन और धर्मेंद्र के साथ रमेश सिप्‍पी

जिस तरह से ओटीटी की दुनिया का उदय हुआ है, क्‍या आप मानते हैं कि इस कारण थ‍िएटर में फिल्‍मों के बिजनस पर असर पड़ा है?
– देख‍िए ये अंतर तो आया है। खासकर कोरोना महामारी में जब सिनेमाघर बंद हुए और एक विकल्‍प लोगों को मिला। तकनीक ने यह विकल्‍प दिया कि आप घर बैठकर मनोरंजन करें तो लोगों ने अपनाया। अब उनका मन इसमें लगने लगा है। जो परिवार में उम्रदराज लोग हैं, वो पहले सिनेमाघर जाते थे, लेकिन अब घर में ही उन्‍हें फिल्‍में देखने को मिल रही हैं। जो यंग जनरेशन है, वो फिर भी बाहर जाकर दोस्‍तों के साथ थ‍िएटर चली जाएगी। लेकिन मेरा पर्सनली मानना है कि थ‍िएटर कभी मर नहीं सकता। चाहे समय कितना भी बदल जाए। सिनेमा कभी खत्‍म नहीं होगा। लोग बड़े पर्दे पर फिल्‍म देखने जाएंगे ही। हां, यह बात भी कहना चाहूंगा कि कुछ फिल्‍ममेकर्स ही हैं, जो अच्‍छी फिल्‍में बनाते हैं। दिल से बनाते हैं और वो हमेशा अच्‍छा करेंगे भी।

ओटीटी कल्‍चर को देखते हुए क्‍या आपको लगता है कि बॉलीवुड को खुद को बदलना चाहिए या बॉलीवुड खुद को बदल रहा है?
– मैं इस बारे में सिर्फ अपनी राय दे सकता हूं। मेरा मानना है कि फिर प्‍लेटफॉर्म का अपना तरीका होता है। हर प्‍लेटफॉर्म के कॉन्‍टेंट का अपना ग्रामर होता है। अगर फिल्‍म आप सिनेमाघर के लिए बना रहे हैं तो इसकी स्‍टोरी टेलिंग अलग होती है। अगर ओटीटी के लिए बना रहे हैं तो वहां तो कहानी लंबी चलती है तो वहां वेब सीरीज वाला कल्‍चर है। अब कोई नई चीज आई है तो उससे कॉन्‍टेंट बनाने वाले प्रभावित तो होंगे ही। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। समय के साथ बदलना ही सही होता है।

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क्‍या आप आज के दौर में बॉलीवुड को कुछ टिप्‍स देना चाहेंगे?
– मुझे लगता है कि हर फिल्‍ममेकर, हर एक्‍टर अपने आप में अलग है। किसी को यह बताना कि ऐसे करे या ऐसे नहीं, यह करना गलत होगा। क्‍योंकि इससे उनकी ऑरिजनैलिटी नहीं रह जाएगी। फिर भी यह जरूर कहना चाहूंगा कि अगर आप फिल्‍मों में करियर बनाने के लिए आ रहे हैं तो पहले कुछ पुरानी फिल्‍में देख‍िए, उससे अपने नोट्स लीजिए, फिर अपना दिमाग इस्‍तेमाल कर, अपने हुनर के साथ अच्‍छी फिल्‍में बनाइए।

क्‍या रमेश सिप्‍पी आगे कुछ नया लेकर आ रहे हैं, किसी अपकमिंग प्रोजेक्‍टर पर काम कर रहे हैं?
– हमारी जो प्रोडक्‍शन कंपनी है, वो तो लगातार शोज और फिल्‍मों पर काम कर रही है। मेरा बेटा ओटीटी के लिए शोज बना रहा है। मैं भी कुछ नया सोच रहा हूं, मैं अपने पत्ते खुले रखना चाहता हूं। उम्‍मीद है कि आगे कुछ अच्‍छा लेकर आएंगे।

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अभी आपको सरकार ने मीडिया एंड एंटरटेनमेंट स्‍क‍िल्‍स काउंसिल का प्रमुख बनाया है, इसके जरिए आगे यंग जनरेशन को क्‍या लाभ मिलने वाला है?
– अब तक MESC जिस तरह से काम करती आई है, वह बढ़‍िया रहा है और आगे भी अच्‍छा रहेगा। अभी मैं एक दो मीटिंग में शामिल हुआ हूं। हमने एक एमओयू साइन किया है। आगे स्‍क‍िल्‍स के लेवल पर ट्रेनिंग देने के लिए हम अलग-अलग टॉपिक पर क्‍लासेज भी शुरू करने वाले हैं। उम्‍मीद है कि इससे यंग जनरेशन को फायदा मिलेगा।