शिवाजी पार्क में ही होगी शिवसेना की दशहरा रैली, बॉम्बे हाई कोर्ट से उद्धव ठाकरे गुट को बड़ी राहत

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शिवाजी पार्क में ही होगी शिवसेना की दशहरा रैली, बॉम्बे हाई कोर्ट से उद्धव ठाकरे गुट को बड़ी राहत

शिवाजी पार्क में ही होगी शिवसेना की दशहरा रैली, बॉम्बे हाई कोर्ट से उद्धव ठाकरे गुट को बड़ी राहत

मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट को बड़ा झटका देते हुए शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को शिवाजी पार्क में दशहरा रैली की इजाजत दे दी है। अदालत ने शिंदे गुट की याचिका को भी खारिज कर दिया है। बता दें कि शिंदे गुट के विधायक सदा सरवणकर की तरफ से अदालत में हस्तक्षेप याचिका दायर की गयी थी। जिसमें शिवाजी पार्क में दशहरा रैली के आयोजन की अनुमति मांगी गयी थी। अदालत ने कहा कि बीएमसी की दलील में कोई तथ्य नहीं है। बता दें कि शिवाजी पार्क में दशहरा रैली के लिए एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे गुट आमने-सामने थे। दोनों की अर्जी को फिलहाल बीएमसी ने लॉ एंड आर्डर का हवाला देते हुए ठुकरा दिया था।

आज इस मुद्दे पर बॉम्बे हाई कोर्ट में सुनवाई हुई, जिसमें उद्धव, शिंदे और बीएमसी के वकीलों ने अपनी- अपनी दलीलें दीं। एक तरफ जहां ठाकरे गुट ने पचास साल पुरानी शिवसेना की परंपरा का हवाला देते हुए मंजूरी की मांग की थी। वहीं दूसरी तरफ बीएमसी ने बताया कि कोई व्यक्ति या संगठन मैदान में रैली के लिए अपना अधिकार नहीं जता सकता। उन्हें हर साल आवेदन करना होगा। साथ ही लॉ एंड आर्डर की समस्या को देखते हुए आवेदन को ख़ारिज किया जा सकता है। बीएमसी ने इसी आधार पर किसी भी गुट को इजाजत नहीं दी थी।

ठाकरे गुट की दलील
उद्धव ठाकरे गुट की तरफ से एसपी चिनॉय ने बहस करते हुए हाई कोर्ट में कहा कि शिवसेना साल 1966 से शिवाजी पार्क में दशहरा रैली का आयोजन करती आई है। सिर्फ कोरोना काल के दौरान यह दशहरा रैली नहीं आयोजित हो पाई थी। अब कोरोना के बाद सभी त्यौहार मनाए जा रहे हैं। ऐसे में इस वर्ष हमको दशहरा रैली का आयोजन करना है जिसके लिए हमने अर्जी की है। इस मामले में बीएमसी ने इजाजत देने से इनकार कर दिया है। हालांकि, दशहरा रैली शिवसेना की कई दशक पुरानी परंपरा है जिसे कायम रखना हमारी जिम्मेदारी है। चिनॉय ने कहा कि हैरत वाली बात यह है कि अचानक एक और दूसरी अर्जी दशहरा रैली के लिए बीएमसी के पास आई है, जो गलत है। पिछले 50 सालों से हम उसी जगह पर दशहरा रैली का आयोजन करते रहे हैं। हर बार हमें इजाजत दी जाती थी।

अब अचानक राजनीति के चलते सदा सरवणकर जो फिलहाल एकनाथ शिंदे गुट में चले गए हैं, उन्होंने अर्जी दायर की है। वह एक सिंगल व्यक्ति हैं कोई पूरी शिवसेना नहीं, उनका कैसे यह अधिकार बनता है कि वह शिवाजी पार्क में दशहरा रैली के आयोजन के लिए आवेदन करें। बता दें कि इसके पहले शिवसेना की तरफ से यह सदा सरवणकर शिवाजी पार्क में दशहरा रैली के लिए आवेदन करते थे। लेकिन अब वह ठाकरे गुट की शिवसेना में नहीं है। ऐसे में उनका कोई अधिकार नहीं बनता। हमने 22 अगस्त को मैदान के लिए अर्जी दी थी जबकि सदा सरवणकर की तरफ से 30 तारीख को अर्जी दी गई है। वहीं पुलिस की मानें तो इस तरफ पुलिस मौजूदा हालात में लॉ एंड ऑर्डर की सिचुएशन का हवाला दे रही है। क्या पिछले 50 सालों से मुंबई शहर में पुलिस नहीं थी?

2016 से पहले दशहरा रैली को लेकर सिर्फ ध्वनि प्रदूषण की शिकायत होती थी। उसके बाद से वह भी शिकायत नहीं रही। चिनॉय ने कहा कि सदा सरवणकर हमारी मांग का विरोध नहीं कर रहे हैं बल्कि खुद इजाजत मांग रहे हैं। इनकी याचिका में कहा गया है कि एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना असली है। फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग में चल रहा है। उन्होंने कहा कि है बात बिल्कुल साफ है कि शिवसेना एक है तो उसके दो दावेदार कैसे हो सकते हैं। सदा सरवणकर एक व्यक्ति हैं। इस लिहाज से इनकी याचिका सही नहीं है।

शिंदे गुट की क्या दलील?
एकनाथ शिंदे गुट के विधायक सदा सरवणकर के वकील जनक द्वारकादास ने अदालत के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए कहा कि मेरी बात को ठीक से समझा जाए। जो लोग यह कह रहे हैं कि सदा सरवणकर की याचिका में कोई तथ्य नहीं है, वह बात पूरी तरह से गलत है। सभी जानते हैं कि दशहरा रैली हर साल शिवसेना की तरफ से आयोजित की जाती है। जहां सभी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया जाता है। इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि दशहरा रैली के लिए शिवाजी पार्क न मिला हो। मेरा सवाल यह है कि याचिकाकर्ता क्या असली शिवसेना है? शिवसेना किसकी है इसको लेकर अदालत में अभी तक सुनवाई चल रही है। सरकार बदल गई है अब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री नहीं हैं। इलेक्शन कमिशन में भी अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि शिवसेना किसकी है?

द्वारकादास ने बताया कि सदा सरवणकर ने शिवसेना की तरफ से दशहरा रैली के लिए अर्जी दी है। चूंकि, आज वह सरकार में हैं उन्होंने अभी तक शिवसेना थोड़ी नहीं है। हालांकि, अनिल देसाई ने अपनी याचिका में कहा है कि सदा सरवणकर ने शिवसेना छोड़ दी है और वही असली शिवसेना से हैं। आखिर यह लोग कैसे तय कर सकते हैं कि कौन शिवसेना से है और कौन नहीं?

उन्होंने कहा कि हमारी अर्जी में साफ लिखा गया है कि दशहरा रैली के लिए हम शिवसेना की तरफ से आवेदन कर रहे हैं। मैं एक शिवसेना विधायक हूं लेकिन यह लोग हमें अपनी एप्लीकेशन में कहते हैं कि हम एक इंडिविजुअल हैं। आखिर यह लोग इस बात को कैसे तय कर सकते हैं। इनका कहना है कि हमें बर्खास्त कर दिया गया है। मैं बताना चाहता हूं कि अभी तक यह लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में लड़ी जा रही है। इसके अलावा इलेक्शन कमिशन में भी यह लड़ाई जारी है। बिना किसी नतीजे के यह लोग हमें इंडिविजुअल कैसे कह सकते हैं? हालांकि, अदालत ने बीच में सदा सरवणकर के वकील को रोकते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई पर हम कुछ टिप्पणी नहीं कर सकता। इसलिए अपनी बहस को दशहरा रैली पर केंद्रित करें।

बहस के दौरान यह भी कहा गया कि कोई कैसे कह सकता है कि हम असली शिवसेना हैं और दूसरा नकली। सिर्फ देसाई की याचिका को इजाजत कैसे दी जा सकती है और हमको नहीं। हमने भी शिवसेना की तरफ से अर्जी दी है। उद्धव गुट के वकील एसपी चिनॉय ने कहा कि शिंदे गुट ने बीकेसी मैदान बुक किया है। जिसपर सदा सरवणकर के वकील ने कहा कि यह गलत जानकारी है। हमने कोई भी मैदान बुक नहीं किया है।

बीएमसी की दलील में क्या है?
शिवाजी पार्क को लेकर बीएमसी ने दोनों एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे की अर्जी को नामंजूर कर दिया है। ऐसे में मामला ऐसे में बॉम्बे हाई कोर्ट के समक्ष बीएमसी के वकील मिलिंद साठे ने बताया कि शिवाजी पार्क एक खेल का मैदान है और साइलेंट जोन में आता है। इस वजह से हमने दोनों ही गुटों के इस मांग को खारिज किया है। याचिका में यह भी कहा गया है कि साल 2016 के जीआर(परिपत्रक) के मुताबिक दशहरा रैली के लिए शिवाजी पार्क में इजाजत है लेकिन उसी जीआर में यह भी कहा गया है कि अगर कोई लॉ एंड ऑर्डर की समस्या पैदा होती है तो इस रैली का आयोजन नहीं किया जा सकता। बीएमसी ने कहा कि हमने किसी का पक्ष न लेते हुए दोंनो गुट की अर्जी खारिज की है। जीआर के मुताबिक कोई भी जबरन पार्क में आयोजन नहीं कर सकता है। जीआर के मुताबिक रैली के लिए हर साल इजाजत लेनी जरूरी है। कोई भी व्यक्ति या संगठन शिवाजी पार्क में दशहरा रैली के लिए अपना अधिकार नहीं जता सकता है।

बीएमसी के वकील ने कहा कि पुलिस ने इस मामले में अपनी रिपोर्ट दी है। जिसमें यह कहा गया है कि अगर शिवाजी पार्क में दशहरा रैली का आयोजन होगा तो कानून एवं व्यवस्था की स्थिति को संभालना मुश्किल हो सकता है। ऐसे में जब दोनों को आमने-सामने हैं और पुलिस में इस तरह की रिपोर्ट दी है। इसी आधार पर हमने दोनों गुटों को इजाजत न देने का फैसला किया था। अदालत का पहले से ही यह आदेश रहा है कि शिवाजी पार्क में कोई भी पॉलिटिकल कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जा सकता है। तब दशहरा साल का एक त्यौहार है, यह बता कर शिवसेना की तरफ से इजाजत मांगी जाती थी लेकिन आज हालात बिल्कुल अलग है।

बीएमसी ने अदालत को बताया कि साल 2016 का जो जीआर है उसमें साफ-साफ लिखा गया है कि कौन-कौन से कार्यक्रम शिवाजी पार्क में आयोजित किए जा सकते हैं। जिसमें 26 जनवरी, 15 अगस्त, बाल दिवस, अंबेडकर पुण्यतिथि, गणेश उत्सव के 3 दिन और गुड़ी पाड़वा यह सब कार्यक्रम पार्क में किए जा सकते हैं। इस जीआर में कहीं भी नहीं लिखा है कि दशहरा रैली को इजाजत दी गई है। 15 अक्टूबर 2012 के जीआर का भी जिक्र किया गया। साल 2017 में अनिल देसाई, सदा सरवणकर
और यशोधर फणसे ने तीन अर्जियां दी थीं। वहीं 2019 में अनिल देसाई और सदा सरवणकर ने अर्जी दी थी।तब अनिल देसाई की अर्जी पर इजाजत दी गयी थी। उस समय यह दोनों नेता शिवसेना में थे।

साल 2020 में भी सदा सरवणकर ने दशहरा रैली के लिए अर्जी दी थी लेकिन कोरोना की वजह से इजाजत नहीं दी गई थी। 14 सितंबर 2022 को पुलिस ने बीएमसी को पत्र लिखकर कहा था कि अवैध बैनर निकाला जाए क्योंकि बैनर बाजी के चलते दादर और शिवाजी के इलाके में लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ सकता है। बीएमसी के वकील बताया कि दोनों पक्षों ने दशहरा रैली की इजाज़त मांगी है। दोनों ही पक्ष खुद को शिवसेना बता रहे हैं। ऐसे में विवाद के हालात पैदा हो सकते हैं। पहले दोनों एक ही दल थे इसलिए हालात अलग थे।

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