शहर में फूड प्रोसेसिंग क्लस्टर, स्थापित होंगी इकाइयां | Food processing cluster,FPOs,raw materials | Patrika News
जिले में कृषि क्षेत्र में कई उत्पाद हैं जिनकी प्रोसेसिंग इकाइयां स्थापित हों तो किसानों को फायदा मिलेगा। साथ ही निवेश और रोजगार के साधन भी बढेंगे। जबलपुर में सिंघाड़ा का व्यापक पैमाने पर उत्पादन होता है। सिहोरा सिंघाडा के लिए देश की सबसे बड़ी मंडियों में शामिल है। मटर तो देश के कई राज्यों के अलावा विदेशों तक जाता है। सब्जियों की भरपूर पैदावार यहां पर होती है। लेकिन इनकी प्रोसेसिंग इकाइयां नाममात्र की हैं। ऐसे में शहर कच्चे माल का उत्पादक बनकर रह गया है।
धान की हैं कई किस्मेे
धान की कई किस्मेे हैं जिनकी प्रोसेसिंग होने पर ऊंचे दाम भी मिलते हैं। जिले में इसकी एक बड़ी इकाई भी स्थापित है। यहां से अरब देशों में चावल जाता है। लेकिन उत्पादकता कहीं ज्यादा है। इसलिए यहां पर एग्रो बेस्ट फूड प्रोसेसिंग क्लस्टर की योजना तैयान की जा रही है। इसके लिए किसानों के एक एफपीओ ने उद्योग विभाग के साथ मिलकर आगे बढ़कर काम करना शुरू किया है। प्राथमिक तौर पर जिले में प्रस्तावित क्लस्टर के लिए 80 से 100 एकड़ जमीन की तलाश की जा रही है।
बड़ा रकबा है कई फसलों का
जिले में 2.80 लाख हेक्टेयर कृषि का रकबा है। इसमें 75 फीसदी रकबा में गेहूं और धान का रहता है। यहां से बडे़ पैमाने पर गेहूं की सप्लाई दूसरे राज्यों में होती है। वहां से थोड़ी सफाई के बाद थैलों में पैंकिंग होकर यह गेहूं इसी शहर में महंगे दामों में बिकता है। यही िस्थति धान को लेकर है। उसकी प्रोसेसिंग भी दूसरी जगह होती है। यहां 40 से अधिक राइस मिल हैं लेकिन उनमें से ज्यादातर शासन के लिए धान की मिलिंग करती हैं। लेकिन फूड क्लस्टर बनने और निवेशक इसके लिए प्रोत्साहित होंगे।
फैक्ट फाइल
– 2.80 लाख हेक्टेयर रकबा है कृषि का। – 52 हजार हेक्टेयर में सब्जी उत्पादन।
– 2 लाख 40 हजार मीट्रिक टन मटर की पैदावार। – 1 लाख मीट्रिक टन फलों का उत्पादन।
– 39 हजार मीट्रिक टन मसालेदार चीजों का उत्पादन।
– 1 एक हजार मीट्रिक टन औषधी का उत्पादन।
– 9 लाख मीट्रिक टन फूलाें की पैदावार। – 630 एकड़ में सिंघाड़ा का उत्पादन। .शहर के साथ दूसरी जगह सप्लाई जिले में 52 हजार हेक्टेयर से ज्यादा रकबे में होती हैं अलग-अलग प्रकार की सब्जियां उगाई जाती हैं। सात लाख 25 हजार मीट्रिक टन से ज्यादा का उत्पादन होता है। दिनोंदिन सब्जी उत्पादक किसानों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन इनकी प्रोसेसिंग यहां पर नही होती है। सबसे ज्यादा 2 लाख 40 हजार मीट्रिक टन का उत्पादन तो अकेले मटर का है। इसकी दो इकाइयां ही जबलपुर में हैं। इसलिए क्लस्टर में इनकी संख्या भी बढ़ने की संभावना रहेंगी। वहीं फलों की बात करें तो सात हजार हेक्टेयर रकबा में हर साल तकरीबन एक लाख मीट्रिक टन की पैदावार होती है।
एग्रोबेस्ड प्रोसेसिंग क्लस्टर को लेकर एफपीओ और किसानों ने रुचि दिखाई है। जिला प्रशासन ने पहल करते हुए जमीन तलाशने के निर्देश दिए हैं। भूमि की जानकारी तहसीलों से ली जा रही है। हाल में बरगी का दौरा किया गया था।
विनीत रजक, महाप्रबंधक जिला व्यापार एवं उद्योग केंद्र
जबलपुर में सभी तरह के उद्योगों की व्यापक संभावनाएं हैं। फूड प्रोसेसिंग भी उनमें एक है। यहां जो संसाधन उपलब्ध हैं, वे प्रदेश के अन्य जिलों में नहीं मिलती। शासन पहल करे तो इनकी स्थापना हो सकती है।
रवि गुप्ता, अध्यक्ष महाकोशल चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री
जिले में कृषि क्षेत्र में कई उत्पाद हैं जिनकी प्रोसेसिंग इकाइयां स्थापित हों तो किसानों को फायदा मिलेगा। साथ ही निवेश और रोजगार के साधन भी बढेंगे। जबलपुर में सिंघाड़ा का व्यापक पैमाने पर उत्पादन होता है। सिहोरा सिंघाडा के लिए देश की सबसे बड़ी मंडियों में शामिल है। मटर तो देश के कई राज्यों के अलावा विदेशों तक जाता है। सब्जियों की भरपूर पैदावार यहां पर होती है। लेकिन इनकी प्रोसेसिंग इकाइयां नाममात्र की हैं। ऐसे में शहर कच्चे माल का उत्पादक बनकर रह गया है।
धान की हैं कई किस्मेे
धान की कई किस्मेे हैं जिनकी प्रोसेसिंग होने पर ऊंचे दाम भी मिलते हैं। जिले में इसकी एक बड़ी इकाई भी स्थापित है। यहां से अरब देशों में चावल जाता है। लेकिन उत्पादकता कहीं ज्यादा है। इसलिए यहां पर एग्रो बेस्ट फूड प्रोसेसिंग क्लस्टर की योजना तैयान की जा रही है। इसके लिए किसानों के एक एफपीओ ने उद्योग विभाग के साथ मिलकर आगे बढ़कर काम करना शुरू किया है। प्राथमिक तौर पर जिले में प्रस्तावित क्लस्टर के लिए 80 से 100 एकड़ जमीन की तलाश की जा रही है।
बड़ा रकबा है कई फसलों का
जिले में 2.80 लाख हेक्टेयर कृषि का रकबा है। इसमें 75 फीसदी रकबा में गेहूं और धान का रहता है। यहां से बडे़ पैमाने पर गेहूं की सप्लाई दूसरे राज्यों में होती है। वहां से थोड़ी सफाई के बाद थैलों में पैंकिंग होकर यह गेहूं इसी शहर में महंगे दामों में बिकता है। यही िस्थति धान को लेकर है। उसकी प्रोसेसिंग भी दूसरी जगह होती है। यहां 40 से अधिक राइस मिल हैं लेकिन उनमें से ज्यादातर शासन के लिए धान की मिलिंग करती हैं। लेकिन फूड क्लस्टर बनने और निवेशक इसके लिए प्रोत्साहित होंगे।
फैक्ट फाइल
– 2.80 लाख हेक्टेयर रकबा है कृषि का। – 52 हजार हेक्टेयर में सब्जी उत्पादन।
– 2 लाख 40 हजार मीट्रिक टन मटर की पैदावार। – 1 लाख मीट्रिक टन फलों का उत्पादन।
– 39 हजार मीट्रिक टन मसालेदार चीजों का उत्पादन।
– 9 लाख मीट्रिक टन फूलाें की पैदावार। – 630 एकड़ में सिंघाड़ा का उत्पादन। .शहर के साथ दूसरी जगह सप्लाई जिले में 52 हजार हेक्टेयर से ज्यादा रकबे में होती हैं अलग-अलग प्रकार की सब्जियां उगाई जाती हैं। सात लाख 25 हजार मीट्रिक टन से ज्यादा का उत्पादन होता है। दिनोंदिन सब्जी उत्पादक किसानों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन इनकी प्रोसेसिंग यहां पर नही होती है। सबसे ज्यादा 2 लाख 40 हजार मीट्रिक टन का उत्पादन तो अकेले मटर का है। इसकी दो इकाइयां ही जबलपुर में हैं। इसलिए क्लस्टर में इनकी संख्या भी बढ़ने की संभावना रहेंगी। वहीं फलों की बात करें तो सात हजार हेक्टेयर रकबा में हर साल तकरीबन एक लाख मीट्रिक टन की पैदावार होती है।
एग्रोबेस्ड प्रोसेसिंग क्लस्टर को लेकर एफपीओ और किसानों ने रुचि दिखाई है। जिला प्रशासन ने पहल करते हुए जमीन तलाशने के निर्देश दिए हैं। भूमि की जानकारी तहसीलों से ली जा रही है। हाल में बरगी का दौरा किया गया था।
विनीत रजक, महाप्रबंधक जिला व्यापार एवं उद्योग केंद्र
जबलपुर में सभी तरह के उद्योगों की व्यापक संभावनाएं हैं। फूड प्रोसेसिंग भी उनमें एक है। यहां जो संसाधन उपलब्ध हैं, वे प्रदेश के अन्य जिलों में नहीं मिलती। शासन पहल करे तो इनकी स्थापना हो सकती है।
रवि गुप्ता, अध्यक्ष महाकोशल चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री