शरद पवार अभी राज्यसभा के सदस्य, कैसे बन सकते हैं पीएम दावेदार, समझिए

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शरद पवार अभी राज्यसभा के सदस्य, कैसे बन सकते हैं पीएम दावेदार, समझिए

शरद पवार अभी राज्यसभा के सदस्य, कैसे बन सकते हैं पीएम दावेदार, समझिए

मुंबई:शरद पवार ने ऐलान किया है कि वह प्रधानमंत्री पद की रेस में नहीं हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP)के चीफ शरद पवार ने इसके लिए 2024 का लोकसभा चुनाव न लड़ने की दलील दी। ऐसे में सवाल है कि क्या शरद पवार (Sharad Pawar) ने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से खुद को दूर कर लिया है? पवार भले ही कह रहे हैं कि वह रेस से बाहर हैं लेकिन देश का संविधान उन्हें लोकसभा का चुनाव (Lok Sabha Election 2024) लड़े बगैर भी प्रधानमंत्री बनने की इजाजत देता है। शरद पवार के मामले में यह बात लागू हो सकती है।

शरद पवार ने ऐसा कौन सा बयान दिया है, जिसके बाद नई चर्चा छिड़ गई है। पहले आपको बताते हैं उनका बयान।

मेरी कोशिश विपक्ष को साथ लाने की है। ऐसा ही प्रयास बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कर रहे हैं। मैं अगला चुनाव नहीं लड़ रहा हूं तो पीएम उम्मीदवार बनने का सवाल ही कहां है? मैं पीएम बनने की रेस में नहीं हूं। हमें ऐसा नेतृत्व चाहिए जो देश के विकास के लिए काम कर सके।

शरद पवार, एनसीपी अध्यक्ष

अभी शरद पवार किस सदन के सदस्य हैं?
यानी शरद पवार ने कहा कि वह अगला चुनाव यानी लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, इसलिए उनके पीएम उम्मीदवार बनने का सवाल ही नहीं है। इतिहास को अगर खंगाले तो पता चलेगा कि बगैर लोकसभा चुनाव लड़े भी इस देश में प्रधानमंत्री बनते रहे हैं। शरद पवार अभी राज्यसभा के सदस्य हैं। उनका तीन साल का कार्यकाल बाकी है। यानी 2026 तक वह संसद सदस्य रहेंगे। इसका मतलब यह है कि 2024 के लोकसभा चुनाव का नतीजा आने के दो साल बाद भी वह सांसद बने रहेंगे। शरद पवार का बतौर राज्यसभा सदस्य यह दूसरा कार्यकाल है। पहली बार वह 3 अप्रैल 2014 से 2 अप्रैल 2020 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। इसके बाद लगातार दूसरी बार वह महाराष्ट्र से एनसीपी के राज्यसभा सांसद निर्वाचित हुए। इस बार का उनका कार्यकाल 3 अप्रैल 2020 को शुरू हुआ। उनका कार्यकाल 2 अप्रैल 2026 को पूरा होगा।

SHARAD PAWAR PROFILE

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मनमोहन सिंह और गुजराल भी राज्यसभा से आते थे
आइए अब समझते हैं कि भारत के संविधान में प्रधानमंत्री पद के लिए क्या जरूरी मापदंड हैं। पहली शर्त यह है कि प्रधानमंत्री के पास लोकसभा में बहुमत होना चाहिए। वहीं पीएम के पद पर नियुक्त होने के छह महीने के अंदर उन्हें संसद का सदस्य बनना जरूरी है। संविधान के 84वें अनुच्छेद के मुताबिक संसद सदस्य के लिए राज्यसभा में 30 साल और लोकसभा में न्यूनतम आयु 25 साल होनी चाहिए। शरद पवार के मामले में भी उन्हें चुनाव लड़ने की जरूरत ही नहीं है, क्योंकि प्रधानमंत्री बनने के लिए न्यूनतम योग्यता है- संसद के किसी सदन का सदस्य। पवार के पास यह अर्हता पहले से ही है। 2004 और 2009 में डॉक्टर मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री के तौर पर यूपीए सरकार का नेतृत्व किया। इन दोनों ही कार्यकाल में वह असम से राज्यसभा के सदस्य रहे। इसी तरह इंद्र कुमार गुजराल राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार में 21 अप्रैल 1997 से 19 मार्च 1998 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। गुजराल भी राज्यसभा के सदस्य थे।

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किस सूरत में हो सकता है पवार का नाम आगे
2024 के लोकसभा चुनाव में अगर बीजेपी के नेतृत्व वाला नैशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) बहुमत के जरूरी आंकड़े 272 से पहले ठिठक जाए। ऐसे में जिस दल या पार्टियों के समूह के साथ बहुमत होगा वह प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी कर सकता है। विपक्ष के चेहरे के रूप में अगर शरद पवार के नाम पर आम सहमति बन जाए तो उनको आगे किया जा सकता है।

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बीजेपी के इन राज्यों में प्रदर्शन से तय होगी तस्वीर!
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 282 और 2019 के लोकसभा चुनाव में 303 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत हासिल किया था। महाराष्ट्र की 48, कर्नाटक की 28, बिहार की 40 और पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों को मिलाएं तो कुल मिलाकर 158 सीटें होती हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में 124 सीटों पर जीत मिली थी। इसमें उसके गठबंधन सहयोगी शिवसेना की महाराष्ट्र में 18 सीटें शामिल थीं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 135 सीटें जीती हैं। पार्टी 21 लोकसभा सीटों पर आगे रही। वहीं बीजेपी सिर्फ 4 पर बढ़त बना सकी। 2019 के मुकाबले (26 सीटें) यह 22 सीटों की गिरावट है। इसके साथ ही महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के एनसीपी और कांग्रेस के साथ महाविकास अघाड़ी में जाने से भी बीजेपी के लिए मुश्किल है। कई सर्वे अघाड़ी को महाराष्ट्र में 30 से 35 सीटें तक दे रहे हैं। ऐसे में यहां बीजेपी एक दर्जन सीटों पर सिमट सकती है। वहीं बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के मिलकर लड़ने से मजबूत सामाजिक समीकरण तैयार है। यहां पर एनडीए को पिछली बार 39 सीटें मिली थीं। इस बार वह प्रदर्शन दोहरा पाना असंभव दिख रहा है। वहीं पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व में टीएमसी को बढ़त दिख रही है। अगर बीजेपी अपना पिछला प्रदर्शन (18 लोकसभा सीटें) बरकरार नहीं रख पाई तो बहुमत की राह आसान नहीं होगी। कुल मिलाकर इन 158 सीटों में से अगर बीजेपी 75 के आसपास भी सिमटती है तो बहुमत मिलना मुश्किल होगा। ऐसे में विपक्ष की ओर से किसी आम सहमति वाले चेहरे पर बात बनी तो शरद पवार एक विकल्प हो सकते हैं।

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