विविधताओं को संरक्षित करने की जरुरत

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विविधताओं को संरक्षित करने की जरुरत

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दरभंगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग में विभागाध्यक्ष डॉ. उदय नारायण तिवारी की अध्यक्षता में ‘धरोहरों के विविध आयाम एवं संरक्षण विषयक एक व्याख्यान आयोजित की गई। इस व्याखान के मुख्य व्याख्याता विभागीय शोधार्थी मुरारी कुमार झा थे। व्याखान प्रस्तुत करते हुए श्री झा ने कहा कि वह अवयव जिसका सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक महत्व हो धरोहर कहलाता है। मानव सभ्यताओं से संबंधित ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण हेतु जागरूकता पैदा करने एवं संरक्षण के उद्देश्य से 16 नवंबर 1945 ईस्वी को ‘यूनाइटेड नेशंस एजुकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गेनाइजेशन की स्थापना की गई। इस क्षेत्र में यह संस्था 1972 ईस्वी से लगातार कार्य कर रही है। भारत विविधताओं से भरा देश है। आज जरूरत है उन सभी विविधताओं को संरक्षित करने की। यहां के ऐतिहासिक स्मारक, स्थापत्य, ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व के स्थलों, पांडुलिपियों, मूर्ति, भाषा, संगीत, नृत्य, नाट्य, पर्व-त्योहार, परंपरागत रीति-रिवाज, स्थानीय खाद्य व्यंजन, लोक-गाथा, नदी, नहर, पहाड़, पठार, झील, जंगल, औषधीय गुणों वाले पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, विभिन्न प्रकार के वायुमंडलीय यौगिक आदि का संरक्षण एवं संवर्धन नितांत आवश्यक है। श्री झा ने आगे विलुप्त हो रहे खाद्यों में अनेकों प्रभेद के धानों, दलहनों, तिलहनों, सब्जियों, मसालों, औषधीय पौधों, कंद-मूल, फलों के साथ-साथ मिथिला के गांव में मौजूद जड़ी-बूटियों के कई प्रयोग के बारे में विस्तार से बताया। इसके साथ ही मिथिला प्रक्षेत्र में मनाए जाने वाले 44 पर्व-त्यौहार, विश्व धरोहर सूची में शामिल भारत के 32 सांस्कृतिक, 07 प्राकृतिक, 01 मिश्रित धरोहर स्थल, भारत के कुल 42 आर्द्र भूमि(रामसर भूमि) स्थल, भारत के सभी प्रमुख जीवाश्म पार्क एवं भारत में पाए गए 10 प्रमुख डायनासोर के बारे में भी व्याख्या किया। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डा तिवारी ने कहा कि “आज के संदर्भ में धरोहर के महत्व को भारतीय संस्कृति के उत्थान के लिए प्रत्येक दृष्टि से स्वीकार किया जाना आवश्यक है। धरोहरों में हमारी संस्कृति संरक्षित होती है। अत: भारतीय संस्कृति के सर्वांगीण विकास में धरोहरों के महत्व एवं उनके संरक्षण पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। ये धरोहरें हमारी सांस्कृतिक निरंतरता और क्रमबद्धता का ज्वलंत प्रमाण है। किसी भी राष्ट्र का गौरव वहां की सांस्कृतिक धरोहर में प्रतिबिंबित होता है। आज तेजी से सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों का क्षरण हो रहा है, तालाबों को भर कर उस पर मकान बना देना, प्राचीन कलाकृतियों को तरह-तरह के चढ़ावे से दूषित कर देना मनुष्य की आदत बन गई है। पांडुलिपियां संग्रहालयों में संरक्षित करने के बजाय घरेलू अलमारियों में दीमक की भेंट चढ़ रही है। जरूरत है, इनके प्रति संवेदनशील होकर विचार करने की और संरक्षण की। यह व्याख्यान धरोहर के प्रति जागरूकता के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा। आज का व्याखान विभाग द्वारा आरंभ किए गए व्याखानमाला का दूसरा व्याखान था। यह निरंतर चलता रहेगा। इस अवसर पर विभाग के सभी विद्यार्थी, शोधार्थी एवं कर्मी उपस्थित रहे।

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