विराजमान है शिव-पार्वती विवाह की दुर्लभ प्रतिमा | shiv Aaradhna in Jabalpur | Patrika News

316
विराजमान है शिव-पार्वती विवाह की दुर्लभ प्रतिमा | shiv Aaradhna in Jabalpur | Patrika News

विराजमान है शिव-पार्वती विवाह की दुर्लभ प्रतिमा | shiv Aaradhna in Jabalpur | Patrika News

70 फुट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है चौसठ योगिनी मंदिर

जबलपुर। नर्मदा मैया की गोद में बसे जबलपुर में कई ऐसे मंदिर हैं जिनके इतिहास गौरवशाली हैं। ऐसा ही एक मंदिर नर्मदा तट के समीप लगभग 70 फुट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। माना जाता है कि विश्व प्रसिद्ध भेड़ाघाट के समीप स्थित चौसठ योगिनी मंदिर भारत का इकलौता मंदिर है, जहां भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की प्रतिमा स्थापित है। यह भी मान्यता है कि इस मंदिर के लिए नर्मदा ने भी अपनी दिशा बदल दी थी। सावन माह में यहां श्रद्धालु उमड़ते हैं।
ज्योतिष, आयुर्वेद की दी जाती थी शिक्षा– इतिहासकार प्रो. आनन्द ङ्क्षसह राणा बताते हैं कि चौसठ योगिनी मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी के दौरान कल्चुरी शासक युवराजदेव प्रथम ने कराया था। युवराजदेव के बाद 12वीं शताब्दी के दौरान शैव परम्परा में पारंगत गुजरात की रानी गोसलदेवी ने चौसठ योगिनी मंदिर में गौरी-शंकर मंदिर का निर्माण कराया। मुरैना जिले में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर की तरह यह मंदिर भी तंत्र साधना का एक महान स्थान हुआ करता था। यहां ज्योतिष, गणित, संस्कृत साहित्य और तंत्र विज्ञान का अध्ययन करने के लिए देश और विदेश से छात्र आया करते थे। 10वीं शताब्दी का यह मंदिर उस समय का आयुर्वेद कॉलेज भी हुआ करता था।
अद्भुत है वास्तुशिल्प– पत्थरों से निर्मित चबूतरे पर अद्भुत वास्तुशिल्प वाले इस मंदिर का निर्माण किया गया है। त्रिभुजाकार कोणों पर 64 योगिनियों की प्रतिमाएं स्थापित हैं। मंदिर परिसर की गोलाकार संरचना के केंद्र में गर्भगृह में गौरीशंकर की प्रतिमा स्थापित है। नंदी पर विराजमान भगवान शिव और माता पार्वती की विवाह प्रतिमा पूरे भारत में कहीं नहीं है। मुख्य मंदिर के सामने चबूतरे पर शिवङ्क्षलग स्थापित है। यहां सावन व अन्य शुभ मुहूर्तो में श्रद्धालु विभिन्न तरह के अनुष्ठानों का आयोजन करते हैं।
पौराणिक महत्व है– मान्यताओं व पौराणिक कथाओं के अनुसार जब एक बार भगवान शिव और माता पार्वती ने भेड़ाघाट के निकट एक ऊंची पहाड़ी पर विश्राम करने का निर्णय किया। यहीं सुवर्ण ऋषि तपस्या कर रहे थे। उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की कि जब तक वो नर्मदा पूजन कर वापस न लौटें तब तक भगवान शिव वहीं विराजमान रहें। ऋषि सुवर्ण ने विचार किया कि यदि भगवान हमेशा के लिए यहां विराजमान हो जाएं तो इस स्थान का कल्याण हो। इसी के चलते ऋषि सुवर्ण ने नर्मदा में समाधि ले ली। कहा जाता है कि आज भी उस पहाड़ी पर भगवान शिव की कृपा भक्तों को प्राप्त होती है। माना जाता है कि नर्मदा को भगवान शिव ने अपना मार्ग बदलने का आदेश दिया था ताकि मंदिर पहुंचने के लिए भक्तों को कठिनाई का सामना न करना पड़े। इसके बाद संगमरमर की कठोरतम चट्टानें भी भक्तों के लिए सुविधाजनक हो गईं।



उमध्यप्रदेश की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Madhya Pradesh News