विपक्ष के हर दल में खींचतान कैसे आएगी एकता में जान?

7
विपक्ष के हर दल में खींचतान कैसे आएगी एकता में जान?

विपक्ष के हर दल में खींचतान कैसे आएगी एकता में जान?

पटना: एक तरफ नीतीश कुमार विपक्षी एकजुटता का महाअभियान छेड़े हुए हैं तो दूसरी तरफ विपक्ष के ही कई बड़े दलों में आपसी कलह खत्म होने का नाम नहीं ले रही। और तो और खुद नीतीश कुमार अपनी पार्टी में मची भगदड़ से हलकान हो रहे हैं। महागठबंधन के साथ जेडीयू के जाने के बाद से औसतन हर 10-15 दिन पर कोई न कोई नेता जेडीयू का साथ छोड़ रहा है। नीतीश के पास तीन-चार भरोसे के कद्दावर लोग ही अब बचे हैं। इनमें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह, मंत्री संजय झा और विजय चौधरी शामिल हैं। विपक्षी एकता बनने में वैसे तो कई पड़ाव पार करने अभी बाकी हैं, लेकिन जो दल आंतरिक खींचतान से उबर नहीं पा रहे, वे न सिर्फ अपने दलों को कमजोर कर रहे हैं, बल्कि विपक्षी एकता मिशन की कामयाबी में अड़चनें पैदा करेंगे।

एनसीपी में शरद पवार से अलग हैं अजित के सुर

विपक्षी एकता की सबसे बड़ी पैरोकार पार्टी शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी है। एनसीपी में शरद पवार के भतीजे अजित पवार का सुर पिछले कुछ महीनों से अलग ही सुनाई देता रहा है। पिछली बातों को छोड़ भी दें तो ताजा मामला संसद के नये भवन के उद्घाटन समारोह के बायकाट का है, जिसका शरद पवरा ने विरोध किया तो उनके भतीजे अजित पवार पार्टी के बहिष्कार के फैसले को गैर वाजिब बताने से नहीं चूके। उल्टे उन्होंने इस भव्य भवन को लेकर नरेंद्र मोदी की सरकार की तारीफ तक कर डाली। उन्होंने बढ़ती आबादी को देखते हुए आने वाले समय में परिसीमन को अपरिहार्य बताया है। परिसीमन हुआ तो लोकसभा और राज्यसभा की सीटें भी बढ़ जाएंगी। संसद के नये भवन के निर्माण में इसका ख्याल रखा गया है। महाराष्ट्र विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता अजित पवार ने कहा है कि देश की जनसंख्या 135 करोड़ के पार जा रही है। जाहिर है कि परिसीमन के बाद उनका प्रतिनिधित्व करने वाले लोग भी बढ़ेंगे। इसलिए नए संसद भवन की जरूरत थी। हालांकि अजित पवार ने इसे अपनी व्यक्तिगत राय बताई है, लेकिन पार्टी के प्रमुख पद पर होने के कारण उनके विचार को निजी मानना उचित नहीं होगा। बीजेपी के कशीदे पढ़ने से भी वे अपने को रोक नहीं पाए। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में भी रिकॉर्ड समय में भवन का बन जाना बड़ी उपलब्धि है।

गहलोत-पायलट विवाद शांत हुआ है, बंद नहीं

साल 2018 से ही जारी रास्थान के सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच विवाद पर फिलहाल विराम तो दिख रहा, लेकिन यह स्थायी शांति नहीं लगती। राजस्थान के लिए 2023 और 2024 काफी महत्वपूर्ण हैं। इस साल वहां विधानसभा के चुनाव होने हैं तो अगले साल लोकसभा चुनाव का भी सामना करना है। साल 2023 में राजस्थान के साथ मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में विधानसभा के चुनाव होने हैं। राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत और उनके विरोधी सचिन पायलट के साथ बैठक पार्टी आलाकमान ने मैराथन बैठक की। पहले गहलोत और पायलट के साथ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बैठे। फिर अलग से पायलट के साथ बैठक की। कहा तो यह गया कि पायलट चुनावों में पार्टी के साथ खड़े रहेंगे, लेकिन उन्हें क्या भूमिका दी जाएगी, यह कांग्रेस आला कमान तय करेगा। संभव है कि आलाकमान बाद में जो जिम्मेवारी पायलट को दे, उससे वे संतुष्ट न हों। यानी यह असंतोष को शांत कराने का तात्कालिक कदम भले हो सकता है, लेकिन स्थायी निदान अभी बाकी है। चुनाव से पहले झगड़े को सुलझाना अभी बाकी है। गहलोत और पायलट के साथ बैठक में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के अलावा राहुल गांधी भी थे। बैठक चार घंटे तक चली। इसके बावजूद सत्ता में साझीदारी का कोई तरीका नहीं निकल पाया। यानी पेच अब भी फंसा है। पायलट ने कई मांगें की हैं। इनमें एक प्रमुख मांग बीजेपी की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों पर कार्रवाई की है। पायलट ने पार्टी को स्पष्ट तौर पर बता दिया है कि अगर इस महीने के अंत तक कोई कार्रवाई नहीं हुई तो वह विरोध प्रदर्शन का अभियान चलाएंगे। जो जानकारी बैठक से छन कर बाहर आई, उस पर भरोसा करें तो पायलट ने बैठक में अपनी मांगों से पीछे हटने से इनकार कर दिया।

हर महीने कोई न कोई छोड़ रहा नीतीश का साथ

विपक्षी दलों के एक मंच पर लाने के प्रयास में जुटे बिहार के सीएम नीतीश कुमार की अपनी पार्टी जेडीयू में घमासान मचा हुआ है। हर 10-15 दिन में कोई न कोई नेता साथ छोड़ कर चला जा रहा है। उपेंद्र कुशवाहा ने जेडीयू छोड़ते वक्त कहा था कि जेडीयू खत्म हो जाएगा। उनकी बात अब सच में तब्दील होती नजर आ रही है। कुशवाहा के बाद जेडीयू छोड़ने वालों में प्रमुख नाम पूर्व सांसद मीना सिंह, पूर्व सांसद मोनाजिर हसन, जेडीयू के प्रदेश महासचिव और प्रवक्ता रह चुके शंभुनाथ सिन्हा, सुहेली मेहता सामिल हैं।

राजनीति में अभी तीन ध्रुव साफ-साफ दिखाई दे रहे

देश की राजनीति में तीन ध्रुव बनते दिख रहे हैं। एक तो बीजेपी का एनडीए है। दूसरा यूपीए है। तीसरे ध्रुव में ओड़िशा के सीएम नवीन पटनायक के बीजेडी और आम आदमी पार्टी तो स्पष्ट दिख रहे हैं, आगे इनकी संख्या और भी हो तो कोई आश्चर्य नहीं। नवीन पटनायक और अरविंद केजरीवाल पहले से भी अलग राह पर चलते रहे हैं। विपक्षी एकता के नाम पर केजरीवाल की पार्टी आप ने कांग्रेस के साथ आने का भरोसा तो दिया, लेकिन उसके पहले वे अध्यादेश पर विपक्षी एकजुटता को टेस्ट करना चाहते थे। कांग्रेस ने अध्यादेश पर साथ देने से साफ मना कर दिया है। कांग्रेस के साथ ममता बनर्जी का जाना भी संदिग्ध लगता है। इसलिए कि ममता ने बंगाल में कांग्रेस के एकमात्र एमएलए बायरन विश्वास को अपने पाले में कर लिया है।
(अगर आप राजधानी पटना जिले से जुड़ी ताजा और गुणवत्तापूर्ण खबरें अपने वाट्सऐप पर पढ़ना चाहते हैं तो कृपया यहां क्लिक करें। )

रिपोर्ट- ओमप्रकाश अश्क

बिहार की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Delhi News