विद्युत जामवाल बोले- लड़कियों को डराकर या दबाकर नहीं रख सकते, करने दीजिए उन्हें अपने मन की

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विद्युत जामवाल बोले- लड़कियों को डराकर या दबाकर नहीं रख सकते, करने दीजिए उन्हें अपने मन की


विद्युत जामवाल बोले- लड़कियों को डराकर या दबाकर नहीं रख सकते, करने दीजिए उन्हें अपने मन की

मार्शल आर्ट्स के यूथ आइकॉन कहे जाने वाले जाने-माने अभिनेता विद्युत जामवाल इन दिनों चर्चा में हैं अपनी फिल्म ‘खुदा हाफिज 2’ से। दिलचस्प बात ये है कि उनकी ‘खुदा हाफिज’ के पहले पार्ट को ओटीटी पर काफी पसंद किया गया था, मगर अब उनकी ये फिल्म सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने जा रही है। इस मुलाकात में वे अपनी फिल्म, मार्शल आर्ट्स, अपने चुनिंदा रोल्स करने का कारण, महिला अधिकारों की हिमायत, राजनीति, आर्मी और अपनी मंगेतर नंदिता मेहतानी के बारे में दिल खोलकर बात करते हैं।

यूं तो खुदा हाफिज का अर्थ होता, ईश्वर आपकी रक्षा करे। आपके लिए खुदा हाफिज के क्या मायने हैं?
किसी ने मुझे आज ही पूछा कि खुदा हाफिज जाते-जाते कहा जाता है, तो मैंने कहा, खुदा का नाम तो हमेशा लिया जा सकता है। ये लफ्ज हमेशा से मेरी जिंदगी का हिस्सा रहा है, मगर अब मैं इसे ज्यादा गहराई से समझने लगा हूं। मेरे लिए एक उम्दा मंत्र की तरह है। यह मेरे दिल के बहुत करीब है।
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आपकी खुदा हाफिज वन ओटीटी पर आई थी और और आपकी यह फिल्म सिनेमा हॉल में रिलीज होने जा रही है,क्या आप नर्वस हैं? क्योंकि पिछले कुछ समय से हिंदी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर अपना जादू नहीं दिखा पा रही हैं?
मुझे लगता है कई फिल्में ऐसी होती हैं जिन्हें थिएटर में ही देखा जाना चाहिए। असल में वे सिनेमेटिक अनुभव के लिए बनी होती हैं। जिस तरह का अलग एक्शन मैं अपनी फिल्मों में ट्राई करता हूं, उसे आप सिनेमा हॉल में ही देख सकते हैं। नर्वसनेस का तो पता नहीं, मगर हां मैं बहुत ही उत्साहित हूं। ये भी कम दिलचस्प नहीं है कि खुदा हाफिज वन ओटीटी पर आई थी और टू थिएटर में। मेरे साथ तो ये हमेशा से होता आया है कि मैं कोई चीज करता हूं और दुनिया कहती है, गलत है गलत है और फिर सारी दुनिया वही करने लगती है। जब खुदा हाफिज वन ओटीटी पर आई, तो लोगों ने कहा कि मुझे थिएटर का वेट करना चाहिए था। मगर ओटीटी पर यह सुपर हिट रही और उसके बाद तो कई बड़ी फिल्में ओटीटी पर आईं। जब मैंने ‘फोर्स’ में खलनायक की भूमिका की, तब भी कई लोगों ने मुझसे कहा कि विलेन से करियर की शुरुआत करके मैं गलत कर रहा हूं। आगे चलकर मैं कभी हीरो नहीं बन पाऊंगा। मगर मैं हीरो भी बना। मुझे लगता है कि हमेशा अपने मन की सुननी चाहिए, किसी और की नहीं।
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इस फिल्म में आपके लिए क्या खास है?
हर तरह से खास है ये फिल्म, क्योंकि ये पेंडेमिक के दौर में काफी पसंद की गई फिल्म है। इसमें मुझे एक अभिनेता के रूप में खुद को एक्सप्लोर करने का मौका भी मिला। इससे पहले मैंने जो फिल्में की हैं, उसमें मैं या तो फौजी होता हूं या फिर एक्शन हीरो, जिसके हाथ में गन होती है और वो अपने दुश्मनों का खात्मा करने पर लगा रहता है। यहां परिवार का मामला है और जब किस्सा घर तक पहुंचता है, तो आदमी बदल जाता है। मुझे लगता है कि अदाकार के रूप में इस फिल्म में मेरा इमोशन भी खूब निकला है। मुझे अपना किरदार करके बहुत मजा आया।
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मार्शल आर्ट्स में आपका नाम बहुत ऊंचा है, आपके अनगिनत फैंस हैं, मगर इसके बावजूद आप चुनिंदा फिल्में करते हैं, कारण?
इसके दो कारण हैं। देखिए आप खाना उतना ही खाएंगे, जितनी आपको भूख होगी। मेरे पास कई फिल्मों के ऑफर आते हैं, मगर उनमें से हर फिल्म मुझे एक्साइट नहीं करती। लोग कहते थे, फलां निर्देशक के साथ काम करोगे, तो कमाल हो जाएगा, मगर मेरा मन नहीं करता था। अब थोड़ी तब्दीली आई है, मुझे जो खाने का मन होता है, मैं ऑर्डर करके मंगवा लेता हूं। याने मुझे जिन निर्देशकों के साथ काम करना होता है, मैं कर लेता हूं। जो रोल मुझे भाते हैं मैं उन्हें मैं दिल से कर लेता हूं। भविष्य में आप मुझे पहले की तुलना में ज्यादा फिल्मों में देख पाएंगे।
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अपने टीवी शो इंडिया अल्टीमेट वॉरियर का आपको कैसा रिस्पॉन्स मिला?
बहुत ही कमाल का रिस्पॉन्स मिला। कई लोगों ने मुझसे कहा कि इस शो ने उनकी जिंदगी बदल दी। एक लाइव शो में एक लड़का और लड़की लड़ी हैं पहली बार। जब मेरे पास इस शो की स्क्रिप्ट आई, तो मुझे लगा कि लड़के अपनी फिजिकल स्ट्रेंथ पर जीत जाएंगे, मगर मैं जानता हूं कि लड़कियां भी कम मजबूत नहीं होती, तो इंडियन हिस्ट्री में पहली बार लड़की और लड़का फिजिकली लड़े हैं। चाहे वो कुश्ती हो या बॉक्सिंग हो, हर चीज में दोनों के बीच मुकाबला कड़ा था। एक तरफ लड़के थे, तो दूसरी ओर लड़कियां, दोनों को अपनी फिजिकल स्ट्रेंथ के साथ-साथ मेंटल हेल्थ भी दिखानी थी। और रोचक बात यह है कि इसमें लड़की जीती और मैं बहुत खुश हुआ।
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आप हमेशा से महिला सरोकारों के हिमायती रहे हैं। आप महिलाओं के लिए सेल्फ डिफेंस का मार्शल आर्ट्स का प्रशिक्षण भी दे चुके हैं, मगर आपको क्या लगता है, इस वक्त महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा जरूरी क्या है?
इस वक्त हम जिस पहल पर काम कर रहे हैं, वो है, महिलाओं की आजादी यानी लड़की जो करना चाहे, उसे करने दिया जाए। ये आपको अपने घर से शुरू करना होगा, लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाना होगा। लड़कियों को अपने भाइयों को बताना होगा कि मैं जहां जा रही हूं, सही लोगों के साथ जा रही हूं। ये मां भी कर सकती है, क्योंकि हमें लगता है कि लड़का घर से जा रहा है, तो कुछ नहीं होगा, मगर लड़की जा रही है, तो कोई अनहोनी या बुरा होगा। ऐसा क्यों भाई? हम उन्हें कब तक असुरक्षित और डरा कर रख सकते हैं? मैं पेरेंट्स से कहना चाहता हूं कि आपकी बेटी अगर अमेरिका जा रही है, तो उसे जाने दो। हम चाहते हैं कि लड़कियों में खुद को लेकर आत्मविश्वास आए। मुझे लगता है कि लड़कियां जानती हैं कि वे खुद को प्रोटेक्ट कर सकती हैं, हमें अपना माइंड सेट बदलना होगा। थोड़ा समय लगेगा, मगर मुझे लगता है, शुरुआत करनी पड़ेगी।
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आपको आपकी फिटनेस के लिए भी आइडियलाइज किया जाता है। क्या है फिटनेस का मंत्र?
ये तो मैंने अपनी मां से सीखा है? वो घर के सारे काम करती हैं, मगर उन्हें ये भी पता होता है कि किस बच्चे ने खाना खाया या नहीं खाया? मुझे लगता है फिटनेस में पैशन के साथ-साथ उसे दिनचर्या में ढालना भी जरूरी होता है। आप अगर फिटनेस को लेकर पैशनेट हैं, तो 24 घंटे में इसके लिए कोई न कोई वक्त निकाल ही लेंगे। फिटनेस सिर्फ फिजिकल पहलू नहीं है। लोगों को लगता है कि मैं वर्जिश करने से खुश रहूंगा। अगर मैंने डंबल्स मारे, तो मेरी बॉडी पंपिंग दिखेगी, मगर ऐसा नहीं होता। अगर ऐसा होता, तो सारे बॉडी बिल्डर डिप्रेस और अनहैपी नहीं होते। मुझे लगता है कि फिजिकल फिटनेस के साथ-साथ मानसिक फिटनेस भी जरूरी है। यूथ को डोले शोले ही नहीं मेंटल हेल्थ भी मजबूत करनी होगी
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आप देश की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक हालात को लेकर कितने जागरूक रहते हैं? आप तो आर्मी मैन के बेटे हैं, अग्निपथ योजना को लेकर खूब हंगामा हुआ और विवाद भी?
मेरे पिता आर्मी में थे, तो मैंने देखा है कि बीएसएफ, आर्म्ड फोर्सेज, सीआरपीएफ, जितने भी फोर्सेज हैं, उनको कोई उतनी अहमियत देता नहीं है। मुझे लगता है कोई भी सरकार हो, मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, मगर देश की सेना, देश के रक्षक खुश हैं, तो सबकुछ सही चल सकता है। मुझे लगता है कि अवाम खुश होनी चाहिए, हालांकि सभी को खुश करना मुश्किल है। मुझे लगता है कि लोगों की मूलभूत जरूरतें पूरी होनी चाहिए। मैं समझता हूं कि अगर सरकार नहीं दे पा रही, तो अमीर लोगों को गरीबों में बांटना चाहिए। मेरा मतलब है, जो भी समर्थ है, वो असमर्थ लोगों की मदद करे। जहां तक अग्निपथ योजना की बात है, तो इसका कुछ तो हल निकालना ही है। कई बार हम सेलिब्रेट करते हैं, कई बार हाहाकार मचा देते हैं। कई बार हम किसी को इतनी अहमियत दे देते हैं कि वो भगवान बन जाता है। मुझे लगता है सब सही हो जाएगा, क्योंकि जो गलत होता है, वो ज्यादा समय तक चलता नहीं है।
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आपकी मंगेतर नंदिता मेहतानी आपको कितना कॉम्प्लिमेंट करती हैं? उन्होंने आपको कैसे परिपूर्ण किया है?
मुझे लगता है कि इंसान अगर खुद से संपूर्ण हो, तो उसे कोई संपूर्ण कर नहीं सकता। अगर आप अपने आप में पूर्ण और संतुष्ट हैं, तो सामने वाले को वो दे सकते हैं और यही बात सामने वाले पर भी लागू होती है, तो उस फेज में मैं बहुत आनंद में हूं।



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