लनामिविवि: पीजीआरसी की बैठक में 96 शोध- प्रारूप स्वीकृत

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लनामिविवि: पीजीआरसी की बैठक में 96 शोध- प्रारूप स्वीकृत

लनामिविवि: पीजीआरसी की बैठक में 96 शोध- प्रारूप स्वीकृत

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दरभंगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एसपी सिंह की अध्यक्षता में सामाजिक संकाय के पांच विषयों- राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, इतिहास, भूगोल तथा प्राचीन भारतीय इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग के पीजीआरसी की बैठक विश्वविद्यालय सभागार में आयोजित की गई, जिसमें 96 शोध प्रारूपों को स्वीकृति दी गई। अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति प्रोफेसर सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि पीजीआरसी शोध के क्षेत्र में विश्वविद्यालय स्तर पर सर्वोच्च संस्था है। अत: इसकी मर्यादा को कायम रखना सभी सदस्यों का कर्तव्य बनता है। उन्होंने विभिन्न विभागों से आने वाले शोध प्रारूपों के विषय में कहा कि विभागीय स्तर पर स्वीकृत करने से पहले संभावित पर्यवेक्षकों की उपयुक्तता की भलीभांति जांच करना आवश्यक है। इस दृष्टिकोण से अगले पैट से रिक्तियों की गणना की प्रक्रिया बदली जा रही है। उन्होंने शोध की गुणवत्ता को बढ़ाने के उद्देश्य से विभागीय शोध परिषद् में कम से कम दो बाह्य विषय- विशेषज्ञों को शामिल किए जाने की आवश्यकता को रेखांकित किया। कुलपति ने यह भी निर्देशित किया कि वेसे शिक्षक जो ग्रहणावकाश (लियन) में हैं। उन्हें पर्यवेक्षक नहीं बनाया जा सकता है। शोध कार्य हेतु सभी संकायों की पॉलिसी में एकरूपता होना आवश्यक है। विभागीय शिक्षक एवं शिक्षकेतर कर्मी सभी शोधों का विस्तृत डॉक्यूमेंटेशन विभागीय स्तर पर तैयार करें। नवीनतम डाटा एवं तकनीक हेतु विश्वविद्यालय का ई- लाइब्रेरी अनेक शोध पत्रिकाओं की सदस्यता ले रही है, जिसका उपयोग शोधार्थी ऑनलाइन भी कर सकेंगे। कुलपति ने कहा कि विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को आधुनिक स्वरूप प्रदान करने तथा एडवांस रिसर्च सेन्टर के बन जाने के बाद भविष्य में शोध की गुणवत्ता में काफी सुधार होगा। इन सुविधाओं का उपयोग शोधार्थी घर बैठे ऑनलाइन माध्यम से भी करेंगे। अपने संबोधन में प्रति कुलपति प्रोफेसर डॉली सिन्हा ने कहा कि वर्तमान समय में उच्च शिक्षा के तमाम नियामक संस्थाएं शोध की संख्या के बजाय शोध की गुणवत्ता पर बल दे रहे हैं। इस दृष्टिकोण से उन्होंने विश्वविद्यालय में अंतर विषयक शोध को बढ़ावा देने की बात कही। प्रति कुलपति ने शोध पर्यवेक्षकों एवं शोधार्थियों को शोध की मर्यादा के पूर्णत: पालन की बात कही। उन्होंने सामाजिक विज्ञान के शोध में सैंपल के आकार को बढ़ाने पर बल दिया, ताकि शोध निष्कर्षों की विश्वसनीयता उत्कृष्ट हो सके। वर्तमान समय में शोधार्थी विभिन्न शोध सामग्रियों को घर बैठे अध्ययन कर सकते हैं। यदि वे ओरिजिनल एवं क्वालिटी पूर्ण शोध करेंगे तो विश्वविद्यालय का भी नाम रोशन होगा। सदस्यों का स्वागत एवं संचालन करते हुए कुलसचिव प्रोफेसर मुश्ताक अहमद ने कहा कि आप सब के सहयोग एवं सुझाव से विश्वविद्यालय शोध के क्षेत्र में भी नए आयामों को स्थापित करेगा। उन्होंने कहा कि कुलपति का ध्यान हमेशा शोध की गुणवत्ता सुधार में रहा है। इस क्रम में पीजीआरसी से उम्मीद की जाती है कि शोध कार्यों में पुनरावृति न हो और शोध के बदलते नये आयामों की तलाश करते हुए उन विषयों पर शोध कार्य हेतु शोधार्थियों को प्रोत्साहित किया जाए। सामाजिक विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो जितेन्द्र नारायण ने शोध पर पीजीआरसी में बड़ी संजीदगी से विचार होने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि पर्यवेक्षकों को भी अपने शोध- धर्म का पालन करना चाहिए। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। उन्होंने विश्वविद्यालय के राज पुस्तकालय में सुरक्षित दुर्लभ पुस्तकों की चर्चा करते हुए कहा कि कि ये शोध के लिए उपलब्ध अनमोल खजाना है। स्वीकृत कुल 96 शोध प्रारूपों में राजनीति विज्ञान में 31, अर्थशास्त्र में 28, इतिहास में 15, भूगोल में 12 तथा प्राचीन भारतीय इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति में 10 शामिल हैं। बैठक में प्रो. विमलेन्दु शेखर झा, डा अवनि रंजन सिंह, प्रो अशोक कुमार मेहता, प्रो. अरुण कुमार सिंह, अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो विजय कुमार यादव, प्राचीन भारतीय इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति विभागाध्यक्ष डा उदय नारायण तिवारी, भूगोल विभागाध्यक्ष डॉ. संतोष कुमार, इतिहास विभागाध्यक्ष डा नैयर आजम, संबंधित विभागों के प्राध्यापकों के साथ ही परीक्षा विभाग के कर्मी उपस्थित थे। अंत में धन्यवाद ज्ञापन उप परीक्षा नियंत्रक डा नवीन कुमार सिंह ने किया।

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