राष्ट्रपति नहीं पीएम बनना चाहते हैं शरद पवार, 2024 के लोकसभा चुनाव में लेंगे विपक्ष की मदद

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राष्ट्रपति नहीं पीएम बनना चाहते हैं शरद पवार, 2024 के लोकसभा चुनाव में लेंगे विपक्ष की मदद

मुंबई: एक तरफ महाराष्ट्र में आज विधान परिषद चुनाव के लिए मतदान चल रहा है। दस सीटों के लिए 11 उम्मीदवार मैदान में हैं। हर कोई जीत का दावा कर रहा है। महाविकास अघाड़ी और बीजेपी के प्रत्याशियों के बीच कड़ी टक्कर है। तो दूसरी तरफ देश में राष्ट्रपति चुनाव की गहमागहमी शुरू है। महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी के संयोजक और राजनीति के चाणक्य शरद पवार ने राष्ट्रपति पद की दौड़ से खुद को अलग कर लिया है। आज के विधान परिषद चुनाव के नतीजों के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में भी एक नए चाणक्य का उदय होगा। इस रेस में अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस एक-दूसरे के प्रतिद्वंदी हैं। वैसे शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार की किस्मत काफी हद तक एक-दूसरे मेल खाती है। जहां शरद पवार देश के प्रधानमंत्री बनने की हसरत रखते हैं। वहीं अजित पवार महाराष्ट्र के सीएम बनना चाहते हैं। हालांकि लंबे राजनीतिक करियर के बाद भी दोनों के सपने पूरे नहीं हो पाए हैं।

अजित पवार को हर बार उप मुख्यमंत्री पद से संतोष कर पड़ रहा है। फिर चाहिए कांग्रेस- एनसीपी की सरकार रही हो, मौजूदा महाविकास अघाड़ी सरकार रही हो या फिर देवेंद्र फडणवीस के साथ कुछ घंटो का गठबंधन रहा हो। वहीं शरद पवार केंद्रीय कृषि मंत्री और रक्षा मंत्री रह चुके हैं। लेकिन देश का पीएम बनने की उनकी कसक अभी भी बाकी है।

2004 में बन सकते थे पीएम लेकिन…
एनसीपी सुप्रीमों शरद पवार के पास 2004 में पीएम बनने अच्छा मौका था। जब कांग्रेस पार्टी ने सत्ता में अप्रत्याशित रूप से कमबैक किया था। लेकिन वर्ष 1999 में पवार ने कांग्रेस से नाता तोड़कर अपनी पार्टी खुद की पार्टी एनसीपी (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) का गठन किया। इस वजह से उन्हें अपने आधा दर्जन सांसदों के साथ यूपीए गठबंधन का हिस्सा बने। बाद में उन्हें केंद्रीय मंत्री पद से संतोष करना पड़ा। उस समय कई नेता इस रेस में शामिल थे लेकिन सोनिया गांधी ने अपने और पार्टी के भरोसेमंद मनमोहन सिंह पर यकीन किया और उन्हें पीएम बनाया।

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2017 में उड़ाया राष्ट्रपति का गुब्बारा
इस वर्ष भले ही शरद पवार ने खुद को राष्ट्रपति की रेस के अलग कर लिया हो, लेकिन साल 2017 में पवार गुट राष्ट्रपति की उम्मीदवारी के लिए उनके नाम का गुब्बारा हवा में उड़ाया था। हालांकि जब पवार को लगा कि चुनाव में उनकी जीत मुमकिन नहीं है। तब उन्होंने खुद यह कहा कि उन्हें प्रेसिडेंट चुनाव में कोई रुचि नहीं है। कहा जाता है कि इस बात को तत्कालीन एमपी राहुल बजाज ने जोर-शोर से उठाया था। बाद में इसे उनका ही शगूफा और निजी राय बता दिया गया था।

पवार और मोदी की नजदीकियां
शरद पवार और पीएम नरेंद्र मोदी की नजदीकियां भी किसी छिपी नहीं हैं। यह भी कहा जाता है मोदी के चक्कर में उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं की भावनाओं को भी नजरअंदाज किया। मोदी के राजनीति के शुरुआती दिनों में पवार ने उनकी मदद की थी। ऐसा खुद पीएम भी कह चुके हैं। पवार को यह भी लगा था कि शायद यह मोदी का भरोसा जीतने के लिए काफी होगा। हालांकि उन्होंने मोदी के अंदर आरएसएस की विचारधारा को नजरअंदाज किया।

पूर्ण सत्ता हासिल करने के लिए इतने वर्षों के इंतज़ार को आरएसएस यूं ही जाया नहीं देना चाहती थी। इस लिए उन्होंने मोदी को चुनाव किया। वहीं दूसरी तरफ पवार की छवि एक ऐसे नेता की भी मानी जाती है। जो धर्मनिरपेक्ष तो हैं लेकिन मौकापरस्त भी हैं। शायद इसी वजह से कांग्रेस ने भी उनपर भरोसा नहीं किया और मनमोहन सिंह को पीएम बनाया था।
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राष्ट्रपति के लिए पवार का समर्थन
हालांकि तमाम कड़वाहटों के पांच साल बाद इस बार राष्ट्रपति पद के लिए शरद पवार की उम्मीदवारी को खुद कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने अपना समर्थन दिया था। विपक्ष के कई दल पवार को प्रेसिडेंट चुनाव के लिए अपना समर्थन दे रहे हैं। हालांकि उन्होंने खुद यह चुनाव न लड़ने की बात कही है। पवार ने आज तक जमीन पर किसी भी चुनाव में शिकस्त नहीं खाई है। हालांकि 1997 कांग्रेस प्रेसीडेंसी चुनाव में उन्हें सीताराम केसरी ने हराया था। इसके तीन साल बाद वो बीसीसीआई के चुनाव में एक वोट से हार गए थे। लिहाजा पवार भी अपने रिकॉर्ड को इस चुनाव में ख़राब नहीं करना चाहेंगे। यब बात भी आईने की तरह साफ़ है कि बिना बीजेपी के सपोर्ट के कोई भी यह चुनाव नहीं जीत सकता। वहीं बीजेपी और आरएसएस भी अपनी विचारधारा के लिए कटिबद्ध हैं। उन्हें यह भी पता है किसी ऐसे व्यक्ति (शरद पवार की पार्टी) से गठबन्धन उनकी छवि को बड़ा नुक़सान पहुंचा सकता है।

पवार ने बीजेपी को महाराष्ट्र की सत्ता से बेदखल कर दिया है। यह बात भी जगजाहिर है। ऐसे में पवार को बीजेपी का समर्थन मिलने की संभावना काफी कम है। पवार 2024 के लिए उम्मीद कर रहे हैं कि बीजेपी विरोधी पार्टियां तब तक एक साथ मिलकर थर्ड फ्रंट का गठन कर लेंगी। जिसका फायदा उन्हें लोकसभा चुनाव में मिलेगा।

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पवार की राह आसान नहीं
शरद पवार यह भी जानते हैं कि उनकी ख्वाहिशों की राह इतनी आसान नहीं है। पीएम की रेस में खुद ममता बनर्जी, के. चंद्रशेखर राव भी शामिल हैं। हालांकि साल 2024 में उन्हें 7 लोक कल्याण मार्ग जाने का मौका नहीं मिलता तो भी वो महाराष्ट्र के सियासी तालाब की सबसे बड़ी मछली रहना पसंद करेंगे। साल 2019 में बीजेपी ने पवार को महाराष्ट्र की सियासत से बहार करने का पूरा प्लान बना लिया था। लेकिन पवार की एक रैली के दौरान बारिश में भीगते हुए मंच से भाषण देने की एक वायरल हुई तस्वीर ने पूरा गेम पलट दिया। महाराष्ट्र में दम तोड़ती एनसीपी को इस तस्वीर से संजीवनी मिल गयी।

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