राज बब्बर के बयानों में आखिर क्यों बढ़ रहे हैं तंज? कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के सियासी संदेश क्या हैं?

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राज बब्बर के बयानों में आखिर क्यों बढ़ रहे हैं तंज? कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के सियासी संदेश क्या हैं?

राज बब्बर के बयानों में आखिर क्यों बढ़ रहे हैं तंज? कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के सियासी संदेश क्या हैं?

लखनऊ: बीते तीन सितंबर को बिना किसी संदर्भ के पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर ने जनधन योजना के लिए मौजूदा केंद्र सरकार की तारीफ की। उन्होंने जानकारी साझा की कि मनमोहन सरकार में भी ऐसी ही योजना ‘आपका पैसा आपके हाथ’ शुरू की थी, लेकिन मौजूदा सरकार ने क्रियान्वयन बेहतर किया है। उनके इस ट्वीट ने सियासी गलियारों में खूब सुर्खियां बटोरीं। सबसे खास वजह यह थी कि बिना किसी संदर्भ के यह बात कही गई थी।

इसके बाद बुधवार (सात सितंबर) को जब कांग्रेस ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ शुरू की तब भी राज ने यात्रा के लिए शुभकामनाएं तो दीं, लेकिन कहने से नहीं चूके, ‘उम्मीद है कि यह प्रयास देश और कांग्रेस, दोनों को जोड़ने की दिशा में अहम साबित होगा।’ कांग्रेस जोड़ने वाली बात गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे के वक्त दिए गए बयान से निकली है। तब आजाद ने कहा था कि कांग्रेस को इस वक्त देश नहीं कांग्रेस को जोड़ने की जरूरत है। दरअसल, आजाद की लाइन पर आए राज बब्बर के बयान को उनकी ‘सियासी बगावत’ के झंडाबरदार होने के तौर पर देखा जा रहा है।

ताकि कम न हो तल्खी
अगस्त 2020 में कांग्रेस की सीनियर लीडरशिप ने पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर संगठन पर कुछ सवाल खड़े किए थे। इन सीनियर लीडरों को जी-23 कहा गया। राज बब्बर भी उन्हीं में से एक हैं। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व और उनकी कार्यशैली पर सबसे मुखर सवाल करने वालों में गुलाम नबी आजाद, मनीष तिवारी, कपिल सिब्बल और आनंद शर्मा रहे। बब्बर ज्यादातर अवसरों पर शांत ही रहे।

अब आजाद कांग्रेस से बाहर जा चुके हैं। सिब्बल पार्टी छोड़ चुके हैं। सारी जिम्मेदारी आनंद शर्मा और मनीष तिवारी पर आ चुकी है। माना जा रहा है कि ऐसे में अब इस कुनबे के उन ‘शांत’ रहे लोगों को आगे किया जा रहा है, ताकि वे कांग्रेस के भीतर ‘प्रतिरोध की आवाज’ तेज करते रहें।

‘सुर’ बदलने की वजह तलाश रहे
फिलहाल राज बब्बर के बयानों में कांग्रेस के लिए केवल तंज है। किसी भी बयान में कांग्रेस को सिरे से खारिज नहीं किया गया है। लेकिन एक बात तो तय है कि बब्बर को भाजपा की नीतियां भाने लगी हैं। कांग्रेस के भीतर इसकी मंशा तलाशी जा रही है। कांग्रेस में ही तमाम लोग मान रहे हैं कि शुरुआत भाजपा की नीतियों में सकारात्मकता और अच्छाई देखने से हुई है, जो आगे कांग्रेस की खामियों तक जाएगी।

अब तक कांग्रेस से किनारे हुए तमाम ‘मुखर’ लोगों में भी यही ट्रेंड देखा गया है। कांग्रेस के ही एक सीनियर लीडर के मुताबिक ये ट्वीट बदले सियासी हालात में समझौते की तरफ जाने का रास्ता खोलने जैसे हैं, जो भविष्य में दूसरे आयाम ले सकते हैं।

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