राज्य के बाद बीएमसी पर कब्जे की तैयारी, बीएमसी, ठाणे, केडीएमसी, नवी मुंबई मनपा चुनाव पर बीजेपी की नजर

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राज्य के बाद बीएमसी पर कब्जे की तैयारी, बीएमसी, ठाणे, केडीएमसी, नवी मुंबई मनपा चुनाव पर बीजेपी की नजर

बृजेश त्रिपाठी,मुंबई: एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) के मुख्यमंत्री और देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) के उप मुख्यमंत्री बनने के साथ ही बीजेपी (BJP) ने राज्य की सत्ता पर कब्जा कर लिया। ढाई साल बाद बीजेपी उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) नीत कांग्रेस, एनसीपी सरकार को हटाने में सफल रही। शिंदे-फडणवीस के साथ आने से राज्य की राजनीति का परिदृश्य ही बदल गया। इसका असर होने वाले महानगर पालिकाओं के चुनावों पर देखा जा सकेगा। एकनाथ शिंदे के साथ शिवसेना के 39 विधायकों के बीजेपी के साथ आने से मुंबई सहित पूरे एमएमआर का राजनीतिक दृश्य बदल गया है। माना जा रहा है कि बीजेपी (BJP) को इसका राजनीतिक फायदा आनेवाले मुंबई, नवी मुंबई, ठाणे, उल्हासनगर, कल्याण-डोंबिवली सहित वसई-विरार महानगर पालिका चुनावों में होगा। वहीं यह शिवसेना के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।

बीएमसी सहित अन्य 14 महानगर पालिकाओं को जीतने का लक्ष्य
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की मदद से और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में बीजेपी ने देश की सबसे समृद्धशाली मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) सहित अन्य 14 महानगर पालिकाओं को जीतने का लक्ष्य रखा है। राज्य में सत्ता परिवर्तन होते ही मुंबई बीजेपी ने ट्वीट कर अपने इरादे जाहिर कर दिए। बीजेपी ने अपने ट्वीट में लिखा कि ‘ये तो झांकी है, मुंबई महानगर पालिका अभी बाकी है।’ मुंबई महानगर पालिका का चुनाव शिवसेना-बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। बीजेपी हर हाल में शिवसेना को हटा कर मुंबई मनपा पर कब्जा करना चाहती है।

इसके लिए उसने काफी पहले से तैयारी शुरू कर दी है। बीएमसी पर शिवसेना लगातार 26 साल से राज कर रही है, जबकि ठाणे और कल्याण-डोंबिवली में भी शिवसेना की ही सत्ता थी। नवी मुंबई में पिछले चुनाव एनसीपी ने जीता था, हालांकि बाद में गणेश नाइक के बीजेपी में आने के बाद वहां काफी कुछ घटित हुआ। वसई-विरार महानगर पालिका पर हितेंद्र ठाकुर की बहुजन विकास आघाडी वर्षों से सत्ता में है। उल्हासनगर मनपा में स्थानीय पार्टियों का दबदबा रहा है।

बीएमसी चुनाव हो सकता है गेमचेंजर
बीएमसी का चुनाव शिवसेना-बीजेपी के लिए गेमचेंजर साबित होगा। बीजेपी की पूरी कोशिश है कि वह किसी भी कीमत पर शिवसेना को बीएमसी की सत्ता से हटाए। वहीं इतने झटकों के बाद भी यदि शिवसेना बीएमसी में सत्ता बचाने में कामयाब रहती है तो यह बीजेपी के लिए बहुत बड़ा झटका होगा। बीएमसी चुनाव में शिवसेना-बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर होने की उम्मीद जताई जा रही है। हालांकि राज्य की सत्ता में आने के बाद बीजेपी का पलड़ा भारी हो गया है। बीएमसी चुनाव में शिवसेना को जहां सहानुभूति और कोर मराठी वोटरों पर भरोसा है। यदि बीएमसी शिवसेना के हाथ से गई तो उसके लिए वापसी करना काफी मुश्किल होगा। वहीं बीजेपी को हिंदीभाषियों एवं बीएमसी में सत्ता परिवर्तन के लिए वोट मिलने की उम्मीद है।

शिवसेना के सामने चुनौती
शिवसेना से बगावत करने वालों में मुंबई के पांच विधायक हैं। इनमें भायखला विधायक यामिनी जाधव, मागाठाणे से प्रकाश सुर्वे, कुर्ला से मंगेश कुडालकर, चांदिवली से दिलीप लांडे और शिवसेना के गढ़ माहिम से सदा सरवणकर शामिल हैं। यामिनी जाधव के पति यशवंत जाधव चार बार स्टैंडिंग कमिटी के अध्यक्ष रह चुके हैं। इन विधायकों के करीबी पूर्व नगरसेवक इनके संपर्क में हैं और मौके का इंतजार कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि बीएमसी चुनाव की घोषणा के बाद बड़ी संख्या में शिवसेना के पूर्व नगरसेवक बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। इसका फायदा चुनाव में बीजेपी को होगा।

वर्ष 2017 के बीएमसी चुनाव में शिवसेना-बीजेपी ने आमने-सामने चुनाव लड़ा था। तब शिवसेना के 84 और बीजेपी के 82 नगरसेवक चुन कर आए थे। वहीं कांग्रेस के 31, एनसीपी के 9, मनसे के 7, सपा के 6, एमआईएम के 2 नगरसेवक चुन कर आए थे। लगभग 46 हजार करोड़ रुपये के बजट वाली मुंबई महानगर पालिका में शिवसेना 26 वर्षों से सत्ता में है। बीएमसी चुनाव से ठीक पहले जिस तरह से शिवसेना में विद्रोह शुरू हुआ है, बीजेपी की बाछें खिल गई हैं।

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