राज्य के कलाकारों का आरोप- खजुराहो-तानसेन समारोह में बाहरी को दो से चार लाख मानदेय, राज्य वालों को महज 30 से 40 हजार देकर इतिश्री | MP Culture Department Sanskriti VIbhag | Patrika News

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राज्य के कलाकारों का आरोप- खजुराहो-तानसेन समारोह में बाहरी को दो से चार लाख मानदेय, राज्य वालों को महज 30 से 40 हजार देकर इतिश्री | MP Culture Department Sanskriti VIbhag | Patrika News

राज्य के कलाकारों का आरोप- खजुराहो-तानसेन समारोह में बाहरी को दो से चार लाख मानदेय, राज्य वालों को महज 30 से 40 हजार देकर इतिश्री | MP Culture Department Sanskriti VIbhag | Patrika News

राज्य के प्रमुख आयोजन दुनियाभर में चर्चित लेकिन स्थानीय कलाकार उपेक्षित
1. मध्य प्रदेश स्थापना दिवस समारोह, भोपाल
2. तानसेन समारोह, ग्वालियर
3. कृष्णराव शंकर पण्डित समारोह ग्वालियर
4. कालिदास समारोह उज्जैन
5. महाकाल उत्सव उज्जैन (शिवरात्रि और श्रावण मास के भव्य आयोजन)
6. रजब अली खां समारोह देवास
7. कुमार गंधर्व समारोह देवास
8. खजुराहो नृत्य महोत्सव, खजुराहो
9. बैजू बावरा समारोह चंदेरी, अशोक नगर
10. अमीर खां समारोह इन्दौर
11. बाबा अलाउद्दीन खां संगीत समारोह मैहर, सतना
12. माण्डू उत्सव, धार

पांच बड़े सवाल, जिन से जूझना कलाकारों-साहित्यकारों की नियति बन गई 1. हर तीन महीने होनी चाहिए पेंशन कमेटी की मीटिंग लेकिन सालभर से नहीं हुई
नियमानुसार संस्कृति विभाग में हर तीन महीने में एक बार वृद्ध कलाकार पेंशन कमेटी की मीटिंग होनी चाहिए, लेकिन बीते एक साल में नहीं हुई। उसके पहले कोरोना काल के दरमियान भी मीटिंग नहीं हो पाई। इस तरह तीन साल के दरमियान महज एक बार पिछले साल नवंबर 2021 में बैठक हो पाई। मालूम हो कि इस कमेटी में संस्कृति संचालक का दायित्व पदेन अध्यक्ष का है जबकि कुल चार सदस्य हैं। अभी संस्कृति संचालक की भूमिका में अदिति कुमार त्रिपाठी हैं। बतौर सदस्य इंदौर की चित्रकार शुभा वैद्य, भोपाल रंगमंच के कलाकार संगीत सोम, देवास से मूर्तिकार प्रकाश पवार, साहित्य विधा से डॉ. विकास दवे हैं। सदस्यों ने बताया कि पिछले साल बैठक हुई थी, उसके बाद की स्थिति स्पष्ट नहीं है। अभी तक संस्कृति से कोई पत्र व्यवहार या फोन नहीं आया।

2. पेंशन को लाले तो चिकित्सा सहायता भी महज 5000 रुपए
कलाकार-साहित्यकर्मी और उनके परिजनों के लिए शासन से चिकित्सा सहायता का प्रावधान है। सालभर में एक बार कुल 5000 रुपए मिलते हंै, जिसे बढ़ाने की मांग लंबे समय से उठती आ रही है। पिछले दिनों संस्कृति विभाग ने एक कमेटी बनाकर समीक्षा करवाई। कमेटी ने अनुशंसा की है कि इस राशि को बढ़ाकर 50 हजार रुपए कर दिया जाए। कमेटी के सदस्य और शास्त्रीय गायक बलवंत पुराणिक बताते हैं कि हमारी अनुशंसा के बाद अभी तक राशि बढ़ाने पर कोई निर्णय नहीं हुआ। सरकार से अपेक्षा है कि इस दिशा में सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए बिना देरी निर्णय ले।

3. वर्षों से पेंशनर्स की सूची का प्रमाणीकरण नहीं हुआ
संस्कृति विभाग के पास 300 से अधिक पेंशनधारी कलाकारों-साहित्यकारों की जो सूचियां हैं, उनका प्रमाणीकरण वर्षों से नहीं हुआ। पिछले साल वृद्ध कलाकार पेंशन कमेटी की बैठक में मांग उठी थी कि पेंशनर्स की सूची को अद्यतन करने का सिस्टम बनाया जाए। अभी इसमें ऐसे नामों की भरमार है, जिन्हें प्रदेश और शहर तो दूर मोहल्ले के लोग भी साहित्यकार या कलाकार के रूप में नहीं जानते। अभी 52 जिलों के कलेक्टरों की ओर से अनुमोदित नाम शामिल कर लिए जाते हैं। सूत्रों के अनुसार संस्कृति मंत्री ऊषा ठाकुर ने भी लिखित में एक आदेश दिया था कि इस तरह की स्थितियों से उबरने के लिए पेंशन कमेटी में समस्त भाषायी अकादमियों के निदेशक रखे जाएं। साहित्यकार-कलाकारों का भी प्रतिनिधित्व हो। विभाग के अधिकारियों ने इसे लागू करने पर ध्यान नहीं दिया।

4. कलाकारों के नाम और काम बड़े लेकिन संस्कृति की पेंशन के लिए भटक रहे
पेंशन के लिए प्रक्रियागत व्यवस्था भी कलाकारों का संघर्ष बढ़ा रही है। सबसे पहले संबंधित जिला कलेक्टर के यहां आवेदन करना होगा। कलेक्टर एडीएम तो वे आगे संबंधित क्षेत्र के पटवारी को कलाकार के घर आर्थिक स्थिति के भौतिक सत्यापन के लिए भेजते हैं। उसकी रिपोर्ट के साथ प्रकरण कलेक्टर के पास लौटता है, फिर उनकी टीप के साथ संस्कृति विभाग को जाता है। यह काम किसी की प्राथमिकता में नहीं होता। कई बार प्रक्रिया में सालों लग जाते हैं। ऐसे में कलाकार परेशान होते रहते हैं। मांग उठ रही है कि जिला प्रशासन की औपचारिकता के बजाय विभाग सीधे आवदेन लेकर प्रक्रिया पूरी करे। कलाकारों के खाते में पेंशन की राशि पहुंचाने की व्यवस्था करे। हालत यह है कि जनपद से मासिक के बजाय छह-छह महीने में पेंशन डाली जाती है।

5. पेंशन समिति के अनुमोदन के बाद भी कलेक्टर कार्यालयों के लगवा रहे चक्कर
संस्कृति विभाग की अभावग्रस्त साहित्यकार-कलाकार सहायता योजना में पेंशन शुरू करने का अधिकार समिति सदस्यों के अनुमोदन पर भी है, लेकिन बुजुर्गों को जिला कलेक्टर कार्यालयों के चक्कर लगाने के लिए बाध्य किया जा रहा है। एक विसंगति ये भी है कि पेंशन का जो प्रोफार्मा बना है, उसके हिसाब से आवेदन प्रक्रिया की जानकारी कलाकारों को नहीं है। उन्हें बताने वाला भी कोई नहीं। ऐसे में वे जानकारी त्रुटिपूर्ण भर देते हैं और आवेदन निरस्त हो जाता है। जैसे- आवेदन में एक प्रश्न है कि पेंशन के आवेदनकर्ता के ऊपर आश्रितों की संख्या कितनी है, वे अगर चार या इससे अधिक लिख दें तो आवेदन खारिज हो जाता है। कलाकारों के लिए आज भी सालाना 36 हजार रुपए न्यूनतम आय की सीमा तय है। जबकि केंद्र सरकार इनकम टैक्स के प्रावधान के तहत आम आदमी की आय को 2 लाख रुपए तक सालाना की छूट है।

आरोप-1
विजय सप्रे, 57 वर्ष
विधा- गायिकी, ग्वालियर घराना
जिला- कोलार, भोपाल
बाहरी कलाकारों की तुलना में स्थानीय को पांच गुना तक कम देते सम्मान राशि
उपलब्धियां हजार- विजय सप्रे ध्रुपद और ख्याल दोनों विधाओं पर अधिकार रखते हैं। उनकी माताजी माणिक सप्रे खुद ख्यात गायिका हैं, अत: उन्होंने आठ साल की उम्र में घर से सीखना शुरू किया। इसके बाद ग्वालियर के मशहूर पं. राम मराठे के गंडाबंध शिष्य बन गए। भोपाल आए तो उस्ताद जिया फरीदुद्दीन डागर साहब से एक साल जुटकर ध्रुपद की बारीकियां सीखीं। राजधानी के उप-शास्त्रीय गायत प्रताप राय तनवानी से सूफी, गजल और ठुमरी सीखने को मिले। वे ग्वालियर, इन्दौर, पुणे, मुंबई, दिल्ली, झांसी, कानपुर, प्रयागराज, भावनगर, पिलानी, कोलकाता समेत देशभर में होने वाले समारोह में गायन कर चुके हैं। उनके कार्यक्रम डीडी भारती के लिए भी रिकॉर्ड किए जा चुके हैं।

कैसे-कैसे संघर्ष- विजय सप्रे प्रदेश के कलाकारों के साथ आयोजनों में सम्मान निधि को लेकर किए जाने वाले भेदभाव को लेकर आहत हैं। क्रोधित होते बोले- मुझ जैसे कलाकार का ही आर्थिक शोषण हो रहा है तो बाकी की स्थिति क्या होगी, समझा जा सकता है। फिर आपबीती सुनाई, संस्कृति विभाग की ओर से 1 अक्टूबर को हुए शक्ति पर्व समारोह में मुझे मात्र 25 हजार की निधि दी, जबकि उसी आयोजन में आए मेरे समतुल्य गायकों को कहीं अधिक मिली। ये कोई एक बार का किस्सा नहीं है। इससे पहले वर्ष 2017 में हुए तानसेन समारोह में मुझे 29 हजार रुपए की सम्मान निधि दी, जबकि मेरे बराबरी वाले पुणे से बुलाए गए ध्रुपद गायक को पांच गुना अधिक राशि दी। सप्रे बताते हैं कि राज्य में कम से कम 12 से अधिक राष्ट्रीय स्तर के समारोह होते हैं, दुर्भाग्य है कि इनमें हम स्थानीय कलाकारों को अवसर मिलना भाग्य की बात है। उससे भी बड़ी बात है, सम्मान निधि की एकरूपता।

आरोप-2
मो. साजिद अंसारी, 74 वर्ष
विधा- शायर
जिला- बरेली, रायसेन
20 साल की कोशिश के बाद उर्दू अकादमी से मिला एक कार्यक्रम
उपलब्धियां हजार-
मो. साजिद अंसारी वरिष्ठ शायर हैं, जो बरसों तक अच्छे गायक भी रहे। 40 रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं लेकिन उनका संकलन कर किताब की शक्ल नहीं दे पाए। कई सालों से आकाशवाणी-दूरदर्शन के धारावाहिकों-जागरूकता संबंधी श्रृंखलाओं के लिए गीत लिखते आ रहे हैं। उनके विशेष कार्यक्रमों में कलाम भी पढ़ते हैं। आम मुशायरों और कवि सम्मेलनों में भी उन्हें सुना जा सकता है, लेकिन बढ़ती उम्र के चलते अब कुछ एक में ही शिरकत कर पाते हैं। दूरदर्शन भोपाल के कार्यक्रम कल्याणी का शीर्षक गीत कल्याणी तू अब अलविदा मानस पटल पर रहेगी सदा… समेत श्रृंखला के2-3 अन्य गीत उन्होंने ही लिखे हुए हैं। कार्यक्रम नमस्ते मध्य प्रदेश के लिए गीत आओ मिलकर जश्न मनाएं, जश्न मनाएं आजादी का… भी लिखा है। 19 अक्टूबर 2022 को आकाशवाणी पर हुए मुशायरे में उन्होंने कोरोना को लेकर वंदना अपने बंदों पर रहम कर मौला, ये वबा हम से दूर का मौला… सुनाया, जिसे खूब पसंद किया गया।

कैसे-कैसे संघर्ष-
मधुमेह, उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारियों से परेशान साजिद बताते हैं कि पूरा जीवन ही संघर्ष में गुजरा है। वर्ष 1978 से 1983 तक ऑटो चलाया। 2008 में पत्नी चल बसीं। वर्ष 2010 में सरकारी कर्मचारी से दूसरी शादी की, पर चल नहीं पाई, 2017 में तलाक हो गया। उन्हें सुकून है कि दोनों बेटों को पढ़ा-लिखाकर पैरों पर खड़ा कर दिया। समस्या यह है कि सरकारी पेंशन के 1500 रुपए में ही जीवन की गाड़ी खींचनी पड़ रही है। दवाइयां लें या पेट भरें। सरकार बताए 1500 रुपए पेंशन में कोई वृद्ध महीना कैसे चलाए। बेटों के आगे हाथ फैलाना अच्छा नहीं लगता, इसलिए चाहते हैं कि सरकार पेंशन की राशि 8000 नहीं अब 15 हजार रुपए करे। उनकी शिकायत उर्दू अकादमी से भी है। वे तत्कालीन निदेशक बशीर बद्र से लेकर मौजूदा नुसरत मेहदी तक को आवेदन दे चुके हैं कि उन्हें भी मुशायरों में बुलाएं लेकिन नाम, पता और कलाम लेने के अलावा आगे बात नहीं बढ़ती। 20 साल की कोशिश के बाद छह महीने पहले एक प्रोग्राम मिला, अगला पता नहीं कब मिले। साजिद कहते हैं कि सरकारी कवि सम्मेलनों-आयोजनों में जो मेहनताना मिल जाता है, हाथ खर्च चलाने में बड़ा सहारा होता है।

सीधी बात (बुधवार 08 नवंबर 2022)
अदिति कुमार त्रिपाठी, संचालक, संस्कृति विभाग
शिवाजी नगर स्थित संस्कृति संचालनालय में बुधवार को पत्रिका टीम ने दोपहर में 3.55 बजे पर्ची पर अपना परिचय और मिलने का कारण लिखकर भेजा। इसके बाद संचालक त्रिपाठी बाहर आए और कार्यालय छोड़कर जाने लगे। इस दरमियान हुई बातचीत के अंश…
रिपोर्टर- आप से पेंशन प्रकरण और कलाकार-साहित्यकारों से जुड़े विषय में बात करना है?
त्रिपाठी- अभी मुझे जाना है, बाद में बात करेंगे।
रिपोर्टर- बाद में कब… क्या कल आ जाऊं?
त्रिपाठी- नहीं… आप फोन कर लेना… आप से फोन पर बात हुई है ना।
रिपोर्टर- फोन पर नहीं पिछली बार प्रत्यक्ष ही बात हुई है, मेरे पास आप का संपर्क नंबर भी नहीं है?
त्रिपाठी- अरे… पिछली खबर में तो आपने मेरी… खैर, नंबर ले लीजिए।
रिपोर्टर- कलाकारों के अनुदान वितरण में मुंह देखकर तिलक, बिना काम-पहचान के चयन और एनजीओ को भी उपकृत करने का मसला… व्यवस्था में गड़बड़ी पर चोट की गई थी। पड़ताल कर खुलासा किया गया था, किसी पर व्यक्तिगत तो कुछ नहीं था।
(इसके बाद वे अपनी कार में बैठकर चले गए।)



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