राजा मर्दन सिंह ने चौहद्दी घेरकर दी थी अंग्रेज़ो को टक्कर, झाँसी की रानी के साथ मिलकर तैयारी की थी सेना | Raja Mardan Singh fight to British army with Rani of Jhansi in 1857 | Patrika News

77
राजा मर्दन सिंह ने चौहद्दी घेरकर दी थी अंग्रेज़ो को टक्कर, झाँसी की रानी के साथ मिलकर तैयारी की थी सेना | Raja Mardan Singh fight to British army with Rani of Jhansi in 1857 | Patrika News


राजा मर्दन सिंह ने चौहद्दी घेरकर दी थी अंग्रेज़ो को टक्कर, झाँसी की रानी के साथ मिलकर तैयारी की थी सेना | Raja Mardan Singh fight to British army with Rani of Jhansi in 1857 | Patrika News

राजा मर्दन ने शुरू की थी 1857 की बैठक
ललितपुर के ऐतिहासिक भारतगढ़ दुर्ग में स्वतंत्रता के प्रथम आंदोलन में राजा मर्दन सिंह ने अंग्रेजों से लोहा लिया था। साल 1857 की क्रांति की बड़ी और अहम बैठक इसी किले में हुई थी। बुंदेलखंड में क्रांति की ज्वाला की पहली मशाल बुंदेलखंड से ही जलाई गई थी। बुंदेलखंड में स्थित झांसी की रानी महारानी लक्ष्मी बाई के अधीन तालबेहट के राजा मर्दन सिंह ने बहुत साथ दिया था।

झाँसी की रानी और मंगल पांडे का साथ देने के लिए हुई थी बैठक
1857 का स्वतंत्रता आंदोलन की रणनीति तालबेहट के भारतगढ़ दुर्ग में ही तय हुई थी, जिसमें झांसी की रानी लक्ष्मी बाई और मंगल पांडे ने अहम भूमिका निभाई थी। यहीं पर दोनों बड़े क्रांतिकारियों को एक करते हुए सबका साथ देने के लिए जनता को एक साथ लाने की बैठक हुई थी। इतना ही नहीं इस क्रांति के महान शूरवीर योद्धा तालबेहट के राजा मर्दन सिंह आज के ही दिन यानी 22 जुलाई 1879 को स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते-लड़ते अमर शहीद हो गए थे।

रानी लक्ष्मी बाई के साथ मिलकर ग्वालियर तक शुरू की थी क्रांति सेना
1857 स्वंतत्रता आंदोलन की रणनीति भारतगढ़ दुर्ग में मंगल पांडेय, रानी लक्ष्मीबाई आदि क्रांतिकारियों के तैयार की थी। भारतगढ़ दुर्ग की बैठक में अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की तैयारियां शुरू हुई थी। राजा मर्दन सिंह ने अंग्रेजों के दबाव और लालच को दरकिनार कर झांसी रानी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध लड़ा। ग्वालियर में झांसी रानी के बलिदान के बाद अंग्रेजों ने राजा मर्दन सिंह और बखतबली सिंह को बंदी बनाकर लाहौर जेल भेज दिया था। फिर राजा मर्दन सिंह को मथुरा जेल लाया गया। इस जेल में चंदेरी, बानपुर, तालबेहट, गढाकोटा रियासत के अन्तिम शासक राजा मर्दन सिंह अंग्रेजों की क्रूरता को सहन करते हुए 22 जुलाई 1879 अमर शहीद हो गए थे।

भारतगढ़ दुर्ग का परकोटा उत्तर से दक्षिण की ओर करीब 2 किलोमीटर तक फैली
भारतगढ़ दुर्ग का परकोटा उत्तर से दक्षिण की ओर करीब 2 किलोमीटर तक फैली है। जिसमें पांच विशाल गुर्ज बने हुए है। जहां से नगर सहित मानसरोवर किनारे बसे गांव की खूबसूरत बस्तियों को देखा जाता है। किले के अंदर मौजूद अंध कुआँ के सम्बंध में कई किवंदती और मान्यताएं है। दुर्ग की पश्चिम तलहटी में नगर और पूरब की तलहटी में एक विशाल मानसरोवर है।

राजा मर्दन सिंह के ऐतिहासिक भारत गढ़ दुर्ग में पहुंचने के लिए झांसी और ललितपुर दोनों ओर से ट्रेन, बस उपलब्ध है झांसी और ललितपुर के मध्य राष्ट्रीय राजमार्ग 44 पर स्थित तालबेहट कस्बा से 500 मीटर की दूरी पर भारतगढ़ दुर्ग स्थित है जिसके अंदर प्राचीन धार्मिक परंपराओं को सजाए खूबसूरत विशाल मानसरोवर है।

यह भी पढे: अखिलेश यादव ने भेजा शिवपाल यादव को पत्र, जहां सम्मान मिले वहाँ जाओ, OP राजभर पर…





Source link