राजनीति के ‘घाघ’ गलियारे से निकले हैं नीतीश, JDU में जारी सियासी घमासान से पहले ही ले चुके हैं राष्ट्रीय अध्यक्ष पर फैसला!

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राजनीति के ‘घाघ’ गलियारे से निकले हैं नीतीश, JDU में जारी सियासी घमासान से पहले ही ले चुके हैं राष्ट्रीय अध्यक्ष पर फैसला!

राजनीति के ‘घाघ’ गलियारे से निकले हैं नीतीश, JDU में जारी सियासी घमासान से पहले ही ले चुके हैं राष्ट्रीय अध्यक्ष पर फैसला!

पटना : बिहार में सियासी पार्टियों के भीतर खींचतान की खबरें लगातर आती हैं। ये खबरें किसी एक पार्टी के भीतर से नहीं आती। प्रदेश स्तर पर राजनीतिक पार्टियों में अंदरूनी घमासान आम बात है। हां, ये बात जरूर है कि क्षेत्रीय पार्टियों की खींचतान जल्दी बाहर आ जाती है। राष्ट्रीय स्तर की पार्टियों में एक केंद्रीय कमांड काम करता है, जिससे चीजें जल्दी बाहर नहीं आ पातीं। ताजा मामला बिहार की सत्ताधारी पार्टी जेडीयू को लेकर हैं। इन दिनों पार्टी सांगठनिक चुनाव के दौर से गुजर रही है। चुनाव के दौरान असंतुष्ट कार्यकर्ताओं की फौज जिला स्तर से लेकर प्रखंड स्तर पर सक्रिय है। हर जिले से विवाद की खबरें आ रही हैं। फिलहाल, पार्टी का कमान प्रदेश स्तर पर उमेश कुशवाहा संभाल रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर ललन सिंह संभाल रहे हैं। सियासी जानकारों की माने तो आरसीपी सिंह की विदाई होने के बाद से जेडीयू के अंदर बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं का गुट असंतुष्ट है।

नीतीश कुमार सब जानते हैं !
सियासी जानकार मानते हैं कि आरसीपी सिंह जेडीयू में संगठन की राजनीति करते रहे। कार्यकर्ताओं के प्रति इतने विनम्र रहे कि सबकी बात ध्यान से सुनते थे। उनके कार्यकाल में जेडीयू सांगठनिक स्तर पर काफी मजबूत हुआ। उनके कार्यकाल वाले कार्यकर्ता अभी भी उनके संपर्क में हैं और आरसीपी सिंह के लिए वफादार हैं। लेकिन, अब जेडीयू के अंदर की स्थिति बदल गई है। राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह फाइव स्टार वाले पार्टी अध्यक्ष हैं। अपने शाही एटीट्यूड के लिए जाने जाते हैं। उन तक आम कार्यकर्ताओं का पहुंचना बहुत मुश्किल है। इधर, पार्टी में राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को लेकर विवाद की खबरें सतह पर आने लगी हैं। पार्टी सूत्रों की मानें, तो अध्यक्ष पद के दावेदार में उपेंद्र कुशवाहा भी शामिल है। लेकिन, कोई भी बिना नीतीश कुमार की हरि झंडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बनेगा। वो भी तब, जब नीतीश कुमार खुद राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष को एकजुट करने में जुटे हैं। उन्हें एक मजबूत और विश्वसनीय चेहरा अपने साथ चाहिए। उपेंद्र कुशवाहा पर दांव लगाने की जगह नीतीश कुमार खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना पसंद करेंगे।

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जेडीयू अध्यक्ष तय!
जेडीयू के पूर्व वरिष्ठ प्रवक्ता रहे और बिहार की सियासत को करीब से देखने वाले नवल शर्मा कहते हैं कि देखिए पहली बात तो नीतीश कुमार ‘घाघ’ राजनीति के गलियारों से निकले नेता हैं। उन्हें पता है कि पार्टी के अंदर क्या चल रहा है। नवल शर्मा कहते हैं कि वैसे भी जेडीयू के अंदर आज तक प्रजातांत्रिक नियमों का पालन नहीं किया गया। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव नीतीश कुमार से इतर मामला नहीं है, जिस पर कोई मंथन हो। जो भी राष्ट्रीय अध्यक्ष होगा। उसमें नीतीश कुमार सिर्फ तीन चीजें देखेंगे। जातीय गुणा-गणित, ‘लव-कुश’ समीकरण और अति-पिछड़ा समीकरण। इन तीनों समीकरण को साधने वाला व्यक्ति ही राष्ट्रीय अध्यक्ष होगा। नीतीश कुमार की रणनीति पहले से तय होती है। नवल शर्मा जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को ‘जेबी’ (जेब में रहने वाली पार्टी) पार्टी का चुनाव मानते हैं। नवल शर्मा कहते हैं कि जेडीयू नीतीश कुमार की व्यक्तिगत दुकान है। उन्होंने कहा कि पहले आपने सुना होगा कि ललन सिंह खुद को केयर टेकर बताते रहे हैं। ये चुनाव नीतीश कुमार के व्यक्तिगत दुकान के केयर टेकर का चुनाव है। इससे ज्यादा कुछ नहीं।

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जेडीयू राष्ट्रीय पार्टी नहीं !
वहीं, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार धीरेंद्र कुमार कहते हैं कि जेडीयू में राष्ट्रीय नाम की कोई चीज नहीं है। इस पार्टी में एक मात्र जिस नेता का वजूद है। वो हैं नीतीश कुमार। राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को लेकर पार्टी के भीतर शीतयुद्ध की स्थिति है। ये बात नीतीश कुमार जानते हैं। धीरेंद्र कहते हैं कि यदि पार्टी ललन सिंह को रिप्लेस कर उपेंद्र कुशवाहा को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाती है, तो सवाल है कि ललन सिंह कहां जाएंगे? ललन सिंह उस स्थिति में खुद को डिमोट कर संसदीय दल का नेता नहीं बनना चाहेंगे। ललन सिंह लोकसभा में जेडीयू के नेता हैं। धीरेंद्र विश्वास के साथ कहते हैं कि देखिए ललन सिंह दोबारा राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहेंगे। इसके दो कारण हैं। पहला तो ये कि राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के विस्तार वाले फ्रंट पर ललन सिंह आगे हैं। उपेंद्र कुशवाहा कहीं नहीं हैं। इधर, नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति में जाना चाहते हैं। वैसे में ललन सिंह उनके सबसे विश्वसनीय सहयोगी होंगे। धीरेंद्र का कहना है कि ललन सिंह जितने नीतीश के विश्वसनीय हैं, उतने उपेंद्र कुशवाहा नहीं हो सकते। ये बात नीतीश कुमार को बखूबी पता है। इन तमाम विकल्पों पर विचार करने के बाद साफ लगता है कि ललन सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर बने रहेंगे।

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पार्टी के अंदर सियासी शीतयुद्ध
पार्टी में चल रहे अंदरुनी खींचतान पर सूत्रों का कहना है कि नीतीश कुमार संगठन की एक-एक बार पर नजर रखे हुए हैं। नीतीश कुमार ने वक्त रहते अपना फैसला ले लिया है। उन्हें किसे राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद देना है। जेडीयू से जुड़े सूत्र कहते हैं कि फिलहाल जिस तरह ललन सिंह एक्टिव हैं। महागठबंधन से पार्टी का जिस तरह समन्वय बनाकर चल रहे हैं। नीतीश कुमार ललन सिंह को ही रिपीट करेंगे। ललन सिंह ने पार्टी को नार्थ इंडिया में विस्तारित की है। ललन सिंह की राष्ट्रीय स्तर पर पकड़ मजबूत है। वहीं, सियासी जानकार कहते हैं कि नीतीश कुमार राष्ट्रीय अध्यक्ष के मुद्दे पर दो विकल्पों पर विचार कर सकते हैं। पहला है खुद को राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर रखना और दूसरा ललन सिंह को दोबारा अध्यक्ष पद सौंपना। तीसरा विकल्प उनके पास नहीं है। नीतीश कुमार बिहार में जिस तरह तेजस्वी को प्रोजेक्ट कर रहे हैं, उससे साफ लगता है कि वे अपना पूरा ध्यान राष्ट्रीय राजनीति पर देंगे।

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ललन सिंह बनेंगे दोबारा अध्यक्ष!
वरिष्ठ पत्रकार धीरेंद्र कुमार कहते हैं कि मैं इस बात पूरी तरह कायम हूं कि दोबारा जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह बनेंगे। धीरेंद्र ने कहा कि आप इसका प्रमाण ले लीजिए। उन्होंने कहा कि अगस्त 2019 में ललन सिंह के दिये गए बयानों को ध्यान से देखिए। जिस तरह नीतीश कुमार के पीएम पद के उम्मीदवार वाली कयासबाजी पर ललन सिंह ने प्रतिक्रिया दी है। क्या जेडीयू के किसी और नेता ने दी है। ललन सिंह ने कहा था कि अगर अन्य दल चाहें तो नीतीश कुमार एक विकल्प हो सकते हैं। नीतीश कुमार का मुख्य ध्यान 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी से मुकाबले के लिए विपक्षी दलों को एकजुट करने पर है। धीरेंद्र कहते हैं कि ललन सिंह ने अगस्त में किस अधिकार से ये कहा कि सभी दलों को एक होकर लड़ना चाहिए और बाद में तय करना चाहिए कि नेता कौन होगा? इन बयानों का मतलब क्या है?नीतीश कुमार पहले से मन बना चुके हैं कि राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर ललन सिंह को रिपीट किया जाए, ताकि वो कंफिडेंस के साथ राष्ट्रीय राजनीति को संभाल सकें।

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