यहां नर्मदा खुद बनाने आती हैं शिवलिंग, देश में एकमात्र शिव विवाह की प्रतिमा | amazing shiva temple in india, shiv parvati marriage statue at narmada | Patrika News

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यहां नर्मदा खुद बनाने आती हैं शिवलिंग, देश में एकमात्र शिव विवाह की प्रतिमा | amazing shiva temple in india, shiv parvati marriage statue at narmada | Patrika News

यहां नर्मदा खुद बनाने आती हैं शिवलिंग, देश में एकमात्र शिव विवाह की प्रतिमा | amazing shiva temple in india, shiv parvati marriage statue at narmada | Patrika News

बारिश में बनाती हैं प्रतिष्ठित शिवलिंग

भेड़ाघाट संगमरमरी पहाडिय़ों के लिए विश्व प्रसिद्ध तो है, साथ में यहां का धार्मिक महत्व वाला बाण कुंड भी लोगों के बीच आकर्षण व चर्चा का विषय बना रहता है। दरअसल, हर साल नर्मदा बारिश के दौरान यहां तीव्र वेग में आती हैं और नुकीले पत्थरों को भगवान शिव बनाकर चली जाती हैं।

त्रिपुरतीर्थ के बाणकुंड का हर पत्थर शिवलिंग, देश की एकमात्र शिव विवाह प्रतिमा भी कुंड के पास सदियों से स्थापित धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बाण कुण्ड में बाणासुर ने सवा लाख शिवलिंग निर्माण कर नर्मदा के इसी कुण्ड में उनका रुद्राभिषेक कर विसर्जित किया था। इसके बाद ही इसका नाम बाण कुंड पड़ गया। इस कुंड की विशेषता है कि यहां पाए जाने वाले हर पत्थर का आकार शिवलिंग के आकार का होता है। महंत धर्मेन्द्र पुरी के अनुसार इस कुण्ड का हर पत्थर स्वयं प्राण प्रतिष्ठित शिवलिंग कहलाता है। यही वजह है कि इनका सीधे स्थापना पूजन किया जाता है।

शिव विवाह की एकमात्र प्रतिमा चौसठयोगिनी मंदिर

कुंड के पास चौसठ योगिनी मंदिर में विराजमान माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह प्रसंग की प्रतिमा देश में एकमात्र प्रतिमा कहलाने का गौरव रखती है। इतिहासकार राजकुमार गुप्ता के अनुसार 8 वीं शताब्दी में कल्चुरी राजा नृसिंहदेव की माता अल्हड़ देवी ने प्रजा की सुख शांति के लिए शिव पार्वती मंदिर का निर्माण कराया था। स्थापत्यकला का बेजोड़ नमूना आज भी लोगों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। सावन सोमवार, कार्तिक पूर्णिमा, शिवरात्रि, बसंत पंचमी, पुरुषोत्तम माह में भक्तों की भीड़ उमड़ती है।

राम ने बनाया, रामेश्वरम महादेव के उपलिंग कहलाए

भगवान श्रीराम और लक्ष्मण जब सीता माता की खोज में निकले थे तब एक बार वे मां नर्मदा तट पर भी आए हुए थे। पुराणों में इस बात का उल्लेख भी मिलता है। कहा जाता है कि जब भगवान श्रीराम को जाबालि ऋषि से मिलने की इच्छा हुई तो वे संस्कारधानी जबलपुर के नर्मदा तट पर आए थे। इसी दौरान उन्होंने अपने आराध्य महादेव का पूजन वंदन किया था। जिसके लिए रेत से शिवलिंग का निर्माण किया। जो आज गुप्तेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। गुप्तेश्वर पीठाधीश्वर डॉ. स्वामी मुकुंददास ने बताया कि त्रेता युग में भगवान राम की उत्तर से दक्षिण तक की यात्रा काल का वर्णन पुराणों में आता है। कोटि रूद्र संहिता में प्रमाण है कि रामेश्वरम् के उपलिंग स्वरूप हैं गुप्तेश्वर महादेव। मतस्य पुराण, नर्मदा पुराण, शिवपुराण, बाल्मिकी रामायण, रामचरित मानस व स्कंद पुराण में जिस गुप्तेश्वर महादेव के प्रमाण मिलते हैं ये वही मंदिर है। मंदिर सन् 1890 में अस्तित्व में आया। गुफा का मुख्य द्वार एक बड़ी चट्टान से ढंका था। जब लोगों ने इसे अलग किया तो गुप्तेश्वर महादेव के दर्शन हुए।

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