मौलाना साहब, आप लड़के-लड़कियों पर निगरानी बंद कर दीजिए | Jama Masjid Bans Girls Entry deoband mufti comment on birthday party | News 4 Social
हाल ही में ईरान में हिजाब हवा में लहराती लड़कियों का डर वहां के हुक्मरानों में किसने नहीं देखा। अब ये डर दिल्ली आ पहुंचा है। दिल्ली की जामा मस्जिद में भी एक अकेली लड़की को एंट्री नहीं मिलेगी।
एक ही दिन में दो दिलचस्प बयान
गुरुवार को मुस्लिमों से जुड़े दो बड़े इदारों से दो दिलचस्प बयान सामने आए हैं। एक जामा मस्जिद में लड़कियों की एंट्री बैन का तो दूसरा देवबंद के मुफ्ती का बर्थडे पार्टी को लेकर। पहले बात जामा मस्जिद की।
जामा मस्जिद की ओर से कहा गया है कि मस्जिद के भीतर अकेली लड़की ना आएं। अगर आएं तो परिवार के साथ आए ना कि किसी लड़के के साथ। इस तरह की मॉरल पुलिसिंग देश में किसी भी जाति धर्म के लोगों के लिए नई बात नहीं है, लेकिन इससे कुछ सवाल जरूर निकलते हैं। इन सवालों पर ना सिर्फ मस्जिद कमेटी को गौर करना चाहिए, बाकी सभी को भी गौर करनी चाहिए।
पहला सवाल: मस्जिद कमेटी चाहती है कि सिर्फ परिवार ही मस्जिद में आएं। परिवार क्या है इसका फैसला कौन करेगा। अगर दो बहनें मस्जिद जाती हैं तो उनको परिवार माना जाएगा या नहीं? दूसरा सवाल: जामा मस्जिद के पीआरओ का कहना है कि यहां लड़कियां, लड़कों से मिलती हैं। मस्जिद में लड़का और लड़की के बात करने में हर्ज क्या है? जामा मस्जिद की तो खूबसूरती है कि जेंडर और मजहब से परे जाकर लोग यहां बैठते हैं।
तीसरा सवाल– पीआरओ का ये भी कहना है कि लड़कियां यहां डांस करती हैं। ये कमाल की बात वो कह रहे हैं। मतलब लड़कियां डांस करती हैं, लेकिन क्या लड़के मस्जिद में जाते ही सजदे में गिर जाते हैं?
मस्जिद में आकर कोई डांस कर रहा है, ये बात हजम होने वाली नहीं है। मस्जिद हो या कोई भी धार्मिक जगह, लोग जितने सतर्क धार्मिक स्थानों पर रहते हैं। शायद ही कहीं रहते हों।
चौथा सवाल– पीआरओ कहते हैं कि मस्जिद सिर्फ इबादत के लिए है। जामा मस्जिद सिर्फ इबादत की जगह नहीं। आसपास के छोटे घरों के लोगों के लिए दो घड़ी खुले में बैठने की जगह भी है। सिर्फ इबादत की बात कहकर मस्जिद के लिए क्या उन सबके लिए बंद कर दिए जाएंगे, जो नमाज नहीं बल्कि घूमने, मस्जिद देखने या कुछ देर बैठने के लिए आते हैं। जालिब ही कह गए हैं-
बहुत मैंने सुनी है आपकी तकरीर मौलाना
मगर बदली नहीं अब तक मेरी तकदीर मौलाना खुदारा सब्र की तलकीन अपने पास ही रखें
ये लगती है मेरे सीने पे बन कर तीर मौलाना। जामा मस्जिद के बाहर ये नोटिस चस्पा किया गया है। IMAGE CREDIT: देवबंद के लोग कब तक ‘डांस पार्टी, बर्थडे पार्टी‘ में उलझे रहेंगे?
सहारनपुर में देवबंद के उलेमा मुफ्ती असद कासमी ने भी गुरुवार को एक बयान दिया है। वो कहते हैं कि मुसलमानों को अपना बर्थडे नहीं सेलिब्रेट करना चाहिए। जन्मदिन मनाना खुराफात है। ये ईसाईयों का काम है।
देवबंद के मौलाना सिर्फ ये बताएं कि आखिर कब तक हर बात को ‘काफिर’ कहा जाएगा। कभी टीवी खराब है, कभी फिल्म गलत है। बर्थडे गलत है, डीजे नाजायज है। कभी लड़कियों के घूमने फिरने पर निगरानी, कभी बर्थडे पार्टी पर कमेंट से आखिर हासिल क्या होना है। इस सबसे शायर सलमान हैदर की नज्म काफिर याद आ जाती है। जिसमें वो कहते हैं-
नूरजहां का गाना काफिर
मैकडोनैल्ड का खाना काफिर
बर्गर काफिर, कोक भी काफ़िर
हंसी गुनाह, जोक भी काफ़िर
तबला काफ़िर, ढोल भी काफ़िर
प्यार भरे दो बोल भी काफ़िर। ये लेेखक के अपने निजी विचार हैं।
हाल ही में ईरान में हिजाब हवा में लहराती लड़कियों का डर वहां के हुक्मरानों में किसने नहीं देखा। अब ये डर दिल्ली आ पहुंचा है। दिल्ली की जामा मस्जिद में भी एक अकेली लड़की को एंट्री नहीं मिलेगी।
एक ही दिन में दो दिलचस्प बयान
गुरुवार को मुस्लिमों से जुड़े दो बड़े इदारों से दो दिलचस्प बयान सामने आए हैं। एक जामा मस्जिद में लड़कियों की एंट्री बैन का तो दूसरा देवबंद के मुफ्ती का बर्थडे पार्टी को लेकर। पहले बात जामा मस्जिद की।
जामा मस्जिद की ओर से कहा गया है कि मस्जिद के भीतर अकेली लड़की ना आएं। अगर आएं तो परिवार के साथ आए ना कि किसी लड़के के साथ। इस तरह की मॉरल पुलिसिंग देश में किसी भी जाति धर्म के लोगों के लिए नई बात नहीं है, लेकिन इससे कुछ सवाल जरूर निकलते हैं। इन सवालों पर ना सिर्फ मस्जिद कमेटी को गौर करना चाहिए, बाकी सभी को भी गौर करनी चाहिए।
पहला सवाल: मस्जिद कमेटी चाहती है कि सिर्फ परिवार ही मस्जिद में आएं। परिवार क्या है इसका फैसला कौन करेगा। अगर दो बहनें मस्जिद जाती हैं तो उनको परिवार माना जाएगा या नहीं? दूसरा सवाल: जामा मस्जिद के पीआरओ का कहना है कि यहां लड़कियां, लड़कों से मिलती हैं। मस्जिद में लड़का और लड़की के बात करने में हर्ज क्या है? जामा मस्जिद की तो खूबसूरती है कि जेंडर और मजहब से परे जाकर लोग यहां बैठते हैं।
तीसरा सवाल– पीआरओ का ये भी कहना है कि लड़कियां यहां डांस करती हैं। ये कमाल की बात वो कह रहे हैं। मतलब लड़कियां डांस करती हैं, लेकिन क्या लड़के मस्जिद में जाते ही सजदे में गिर जाते हैं?
मस्जिद में आकर कोई डांस कर रहा है, ये बात हजम होने वाली नहीं है। मस्जिद हो या कोई भी धार्मिक जगह, लोग जितने सतर्क धार्मिक स्थानों पर रहते हैं। शायद ही कहीं रहते हों।
मगर बदली नहीं अब तक मेरी तकदीर मौलाना खुदारा सब्र की तलकीन अपने पास ही रखें
ये लगती है मेरे सीने पे बन कर तीर मौलाना।
सहारनपुर में देवबंद के उलेमा मुफ्ती असद कासमी ने भी गुरुवार को एक बयान दिया है। वो कहते हैं कि मुसलमानों को अपना बर्थडे नहीं सेलिब्रेट करना चाहिए। जन्मदिन मनाना खुराफात है। ये ईसाईयों का काम है।
नूरजहां का गाना काफिर
मैकडोनैल्ड का खाना काफिर
बर्गर काफिर, कोक भी काफ़िर
हंसी गुनाह, जोक भी काफ़िर
तबला काफ़िर, ढोल भी काफ़िर
प्यार भरे दो बोल भी काफ़िर। ये लेेखक के अपने निजी विचार हैं।