मोदी सरकार का सुपर परफॉर्मर, संघ का लाडला… फिर भी राजनीति से ऊब गए? आखिर गडकरी के मन में चल क्या रहा है

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मोदी सरकार का सुपर परफॉर्मर, संघ का लाडला… फिर भी राजनीति से ऊब गए? आखिर गडकरी के मन में चल क्या रहा है

मोदी सरकार का सुपर परफॉर्मर, संघ का लाडला… फिर भी राजनीति से ऊब गए? आखिर गडकरी के मन में चल क्या रहा है

मुंबई:नितिन गडकरी एक बार फिर चर्चा में हैं। केंद्र सरकार में केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय का काम संभाल रहे गडकरी (Nitin Gadkari) का नाम उन चंद लोगों में से एक है जिनका काम बोलता है। केंद्र की मोदी सरकार में सुपर परफॉर्मर हैं। संघ के दुलरुआ हैं। लेकिन राजनीत‍ि छोड़ने की बात करके उन्‍होंने राजनीतिक पंडि‍तों को चौंका दिया है। लेकिन इस ऊबन की वजह क्‍या है और राजनीत‍ि की बात कर क्‍यों कर रहे? इसे समझने के लिए हम उनके कुछ पुराने बयानों और राजनीत‍ि पृष्‍ठभूमि पर एक नजर दौड़ाएंगे। इससे शायद समझने में मदद मिले क‍ि ये बात अचानक से तो नहीं आई है।

पहले यह जानते हैं क‍ि गडकरी ने अपने बयान में कहा क्‍या
गडकरी शनिवार 24 जुलाई को अपने और संघ के गढ़ नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। अपने बयान में उन्‍होंने कहा क‍ि कभी-कभी राजनीत‍ि छोड़ने का मन करता है। अपने संबोधन में उन्‍होंने आगे कहा क‍ि राजनीत‍ि सामाजिक पर‍िवर्तन और विकास का वाहन न बनने की बजाय सत्‍ता में रहने का साधन मात्र बन कर रह गई है। वे सामाजिक कार्यकर्ता और अपने मित्र ग‍िरीश गांधी के सम्‍मान समारोह में बोल रहे थे।

ग‍िरीश गांधी पूर्व एमएलसी रह चुके हैं। वह पहले एनसीपी के साथ थे। लेकिन 2014 में उन्‍होंने पार्टी छोड़ दी थी। कार्यक्रम में गडकरी ने यह भी कहा क‍ि हमें राजनीत‍ि का अर्थ भी समझने की जरूरत है। राष्ट्र और विकास के लक्ष्‍यों पर ध्‍यान केंद्र‍ित करने की जरूरत है।

गडकरी की राजनीत‍ि से ऊबन क्‍यों, इसे इन दो किस्‍सों से समझ‍िए
राजनीत‍ि पर सोच अलग
किस्‍सा- 1

नागपुर के बेरार महाविद्याल से सेवानिवृत्त मराठी प्राध्यापक और प्राचार्य डॉक्‍टर वीएस जोग ने न‍ितिन गडकरी के साक्षात्‍कर पर एक किताब लिखी है- सरल-सुलभ नितिन गडकरी। इसी किताब में उन्‍होंने गडकरी से बात करते हुए नागपुर के एक बड़े अपराधी हरिशचंद्र धावड़े पर सवाल पूछा। इस अपराधी को गडकरी पार्टी में ले आये थे जिसके बाद उन्‍हें अपनी ही पार्टी के नेता देवेंद्र फडणवीस के विरोध का सामना करना पड़ा था। धावड़े को नागपुर का पहला डॉन भी कहा जाता है।

मोहन भागवत के साथ नितिन गडकरी। फाइल फोटो

इस घटना को लेकर गडकरी ने जो कहा, वह समझने लायक है। वे बताते हैं, ‘किसी अपराधी को छोड़ने के लिए मैं पुलिस थाना नहीं जाऊंगा। लेकिन कायदे से उसे जमीन मिल रही है तो वह दिलाने के लिए प्रसास जरूर करूंगा। गुनहगार यदि मेरे संपर्क में आने के बाद गुनाहग‍िरी छोड़ता है तो मैं उसे दूर क्‍यों करूंगा। ऐसे पचास अपराधी मैंने सुधारे हैं। समाज में अच्‍छे लोग और अध‍िक होने चाह‍िए। बुरे लोग अच्‍छे होने चाह‍िए। कोई आदमी विद्वान है। लेकिन समाज के प्रति उदासीन है तो उसकी विद्वता किस काम की।’

किताब के अगले पेज पर गडकरी अपनी बात जारी रखते हैं। नारायाण राणे उस समय शिवसेना छोड़ कांग्रेस जा चुके थे। पॉलिटिक्‍स इज दी कंप्रोमाइज, कंपल्‍शंस लिमिटेशंस जैसे मुहावरे के साथ वे अपनी और नारायण राणे की दोस्‍ती पर बोलते हैं। वे कहते हैं क‍ि राणे को कौन सी पार्टी चुननी है, वह उनकी स्‍वतंत्रता है। मेरी और उनकी दोस्‍ती राजनीत‍ि के परे है। ह‍िसाब की राजनीत‍ि मैं नहीं करता। एक बार मित्र बना लिया तो समय पर मैं डूब जाऊंगा। लेकिन उसका हाथ नहीं छोड़ूंगा।

उलटे रेडलाइट की मह‍िलाएं भी बदलीं तो कौन नहीं चाहेगा। मेरे लोकसभा चुनाप में मैंने पब्‍ल‍िसिटी स्‍टंट न करते हुए नागपुर गंगा-जमुनी बस्‍ती की मह‍िलाओं को संबोध‍ित किया। उन्‍होंने मुझे भारी मतों से विजयी बनाया। गडकरी आगे कहते हैं।

ईमानदारी और इच्छाशक्ति, ठकुराया स्‍वीकारा अंबानी का प्रस्‍ताव
किस्‍सा- 2

90 का दशक था। महाराष्‍ट्र में बीजेपी और श‍िवसेना की सरकार थी और राज्‍य के लोक निर्माण विभाग का जिम्‍मा नितिन गडकरी के पास था। मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे बनना था। धीरुभाई अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज ने सड़क बनाने का काम मांगा और उन्‍होंने कुल 3,200 करोड़ रुपए का बजट बताया। लेकिन गडकरी ने उन्‍हें मना कर दिया। इसका उल्‍लेख उन्‍होंने अपनी किताब इंडिया एस्पायर्स: रीडीफाईनिंग पोलिटिक्स ऑफ डेवलेपमेंट खुद किया है।

वे लिखते हैं, ‘इन परियोजनाओं ने समूचे देश के लिए एक मिसाल कायम की। इसमें देश के सभी नौकरशाहों के लिए साफ संदेश था कि ईमानदारी और इच्छाशक्ति हो तो, रास्ते की हर अड़चन को दूर की जा सकती है।’

गडकरी ने ये काम अंबानी को न देकर महाराष्ट्र स्टेट रोड डेवलपमेंट कारपरेशन को सौंप दिया, जिसने सरकार से कर्ज गारंटी के आधार पर बाजार से जरूरी पैसा जुटाया और बहुत कम कीमत पर इन परियोजनाओं को पूरा किया और 1,600 रुपए में ही पूरा काम हो गया। भारत में निर्माण करो-चलाओ-हस्तांतरित करो का, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल लाने का श्रेय गडकरी खुद को देते हैं।

gadkari in sangh

संघ के एक कार्यक्रम में गडकरी।

अपनी किताब में गडकरी आगे लिखते हैं क‍ि अंत में कैबिनेट मीटिंग में जब हम रिलायंस के प्रस्ताव पर चर्चा कर रहे थे, मैंने अपनी गर्दन आगे कर इसे स्वीकार करने से मना कर दिया। इतने बढ़ा- चढ़ाकर पेश किए गए टेंडर को स्वीकारने का मतलब होता शोषण के आगे घुटने टेकना। जबकि तब भी बहुत से लोग चाहते थे क‍ि ठेका अंबानी को ही मिले। गडकरी खुद कहते हैं क‍ि तब सीएम रहे मनोहर जोशी खुद मेरे ख‍िलाफ थे। श‍िवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे ने भी सवाल उठाए थे। ये सभी लोग चाहते थे टेंडर धीरू भाई अंबानी को मिले।

निर्माण के लिए महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम जल्द ही 500 करोड़ रुपए जुटाने के लिए पूंजी बाजार में गया। लेकिन 1,160 करोड़ रुपए जुटाए। दूसरी बार जब वह 650 करोड़ रुपए जुटाना चाहती थी तो 1,100 करोड़ रुपए जुटाए। हमारा काम हो गया। तब रतन टाटा ने मुझसे कहा था क‍ि मैं पैसे जुटाने के मामले में व्‍यापारियों से भी आगे हूं। गडकरी लिखते हैं।

गडकरी ने किताब में यह भी लिखा है क‍ि जब वे लोक निर्माण मंत्री थे उन्होंने चार सालों में 55 फ्लाईओवर और मुंबई और पुणे को जोड़ने वाला छह लेन का एक्सप्रेसवे बनवाया था।

संघ के दुलरुआ, बीजेपी से रार!
गडकरी को संघ का लाडला कहा जाता है। कई बार उनकी ये नजदीकी भाजपा नेताओं के लिए नुकसानदायक भी साब‍ि‍त हुई है। महाराष्‍ट्र की राजनीतिक पत्रकार और श‍िवसेना के लिए रिपोर्ट‍िंग कर चुकीं सुजाता आनंदन अपनी किताब महाराष्ट्रा मैक्सिमस: द स्टेट, इट्स पीपल एंड पोलिटिक्स में लिखती हैं क‍ि आरएसएस ने नितिन गडकरी को ऊंचा उठाने के लिए महाजन के पर कतर डाले। तब महाराष्‍ट्र में पहली बार श‍िवसेना और बीजेपी गठबंधन की सरकार बनी थी तब प्रमोद महाजन ही उसके अगुआ था। वे आगे लिखती हैं क‍ि संघ को न तो महाजन की चिंती थी और न ही इस बात से मतलब था क‍ि महाजन ने गठबंधन में बीजेपी के लिए क्‍या किया।

nitin gadkari with sangh

संघ के बेहद करीबी हैं गडकरी।

हालांक‍ि इससे गडकरी को परेशानी भी उठानी पड़ी। 1998 के आम चुनावों के समय जब गडकरी मंत्री थे तो उन्‍हें बीजेपी ने उनके घरेलू जिले नागपुर न भेजकर वर्धा भेजा। वहां कांग्रेस के प्रत्‍याशी दत्‍ता मेघे को उनका करीबी बताया जा रहा था। बीजेपी के उम्‍मीदवार विजय मुडे थे। तब बीजेपी को डर था गडकरी मेघे का समर्थन दे सकते हैं। चुनाव में मेघे को हार मिली।

वर्ष 2009 में जब बीजेपी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष की बात चल रही थी तो उसी समय टीवी पर मोहन भागवत का इंटरव्‍यू आया। इसमें उन्‍होंने कहा क‍ि बीजेपी को राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष के पद के लिए अरुण जेटली, वेंकैय्या नायडू, सुषमा स्वराज और नरेंद्र मोदी के परे भी सोचना चाह‍िए। लालकृष्‍ण आडवाणी ने गडकरी का नाम सुझाया। संघ स्वीकृति दी और दिसम्बर 2009 में गडकरी 52 साल की उम्र में बीजेपी के सबसे कम उम्र वाले अध्यक्ष बन गए।

gadkari with modi

पीएम मोदी के साथ गडकरी।

मुंह में कपड़े डालकर चुप कराने की बात
ऊपर के दोनों किस्‍सों से यह समझा जा सकता है क‍ि राजनीत‍ि में रहते हुए भी गडकरी की विचारधार क्‍या है। एक बार तो उन्‍होंने उत्‍तर प्रदेश के सीएम और बीजेपी के मौजूदा फायर ब्रांड नेता योगी आद‍ित्‍यनाथ पर निशाना साधते हुए कहा था क‍ि हमारी पार्टी में कुछ लोगों के लिए ऐसे ही कपड़े की जरूरत है।

नितिन गडकरी ने फिल्म बांबे टू गोवा के एक सीन का हवाला दिया था जिसमें एक बच्चे के माता-पिता उसे खाने से रोकने के लिए उसके मुंह में कपड़े का टुकड़ा ठूंस देते हैं। नितिन गडकरी ने कहा था, ‘हमारी पार्टी में कुछ लोगों के लिए ऐसे ही कपड़े की जरूरत है। ये पूछने पर कि क्या उनका इशारा योगी आदित्यनाथ की ओर है, जो हनुमान को दलित बता चुके हैं, तो उन्‍होंने कुछ भी बोलने से मना कर दिया। 2018 में पांच राज्‍यों में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी को मिली हार के बाद जब कोई इस पराजय की जिम्‍मेदारी नहीं ले रहा था, तब गडकरी ने कहा था- संगठन के प्रति नेतृत्व की वफादारी तब तक साबित नहीं होगी, जब तक वह हार की जिम्मेदारी नहीं लेता।

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