मैनपुरी में 26 साल से कायम SP की बादशाहत, जानिए डिंपल को मैदान में उतार अखिलेश ने कैसे साधे समीकरण?

160
मैनपुरी में 26 साल से कायम SP की बादशाहत, जानिए डिंपल को मैदान में उतार अखिलेश ने कैसे साधे समीकरण?

मैनपुरी में 26 साल से कायम SP की बादशाहत, जानिए डिंपल को मैदान में उतार अखिलेश ने कैसे साधे समीकरण?

लखनऊ: मुलायम सिंह यादव के निधन से खाली हुई यूपी के मैनपुरी की लोकसभा सीट के लिए अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने आखिरकार पार्टी का चेहरा तय कर दिया है। डिंपल यादव (Dimpal Yadav) को टिकट देकर एसपी मुखिया ने एक साथ कई समीकरण सहेजे हैं। मुलायम की विरासत को अपने पास रखने की इस कवायद में 2024 के आम चुनाव के लिए भी एसपी की रणनीति के संकेत दिखते हैं।

मैनपुरी से मुलायम की विरासत को कौन आगे बढ़ाएगा, इसको लेकर कई कयास लग रहे थे। इस सीट पर चेहरे का चुनाव सियासी संदेशों और संकेतों के लिहाज से भी अहम था। मैनपुरी पार्टी की सबसे सुरक्षित सीटों में है और पिछले 26 साल से यहां एसपी की बादशाहत कायम है। ऐसे में चेहरे के चयन में महज उपचुनाव के ही समीकरण नहीं देखने थे, बल्कि जीतने वाले की दावेदारी 2024 के लिए भी मजबूत होगी।

अखिलेश के पास बनी रहेगी विरासत
पार्टी के मुखिया के तौर पर मुलायम की राजनीतिक विरासत पहले ही अखिलेश यादव की हो चुकी है। डिंपल यादव को चुनाव लड़ाकर उन्होंने मुलायम के गढ़ को भी अपने ही पास रखने का दांव खेला है। यह पहले से ही तय था कि मैनपुरी से सैफई परिवार का ही कोई सदस्य चुनाव लड़ेगा। सूत्रों का कहना है कि परिवार के किसी भी और सदस्य को टिकट देने पर आगे चलकर दावेदारी व बदलाव में दिक्कतें आ सकती थीं। सीट की अहमियत को देखते हुए राजनीतिक आकांक्षाओं के टकराने का भी खतरा था। डिंपल की उम्मीदवारी से ऐसे सवालों और टकराहट की संभावनाएं खत्म की जा सकेंगी। मुलायम के निधन के चलते यहां सहानुभूति फैक्टर तो रहेगा ही, डिंपल की दावेदारी के चलते यह सीट अखिलेश की प्रतिष्ठा से भी जुड़ेगी। इससे कार्यकर्ताओं व कोर वोटरों में भी बिखराव की आशंकाएं दूर की जा सकेंगी।

उम्मीदवारी से पहले आसान की जमीन
यादव बहुल मैनपुरी लोकसभा सीट पर विपक्ष की उम्मीदों की डोर यहां प्रभावी संख्या में मौजूदा शाक्य सहित अति पिछड़ी बिरादरी के वोटों से जुड़ती है। पिछले 26 साल से यहां विपक्ष ने उम्मीदवार के तौर पर चौहान या शाक्य चेहरे को ही उतारा है। बीजेपी ने पिछले दो चुनावों में यहां प्रेम सिंह शाक्य को अपना उम्मीदवार बनाया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में तो एसपी-बीएसपी के साथ होने के बाद भी मुलायम व प्रेम सिंह शाक्य के बीच जीत का अंतर घटकर महज 94 हजार पर पहुंच गया था। इसलिए, अखिलेश ने डिंपल की उम्मीदवारी घोषित करने से पहले इस सवाल का जवाब तलाशा और यादवों के गढ़ मैनपुरी में शाक्य बिरादरी से जिलाध्यक्ष बनाया, जिससे वोटों का समीकरण बेहतर किया जा सके।

तो क्या कन्नौज जाएंगे अखिलेश?
मैनपुरी से डिंपल की उम्मीदवारी के साथ ही यह चर्चा भी गहराने लगी है कि 2024 में कन्नौज से किसकी दावेदारी होगी। क्या डिंपल यादव को फिर मैनपुरी की जगह कन्नौज चुनाव लड़ाया जाएगा या अपनी इस परंपरागत सीट को अखिलेश यादव खुद संभालेंगे? 2019 से पहले करीब 20 साल से कन्नौज सीट एसपी के पास थी, लेकिन, 2019 में बीजेपी ने एसपी का यह गढ़ भेद दिया। अखिलेश की यह हार निजी झटके के तौर पर थी। फिलहाल, इस नतीजे के बाद अखिलेश ने कन्नौज पर अपना फोकस बढ़ाया है। वहां के स्थानीय मुद्दों से लेकर कार्यक्रमों-अभियानों में अखिलेश की सक्रिय भागीदारी दिखी है। ऐसे में इसकी भी संभावनाएं हैं कि आगे अखिलेश खुद कन्नौज से लड़ें और मैनपुरी से डिंपल यादव की दावेदारी बनाए रखें।

उत्तर प्रदेश की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Uttar Pradesh News