मेट्रो चलाने में कमाई से ढाई गुना ज्यादा हो रहा है खर्चः मंगू सिंह

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मेट्रो चलाने में कमाई से ढाई गुना ज्यादा हो रहा है खर्चः मंगू सिंह

हाइलाइट्स:

  • 2019-20 में दिल्ली मेट्रो को यात्री किराए आदि से 3897 करोड़ रुपये थी
  • 2020-21 में मेट्रो की आमदनी कम होकर मात्र 758 करोड़ रुपये रह गई
  • इस नए वित्तीय साल में भी मेट्रो कुल मात्र 10 फीसदी यात्री ले जा रही है

कोविड ने दिल्ली मेट्रो की आर्थिक स्थिति पर जमकर चोट की है। अनलॉक होने के बाद मेट्रो सेवाएं चल रही हैं, लेकिन उसकी क्षमता के मुकाबले छह से दस फीसदी यात्री ही सफर कर पा रहे हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि दिल्ली मेट्रो की आमदनी में भारी कमी आई है। कोविड का मेट्रो परियोजनाओं पर असर, खर्चे कम करने के लिए मेट्रो क्या कुछ दूसरे काम हाथ में लेने की सोच रही है? क्या मेट्रो ट्रेनों का निजीकरण हो रहा है? ऐसे ही सवालों पर गुलशन राय खत्री ने बात की दिल्ली मेट्रो के एमडी मंगू सिंह से :

दिल्ली मेट्रो फेज-4 की इस वक्त क्या स्थिति है? कोविड का क्या असर पड़ा है?

अब तक मेट्रो के फेज-4 का औसतन 14 प्रतिशत काम हुआ है। कुछ जगह पर अभी पेड़ों को काटने के लिए अनुमति की प्रक्रिया चल रही है। कोविड की वजह से कामकाज तो प्रभावित हुआ ही है। दरअसल, जब काम बंद होता है तो ऐसा नहीं है कि कामकाज उतने दिन ही प्रभावित होता है बल्कि इसका असर लंबे वक्त तक चलता है। मगर, इतना जरूर है कि कुछ लाइनों पर आधुनिक मशीनें आ गई हैं, जिससे काम की रफ्तार बनाए रखने की कोशिश होगी।

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क्या फेज-4 की डेडलाइन बढ़ानी होगी और इसकी लागत पर भी असर पड़ेगा ?
यह जरूरी नहीं है कि डेडलाइन बढ़ानी ही पड़े। अभी देखना होगा कि कोविड का आने वाले दिनों में कितना असर होता है। अब तक काम में जो देरी हुई है, उसे क्या हम कवर कर पाएंगे। इसे अभी देखना होगा। इसी तरह से लागत के बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।

कोविड के बाद अब मेट्रो की वित्तीय हालत कैसी है?

इस वक्त दिल्ली मेट्रो की वित्तीय स्थिति भारी दबाव में है। फिलहाल दिल्ली मेट्रो की आमदनी एक रुपये है और उसे ढाई रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। इसकी वजह यह है कि जो फिक्स खर्च है, उन्हें तो कम करना मुश्किल है। इसमें कर्मचारियों का वेतन, मेट्रो के सेफ्टी से जुड़े रखरखाव के काम, पावर बिल का फिक्स चार्ज आदि। दूसरी तरफ मेट्रो की आमदनी बेहद कम हो गई है। प्रॉपर्टी डिवेलपमेंट से जो आमदनी होती थी, वह भी प्रभावित हुई है। मेट्रो को अपने लोन की किस्तें तो चुकानी ही पड़ रही हैं।
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आमदनी पर कितना असर पड़ा है?
2019-20 के वित्तीय साल में दिल्ली मेट्रो को यात्री किराए आदि से 3897 करोड़ रुपये की आमदनी थी और खर्च के मुकाबले 895.88 करोड़ रुपये हमारे पास सरप्लस थे। इस साल मार्च में खत्म हुए वित्तीय साल में हमारी आमदनी कम होकर 758 करोड़ रुपये रह गई। इसी तरह से पिछले साल जो 895 करोड़ सरप्लस थे, वे मार्च में खत्म हुए साल में निगेटिव 1784 करोड़ रुपये हो गए यानी 1784 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। एक तरह से हमारी आमदनी में ही एक साल में 3100 करोड़ रुपये की कमी हुई। अप्रैल से शुरू हुए वित्तीय साल में भी मेट्रो अपनी क्षमता का छह से दस फीसदी यात्री ही ले जा रही है।

क्या मेट्रो अपने रिजर्व रकम का इस्तेमाल कर रही है। कितने साल तक इस रिजर्व से काम चल सकता है? क्या इस बारे में केंद्र सरकार से बात की गई है?
अभी आमदनी के मुकाबले खर्च दो से ढाई गुणा है। जाहिर है कि रिजर्व से ही मेट्रो अपना खर्च चला रही है लेकिन लंबे वक्त तक नहीं चल सकता। हमने रखरखाव के कुछ ऐसे काम टाल दिए हैं, जिनका सेफ्टी से कोई ताल्लुक नहीं है। उनमें रंग-रोगन आदि के काम शामिल हैं। आर्थिक मदद का सवाल है, तो हमने सिर्फ केंद्र ही नहीं, दिल्ली, यूपी और हरियाणा सरकारों से भी कहा है। इन राज्यों में भी मेट्रो ट्रेनें चलती हैं। मगर, अभी कुछ हुआ नहीं है। हम उम्मीद कर सकते हैं कि आगे कुछ सुधार हो।

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मेट्रो क्या प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत कुछ काम करके पैसे का इंतजाम करने पर विचार कर रही है?
प्राइवेट सेक्टर की भी यही हालत है। प्राइवेट वाले खुद उल्टा राहत मांग रहे हैं। प्रॉपर्टी डिवेलपमेंट के तहत जो दुकानें दी हैं वे लोग भी छोड़कर जा रहे थे। उनसे बात की ताकि दुकानें खाली न पड़ी रहें। मोलभाव करके उन्हें रोकने की कोशिश की है।

दिल्ली मेट्रो तो कंसल्टेंसी करके भी पैसा कमाती है, वहां क्या स्थिति है?

कंसल्टेंसी से जो पैसा कमाया, वही अब मेट्रो के काम आ रहा है। जयपुर मेट्रो का ऑपरेशन का काम हो या फिर दूसरी मेट्रो निर्माण में सलाहकार के रूप में किया गया काम। उससे मेट्रो को जो आमदनी हुई, वह हमारे काम आ रही है।

मेट्रो इसी क्षेत्र में कामकाज के लिए कुछ और संभावनाएं भी तलाश रही है?

हम एक और नए एरिया में गए हैं। हमें मध्य प्रदेश सरकार ने अप्रोच किया था। जबलपुर में इरिगेशन टनल का काम अटका हुआ था। उन्होंने इसके लिए दिल्ली मेट्रो से हेल्प मांगी थी। उस पर हम लोग काम कर रहे हैं। आने वाले वक्त में छोटे काम में हाथ डालने की बजाय अगर बड़े प्रोजेक्ट हमें मिलें तो उस पर हम काम कर सकते हैं। वैसे हम फेज-4 में कुछ जगह पीडब्ल्यूडी के लिए लाइन के नीचे ही फ्लाइओवर बनाने का काम कर रहे हैं।

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प्राइवेट मेट्रो ट्रेनें चलाने की योजना कहां तक पहुंची है? उससे क्या मेट्रो के खर्चों में कमी आएगी?
प्राइवेट मेट्रो ट्रेन नहीं चला रहे बल्कि आउटसोर्स ट्रेन ड्राइवर नियुक्त कर रहे हैं। जैसे हमने मेट्रो स्टेशनों पर टिकट बांटने वाला स्टाफ, सफाई आदि का काम आउटसोर्स किया है उसी तरह से अब ट्रेन चलाने वाले ऑपरेटर हम आउटसोर्स कर रहे हैं। इसके तहत कॉन्ट्रैक्टर हमें ट्रेनें चलाने के लिए कर्मचारी मुहैया करा रहा है। इसके तहत ट्रेनें चलाने वाले 153 ड्राइवरों को मेट्रो ने ट्रेनिंग दी है। 70 ने ट्रेनिंग पूरी कर ली है। ये ड्राइवर येलो लाइन पर ट्रेनें चलाएंगे। इसी तरह चरणबद्ध तरीके से दूसरी लाइनों के लिए भी ड्राइवर कॉन्ट्रैक्टर के जरिए ही लिए जाएंगे।

क्या ट्रेन ऑपरेशन प्राइवेट लोगों को देना सेफ्टी के लिहाज से खतरनाक नहीं होगा?

ऐसा नहीं है, क्योंकि ट्रेन चलाने के लिए हम खुद ड्राइवर को ट्रेनिंग दे रहे हैं। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद जब उसे प्रमाण-पत्र मिलेगा, तभी वह ट्रेन चलाएगा। ये सभी ड्राइवर मेट्रो के स्टाफ की निगरानी में काम करेंगे। वैसे भी हमारे पास आधुनिक मेट्रो ट्रेन हैं, जिनमें ड्राइवर से अधिक सिस्टम काम करता है। ड्राइवर चाहे तो भी गड़बड़ी नहीं कर सकता। वैसे भी मेट्रो स्टेशन के अंदर कई आउटसोर्स कर्मचारी पहले से ही काम कर रहे हैं। इससे सेफ्टी प्रभावित नहीं होगी।

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